नया इंडिया, 21 अगस्त 2013 : आजकल कांग्रेस बड़ी दुविधा में फंस गई है। पहले कांग्रेस सोच रही थी कि अगर भाजपा मोदी को अपना चेहरा बना ले तो सारे देश के मुस्लिम वोट उसकी झोली में आन पड़ेंगे। जहां तक हिंदू वोट का सवाल है, उनका थोक सौदा तो कभी हो नही सकता, क्योंकि वह तो जातियों, भाषाओं और वर्गों में बंटा हुआ है। इसीलिए यदि मज़हबी ध्रवीकरण हुआ तो भी हिंदू वोट बंटेगा। सारे हिंदू वोट मोदी को नहीं मिलेंगे।
लेकिन नरेंद्र मोदी हैं कि कांग्रेस के हर नहले पर देहला मारते चले जा रहे हैं। पहले तो उन्होंने प्रधानमंत्री को लाल किले से उतार कर अपने सामने मैदान में लाकर खड़ा कर दिया और अब वे कांग्रेस के मुस्लिम गणित को भी गड़बड़ाने लगे हैं। मोदी ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा है कि वे मुस्लिम, दलित और पिछड़े मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए एक से एक नई तरकीबें निकालें। उन्होंने गुजरात का उदाहरण देते हुए बताया कि स्थानीय निकायों के चुनावों में भाजपा के लगभग 100 मुस्लिम उम्मीदवार जीत गए। बड़ी बात तो यह है कि वे मोदी की पार्टी के उम्मीदवार बनने को तैयार हो गए। प्रश्न यह है कि क्या यही प्रयोग अन्य प्रांतों में भी सफल होगा? क्या इसे एक अखिल भारतीय प्रपंच बनाया जा सकता है?
गुजरात में इतने मुसलमानों का भाजपा-प्रवेश शायद इसलिए संभव हुआ कि 2002 के दंगों के बाद अब तक वहां पूर्ण शांति बनी हुई है। मुसलमान लोग 2002 को भूलकर आगे बढ़ना चाहते हैं। उन्हें मोदी-शासन ने एक आश्वस्ति प्रदान की है लेकिन गुजरात के बाहर के मुसलमान मोदी के नाम पर ही भड़क उठते हैं। यों भी गुजराती मुसलमान काफी व्यवहारिक है। वह सोचता होगा कि पानी में रहकर मगर से बैर क्यों करना? इसीलिए एक सर्वे के मुताबिक मोदी को मुसलमानों के 22 प्रतिशत वोट मिले। यों भी गुजराती मुसलमान देश के अन्य मुसलमानों के मुकाबले अधिक सम्पन्न और सुशिक्षित हैं। देश के सारे मुसलमान मिलकर जितनी ज़कात (दान) देते हैं, अकेले गुजरात के मुसलमान उसका 60 प्रतिशत दे देते हैं। लेकिन सारे भारत का मानचित्र गुजरात के समान नहीं है।
मोदी के हर बयान पर, हर ‘हरकत’ पर, हर तेवर पर कांग्रेस के मुसलमान प्रवक्ता तल्खी भरे बयान देने से बाज़ नहीं आते। कांग्रेस के मालिकों को डर लगता है कि कहीं उनकी इन प्रतिक्रियाओं का उल्टा असर न फैल जाए। कहीं हिंदू वोट घनीभूत होकर मोदी के पक्ष में न चला जाए। इसीलिए उनसे कहा गया है कि वे ज़रा सावधानी और संयम बरतें। यों भी कांग्रेस को पता है कि अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग पार्टियों ने मुस्लिम वोटों को पटा रखा है। कांग्रेस का डर सही है कि उसके बड़बोलेपन के कारण हिंदू वोट मोदी के पक्ष में घनीभूत हो सकता है और मुस्लिम वोट का कुछ पता नहीं कि वह थोक में कौन ले जाएगा? इसके अलावा कौन जानता है कि मोदी का ही अपना आंतरिक रुपातंरण हो रहा हो। वे महसूस कर रहे हों कि अब उन्हें सिर्फ गुजरात ही नहीं, पूरे भारत की जिम्मेदारी उठानी है। उन्हें सिर्फ भूगोल में ही नहीं फैलना है बल्कि अपनी चित्रवृत्ति में भी विशालता लानी है। वे सिर्फ हिंदू-हित ही नहीं, प्रत्येक नागरिक के हित-संपादन का संकल्प लें। इसके संकेत उनके 25 मई के हरिद्वार भाषण में भी थे, जबकि उन्होंने ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ {सब सुखी हों (सिर्फ हिंदू ही नहीं)}की बात कही और अब भाजपा संगोष्ठी में मुस्लिम समाज को आकर्षित करने की वकालत की। कांग्रेस की समस्या यह है कि वह मुस्लिम सांप्रदायिकता को भुनाना चाहती है जबकि इस समय राष्ट्र के सामने यह कोई मुद्दा ही नहीं है। सबसे बड़ा मुद्दा खुद कांग्रेस ने भाजपा और मोदी को दे दिया है। वह है भ्रष्टाचार का। वे इस मुद्दे को जमकर भुना रहे हैं। अब कांग्रेस क्या करें?
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