दैनिक भास्कर, 1 अप्रैल 2011 : कि्रकेट और कूटनीति में कितना गहरा रिश्ता है| कि्रकेट अगर अंग्रेज की गुलामी है तो हमारी कूटनीति अमेरिकियों की गुलामी है| इन दोनो गुलामियों का क्या सुंदर समागम हुआ है, मोहाली में ! दोनों गुलामियॉं दोनों देशों को एक-जैसी पि्रय हैं, क्योंकि दोनों अंग्रेज के गुलाम रहे हैं और आज दोनों ही अमेरिका के भुज-पाश में बंधे हुए हैं| बि्रटेन के इशारे पर इस देश में कि्रकेट का खेल बरसों से खेला जा रहा है और आजकल अमेरिका के इशारे पर भारत और पाकिस्तान बातचीत का खेल खेल रहे हैं|
कि्रकेट के खेल और बातचीत के खेल से किसका उल्लू सीधा हो रहा है ? इन दोनों खेलों से भारत की जनता का कौनसा भला हो रहा है ? कि्रकेट के कारण देश के बाकी सब काम-काज ठप्प हो जाते हैं| देश के करोड़ों कार्य-घंटे बर्बाद हो जाते हैं| यदि दस करोड़ लोग भी दस-बारह घंटे इस खेल को देखते हैं तो भारत को कम से कम एक अरब घंटों का नुकसान होता है| दुनिया का कौनसा ऐसा खेल है, जो दिनभर चलता है और कभी-कभी हफ्रतों तक लगातार खेला जाता है ? इस तरह के खेल प्राय: मालिकों और उनके गुलामों के बीच ही खेले जाते थे| गुलाम राष्ट्र के नागरिक ‘पद्दते’ थे और शासक राष्ट्र के नागरिक ‘बेटिंग’ करते थे| दो खिलाड़ी खेलते हैं और शेष लगभग दर्जन भर लोग दिन भर मैदान में खड़े-खड़े बगले झांकते हैं| इस औपनिवेशिक खेल से शरीर-निर्माण कितना होता है, टीम-भावना कितनी पनपती है और आम लोगों को क्या प्रेरणा मिलती है, कौन बता सकता है ? हॉं. करोड़ों के वारे-न्यारे जरूर होते हैं, सट्रटेबाजी उफान पर होती है, बेइमानी और दगाबाजी के लिए कि्रकेट के खिलाड़ी कुख्यात हो जाते हैं| यह ऐसा मंहगा खेल है, जिससे देश के गरीबों, ग्रामीणों और पिछड़ों का कुछ लेना-देना नहीं है लेकिन टीवी चैनलों और अखबारों की भेड़चाल के कारण यह खेल भारत के घर-घर में घुसता चला जा रहा है| इसी भेड़चाल की शिकार हो गई है, हमारी सरकार !
सरकार अपना काम-काज ठप्प कर दे और प्रधानमंत्र्ी-जैसा महत्वपूर्ण आदमी दिन भर बैठा-बैठा कि्रकेट देखता रहे, यह लोकतंत्र् का मज़ाक नही ंतो क्या है ? भारत का विपक्ष लूला-लंगड़ा-हकला है| वरना किसी भी सरकार की खाल खींचने का इससे बेहतर मौका क्या हो सकता था ? खुद विपक्ष के नेता कि्रकेट के मोह-जाल में फंसे रहते हैं| क्या संसद में कोई यह सवाल उठाएगा कि जो सरकारी लोग अपना काम छोड़कर दिनभर कि्रकेट देखते रहे, उनकी तनख्वा काटी जाए और उन्हें चेतावनी भी दी जाए ?
प्रधानमंत्र्ी यह सफाई दे सकते है कि कि्रकेट के बहाने वे पाकिस्तान से भारत के रिश्ते सुधारने की कोशिश कर रहे हैं| पाकिस्तान तो उनसे भी एक कदम आगे है| उसने अपने सरकारी दफ्रतरों की छुट्रटी घोषित कर दी| अपना काम-धाम छोड़कर युसुफ रज़ा गिलानी मोहाली चले आए| पहले जनरल जि़या और मुशर्रफ भी कि्रकेट के बहाने भारत आए थे| उसमें से निकला क्या ? कुछ भी नहीं ! उन्हें पता था कि इसमें से कुछ भी निकलनेवाला नहीं है, फिर भी वे आए| क्यों आए ? यह उनसे पूछिए, जिन्होंने बुलाया| जिन्होंने बुलाया और जो आए, दोनों को सही बात का पता है| दोनों अमेरिका को खुश रखना चाहते है| दोनों में से किसी की हिम्मत नहीं कि ‘अपने घनिष्ट मित्र्’ को नाराज कर दें| इस समय अफगानिस्तान से बाइज्ज़त लौटना अमेरिका की सबसे बड़ी प्राथमिकता है| इस लक्ष्य की प्रप्ति पाकिस्तान फौज और सरकार को पटाए रखने से ही संभव है| पाकिस्तानी फौज के लिए इससे बड़ा तोहफा क्या होगा कि जिस देश की संसद पर वह हमला करवाती है, उसी देश का प्रधानमंत्र्ी उसके ‘मुखौटों’ की मेहमानी करता है| क्या आसिफ ज़रदारी और गिलानी पाकिस्तान के असली चेहरे हैं ? मोहाली में मुखौटों की मेहमाननवाज़ी करके हमारे प्रधानमंत्र्ी ने पाकिस्तान फौज की चरमराई हुई अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित कर दिया है|
अपने बचाव में सरकार कह सकती है कि क्या आपने दोनों देशों के गृह-सचिवों की बातचीत और संयुक्त बयान पर ध्यान दिया है ? इसके जवाब में पूछा जा सकता है कि इससे कि्रकेट का क्या संबंध है ? गिलानी नहीं आते तो भी दोनों सचिव मिलते ही ! क्या गिलानी को मिले निमंत्र्ण के बदले पाकिस्तानी गृह-सचिव ने नरमी दिखाई है ? नहीं, बिल्कुल नहीं ! पहली बात तो यह है कि उसने कोई नरमी नहीं दिखाई| भारत ने पहले घोषणा की कि वह मुंबई-कांड के लिए पाकिस्तानी जांच आयोग को भारत आने देगा| इसके जवाब में पाकिस्तान ने भारतीय आयोग का स्वागत किया है| दूसरी बात यह कि भारतीय आयोग को सिर्फ पाकिस्तानी पुलिस से पूछताछ की सुविधा मिलेगी| वह मुंबई-कांड के आरोपियों और गवाहों से बात नहीं कर सकेगी| ऐसी स्थिति में उस संयुक्त बयान का क्या महत्व रह जाता है, जिसमें दोनों देश मिलकर आतंकवाद से लड़ने की कसम खाते है| तीसरी बात, भारत ने ‘समझौता एक्सप्रेस’ के तथ्य तो उजागर कर दिए लेकिन मुंबई कांड के अपराधियों की ‘आवाज के नमून’ देने को पाकिस्तान की अदालतें आज भी तैयार नहीं हैं|
मोहाली-मैच और गृह-सचिवों की बातचीत से भारत और पाकिस्तान के बीच जमी बर्फ पिघलेगी या नहीं, यह बिल्कुल अनिश्चित है और यह भी नहीं पता कि दोनों पड़ौसियों के राष्ट्रहित किस हद तक सधेंगे लेकिन यह एकदम स्पष्ट है कि मोहाली ने प्रधानमंत्र्ी को मौका दिया है कि वे घोटालों के दमघोंटू माहौल से बाहर निकलकर चैन का एक दिन गुजार सकें और भारत के ‘घनिष्ट मित्र्’ अमेरिका को आश्वस्त कर सकें कि भारत पाकिस्तान के लिए कोई नया सिरदर्द खड़ा नहीं करेगा|
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