दैनिक भास्कर (नई दिल्ली), 04 फरवरी 2011 : स्वतंत्र् भारत के इतिहास में यह पहली बार हुआ है| सरकार ने अपने ही एक पूर्व मंत्री को गिरफ्तार कर लिया| मंत्री और मुख्यमंत्री पहले भी गिरफ्तार हुए हैं लेकिन दूसरी सरकारों द्वारा ! इस एतिहासिक गिरफ्तारी से आम जनता में खुशी की लहर दौड़ गई है, यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन देश ने संतोष की सांस जरूर ली है, यह तो स्पष्ट ही है| लोग मानकर चलते हैं कि मौसेरे भाइयों का बाल भी बांका नहीं हो सकता| किसी भी बड़े घोटाले में कोई छोटा-मोटा अफसर या बाबू फंसे तो फंस जाए, बड़े-बड़े मगरमच्छ हमेशा बचकर निकल जाते हैं| ये मगरमच्छ हैं, हमारे नेतागण ! ये किसी भी पार्टी के हों, किसी भी विचारधारा के हों, किसी भी प्रांत के हों, कुछ फर्क नहीं पड़ता| ये सब लोग हमेशा एक दूसरे को बचाने में लगे रहते हैं, क्योंकि वैसा नहीं करेंगे तो खुद भी नहीं बच पाएंगें| राजनीति के हम्माम में सभी निवर्सन हैं| क्या धांधली और बेईमानी किए बिना आज राजनीति में कोई जिंदा रह सकता है ?
इसके अपवाद हैं, हमारे प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह लेकिन पिछले दो-तीन बड़े घोटालों का भंडाफोड़ होते ही देश के लोग चक्कर में पड़ गए| उन्हें यह पल्ले ही नहीं पड़ रहा था कि इस देश में कोई प्रधानमंत्री है भी या नहीं ? यह सब जानते हैं कि आजकल ‘खड़ाऊ राज’ चल रहा है लेकिन पिछले तीन-चार महिनों में ये खड़ाउएं दिखना भी बंद हो गई थीं| ए. राजा की गिरफ्तारी ने कम से कम राज की खड़ाऊ के दर्शन तो करवा दिए|
यह गिरफ्तारी काफी नहीं है| राजा और उनके सचिव व निजी सचिव जमानत पर भी जल्दी से जल्दी छूट सकते हैं| मान लें कि उन पर बाक़ायदा मुकदमा चले और वह बोफोर्स-शैली में न लड़ा जाए तो क्या होगा ? कुछ साल बाद उन्हें सात साल की सजा हो जाएगी| इस सात साल की सजा से बचने के लिए वे साठ साल मुकदमा लड़ते रह सकते हैं और मान लें कि उन्होंने जेल काट ही ली तो उससे देश को क्या फायदा होनेवाला है ? क्या पौने दो लाख करोड़ रू. लौटकर राजकोष में जमा हो जाएंगें ? इतना बड़ा घोटाला करने पर जो रिश्वत मिली होगी, उसके मुकाबले सात साल की सजा तो ऊँट के मुंह में जीरा भी नहीं है| इसीलिए राजा की गिरफ्तारी से खुश होने का कोई कारण नहीं है|
खुशी तो तब हो जबकि लूटी गई पाई-पाई राजकोष में जमा हो और रिश्वतखोरी से खड़ी की गई सारी चल-अचल संपत्ति जब्त की जाए| इस काम के लिए भी अदालत की जरूरत है क्या ? यह ठीक है कि उच्चतम न्यायालय बुरी तरह से फटकार नहीं लगाता तो भारत के इस सबसे भ्रष्ट सरकार के कान पर जूं भी नहीं रेंगती| हमेशा की तरह सी.बी.आई. लीपापोती करके आगे बढ़ जाती| अब कुछ हद तक तो सी.बी.आई. अपनी इज्जत बचा पाई है लेकिन सरकार की इज्जत तो अब भी दांव पर लगी हुई है|
पहला प्रश्न तो यही है कि राजा घोटाला करने पर आमादा हैं, यह प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री को तीन साल पहले से पता था, फिर भी वे चुप क्यों बैठे रहे ? क्या मंत्रिमंडलीय सरकारें ‘सामूहिक उत्तरदायित्व’ के सिद्घांत पर आधारित नहीं होतीं ? प्रधानमंत्री का उत्तरदायित्व तो सबसे ज्यादा होता है| किसी भी मंत्री के सुकर्म या कुकर्म का श्रेय या दोष प्रधानमंत्री के माथे ही होता है| कुकर्म चाहे ए. राजा का हो लेकिन पूरा देश इसकी जिम्मेदारी डॉ. मनमोहन सिंह पर ही डाल रहा है, सबसे भ्रष्ट सरकार के सबसे स्वच्छ प्रधानमंत्री पर ! यदि राजा की गिरफ्तारी सिर्फ प्रतीकात्मक है तो इससे सरकार की छवि और अधिक विकृत होगी| आम लोगों का यह संदेह पुष्ट होगा कि ए. राजा तो सिर्फ मुखौटा हैं, उनके पीछे असली चेहरा कोई और ही है और यह चेहरा ऐसा है कि जो न प्रधानमंत्री से डरता है, न संसद से और न खबरपालिका से ! जयललिता के इस द्वेषपूर्ण बयान को भी बल मिलेगा कि तमिलनाडू के शीघ्र ही होनेवाले चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस और द्रमुक ने मिलकर यह नया पैंतरा मारा है| ए. राजा जेल के अंदर रहें या बाहर, तमिलनाडू में उन्होंने दम्रुक को और पूरे देश में कांग्रेस को कटघरे में खड़ा कर दिया है|
ए. राजा कि गिरफ्तारी से यदि कांग्रेस सचमुच राजनीतिक फायदा उठाना चाहती है तो सबसे पहले तो उसे उन लोगों पर हाथ डालना चाहिए जो राजा के पीछे हैं, जिन्हें इस घोटाले का असली फायदा मिला है| इसके बाद उन सब लोगों को गिरफ्तार किया जाना चाहिए, जो राजा के साथ हैं याने उनके साथ दलाली करनेवाले, उनके फर्जी ट्रस्टों, संस्थाओं और कंपनियों को सम्हालनेवाले और फिर इन गौरवशाली लोगों की सूची में उन ‘उद्योगपतियों’ के नाम भी जोड़े जाने चाहिए, जिन्होंने 2जी स्पेक्ट्रम के लायसेंस कबाड़े और दूसरों को बेच दिए| ऐसे उद्योगपतियों और कंपनियों को सरकारी संपर्क से सदा के लिए बहिष्कृत किया जाना चाहिए| यह कहने से काम नहीं चलेगा कि ‘कानून अपना काम कर रहा है|” कानून तो अपना काम कर रहा है लेकिन आप खुद क्या कर रहे हैं ? आप सारे लायसेंसों को रद्द क्यों नहीं करते ? यदि यह सीधा-सादा काम भी आप अदालत से करवाना चाहते हैं तो फिर आप सरकरी कुर्सी खाली कीजिए| उस पर भी अदालत को ही बैठने दीजिए|
अब तक कांग्रेस के मंत्री द्रमुक के गंदे पोतड़े धोते रहे हैं| नए टेलिकॉम मंत्री कपिल सिब्बल ए. राजा को निर्दोष बताकर पहले ही अपनी इज्जत दांव पर लगा चुके हैं| क्या अब भी द्रमुक के साथ गठबंधन बनाए रखना जरूरी है ? पिछली सरकार में कम्युनिस्टों ने समर्थन खींच लिया था तो क्या हुआ ? सरकार चली या नहीं ? इस मुद्रदे पर सरकार को समर्थन देनेवाले कई नए सूरमा खड़े हो जाएंगें| स्वयं कांग्रेस इतनी मजबूत हो जाएगी कि अगर सरकार गिर गई तो वह अकेले ही चुनाव जीतकर सरकार बना लेगी ? लेकिन कांग्रेस में इतनी हिम्मत है क्या ?
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