Bhaskar, March 2004 : इस हफ्ते यूरोप में दो महत्वपूर्ण चुनाव हुए, जिनका प्रभाव विश्व राजनीति पर पड़े बिना नहीं रहेगा| रूस में व्लादीमीर पूतिन और स्पेन में समाजवादी पार्टी के नेता जोस लुइस रोडि्रग्ज़ ज़पातेरो की विजय हुई| चुनाव जीतते ही दोनों ने अमेरिका पर तीर चलाए| पूतिन ने अमेरिकी विदेश मंत्री कोलिन पॉवेल को आड़े हाथों लिया| पॉंवेल ने कह दिया कि पूतिन को प्रचंड बहुमत तो मिला लेकिन उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वियों को अपने बराबर प्रचार-सुविधा नहीं दी| इस पर पूतिन ने कहा कि दुनिया को पता है कि चार साल पहले बुश ने राष्ट्रपति का चुनाव किन हथकंडों से जीता था| इसी प्रकार स्पेन के समाजवादी नेता ज़पातेरो ने कहा कि वे प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही एराक़ भेजी गई स्पेन की सैन्य टुकडि़यों को वापस बुला लेंगे| उन्होंने राष्ट्रपति बुश और प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर से अपील की कि वे अपनी एराक़-संबंधी नीतियों पर पुनर्विचार करें|
दोनों राष्ट्रों में चुनाव लगभग एक साथ हुए हैं और एक हद तक उनका अन्तरराष्ट्रीय प्रभाव भी एक-जैसा होगा लेकिन दोनों के सन्दर्भ अलग-अलग हैं| रूस के चुनाव में यथास्थिति बनी हुई है याने पूतिन दुबारा राष्ट्रपति बन गए हैं जबकिन स्पेन की आठ साल से सत्तारूढ़ ‘लोकपि्रय पार्टी’ को हराकर समाजवादी दल अचानक सत्ता में आ गया है| स्पेन अमेरिका और बि्रटेन का हमजोली है, उनके गठबंधनों का सदस्य है जबकि यूरोप में रहते हुए रूस अब भी गठबंधनरहित राष्ट्र है|
रूस में पूतिन को कुल मतदान में से 72 प्रतिशत वोट मिले हैं| यह उनकी प्रचंड लोकपि्रयता का प्रमाण है| जिस कम्युनिस्ट पार्टी ने रूस में 70 साल से ज्यादा राज किया, वह दूसरे नम्बर पर रही| लेकिन उसे केवल 14 प्रतिशत ही वोट मिले| उसके उम्मीदवार निकोलई खरीतोनोव पूतिन के मुकाबले बुरी तरह हारे| राष्ट्रपति पद के अन्य चार उम्मीदवारों के क्या कहने? भारतीय चुनावी मुहावरा इस्तेमाल करें तो कहेंगे कि उनकी जमानत जब्त हो गई| पूतिन ने अपनी पहली पत्रकार-वार्ता में यह स्पष्ट कर दिया है कि उनका एक ही लक्ष्य है कि रूस का चतुर्विध विकास करना| वे रूस का आधुनिकीकरण तेजी से करेंगे| वे मध्यम मार्ग अपनाएंॅगे| अतियों से बचेंगे| पूतिन की इन घोषणाओं की तुलना जरा खु्रश्चौफ-बुल्गानिन, ब्रेझनेव-कोसीगिन और गोर्बाचौफ-येल्तसिन की घोषणाओं से करें| सारा परिदृश्य ही बदल गया है| शीतयुद्घ हवा में उड़ गया है| अपने साथ वह सैन्य-शिविरों को भी उड़ा ले गया है| इसीलिए पॉंवेल की प्रतिक्रिया पर प्रतिक्रिया करते हुए पूतिन ने बुश पर ज्यादा पत्थर नहीं बरसाए बल्कि यह भी कहा कि रूस अब अमेरिका, यूरोप, चीन और भारत से अपने संबंध बेहतर बनाने की कोशिश करेगा|
पिछले चार वर्षों में पूतिन ने रूस में जैसा खुशनुमा माहौल तैयार है, वैसा येल्तसिन और गोर्बाच्यौफ एक-डेढ़ दशक में भी नहीं कर पाए| इससे उल्टा ही हुआ| गोर्बाच्यौफ को आज के रूस में गोबर का चौथ समझा जाता है| उन्हें सोवियत-साम्राज्य संहारक माना जाता है| लोग कहते हैं कि उनकी जगह कोई अन्य सक्षम नेता होता तो वह सोवियत रूसको बिखरने नहीं देता| बोरिस येल्तसिन तो अराजकता के अवतार थे| उनके ज़माने में रूस की जैसी दुर्दशा हुई, ज़ार के ज़माने में भी नहीं हुई| भ्रष्टाचार, अपराध, बेकारी, भुखमरी और हताशा ने रहे-सहे रूस को भी बिखराव के कगार पर पहॅुंचा दिया| चेचन्या की इस्लामी बगावत खंडित रूस के गले की हड्डी बन गई| ऐसे संकट-काल में पूतिन का प्रधानमंत्री बनना रूस के लिए वरदान साबित हुआ| चेचेन्या के बागियों के विरुद्घ आयोजित पूर्व सैन्य-अभियानों ने उनकी धमाकेदार छवि पहले से ही बना दी थी| अब आतंकवादियों के खिलाफ़ सख्त कार्रवाई करने पर उनकी छवि महानायकों-जैसी हो गई| इस छवि का लाभ उठाकर उन्होंने भ्रष्टाचारियों, अपराधियों और विखंडनकारी तत्वों पर जमकर आग बरसाई| आर्थिक स्थिति संभली| लोगों को राहत मिली| उनका आत्म-विश्वास लौटा| नौकरशाही और नेतागण पहले से अधिक मुस्तैद हुए| भारत-जैसा खुला लोकतंत्र तो अभी रूस में स्थापित होना बाकी है लेकिन दमघोंटू साम्यवादी माहौल और दिग्भ्रांत भगदड़ से रूस को मुक्त करवाने का श्रेय पूतिन को जरूर है| पूतिन और उनका रूस अभी इस लायक नहीं बना है कि वह अमेरिकी दादागीरी से सीधी टक्कर ले सके लेकिन यह तो मानना पड़ेगा कि चाहे सद्दाम हुसैन का मामला हो या यासर अराफात का, पूतिन ने अपनी विदेश नीति में काफी स्वायत्तता का परिचय दिया है|
जहॉं तक स्पेन का सवाल है, वह अमेरिका और बि्रटेन का पिछलग्गू बन गया था| सद्दाम हुसैन के विरुद्घ अमेरिका ने ज्यों ही कदम बढ़ाया स्पेन की जोस मारिया एज़नार सरकार ने खुद को बुश और ब्लेयर का भौंपू बना लिया| प्रधानमंत्री एज़नार ने अमेरिका के समर्थन में अपने 1300 फौजी एराक़ भिजवा दिए| जर्मन और फ्रांस की तरह अमेरिका का विरोध करना तो दूर रहा, उन्होंने सद्दाम-विरोधी झूठ के प्रचार में अग्रणी भूमिका निभाई| स्पेन के लाखों लोगों ने अमेरिका-विरोधी प्रदर्शन किए| सद्दाम के गिरने के बाद सारी दुनिया का ही उबाल ठंडा पड़ गया| प्रधानमंत्री एज़नार ने मान लिया कि उनकी गलती को भी स्पेन के लोग भूल गए| वे तीसरी बार चुनाव जीतने की उम्मीद लगाए बैठे थे| उनके कार्यकाल में स्पेनी अर्थ-व्यवस्था का संतोषजनक विकास हुआ है और वे बास्क नामक प्रांत के अलगाववादियों के दुश्मन के तौर पर भी विख्यात रहे हैं| उनकी ‘लोकपि्रय पार्टी’ की जीत लगभग तय थी लेकिन पिछले गुरुवार को मेडि्रड में अचानक आतंकवादी हमला हुआ, जिसमें 200 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए| प्रधानमंत्री ने इसे बास्क-छापामारों की करतूत सिद्घ करने की जी-तोड़ कोशिश की ताकि उन्हें सहानुभूति-वोट मिलें| लेकिन हुआ उल्टा ही| वे बास्क नहीं, अल-क़ायदा के लोग निकले याने मतदाताओं ने माना की एज़नार की एराक-विरोधी नीति के फलस्वरूप ही यह नर-संहार हुआ| करे अमेरिका और भरे स्पेन ! क्यों भरे? इसीलिए सारे चुनाव-अनुमानों पर पानी फेरते हुए स्पेन की जनता ने ज़पातेरो की समाजवादी पार्टी को 350 में से 164 सीटें दे दीं| अब वे नई गठबंधन सरकार बनाऍंगे| सत्तारूढ़ ‘लोकपि्रय पार्टी’ को 96 लाख वोट मिले जबकि ‘समाजवादी कार्यकर्ता पार्टी’ को एक करोड़ नौ लाख वोट मिले| मतदाताओं को बेवकूफ बनाने की इससे बेहतर सजा क्या हो सकती है?
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