दैनिक भास्कर 8 जुलाई 2007 : लाल मस्जिद के खिलाफ सैनिक कार्रवाई करके जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने एक तीर से कई निशाने साध लिये हैं| सबसे पहले तो पाकिस्तानी अखबारों के मुखपृष्ठों से मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार चौधरी लगभग नदारद हो गए हैं| सारे अखबार और टी.वी. चैनल लाल मस्जिद की लाली से लाल हो रहे हैं| चौधरी का मसला उसी तरह मुशर्रफ के गले का हार बन गया था, जिस तरह कभी जुल्फिकार अली भुट्टो के मामले ने जनरल अयूब का आसन डावॉंडोल कर दिया था| केबिनेट से निकलते ही भुट्टो लोकनायक बन गए थे, जैसे आजकल जस्टिस चौधरी बने हुए हैं| चौधरी के कारण पाकिस्तान के पढ़े-लिखे, ‘ाहरी, मालदार और मुखर लोग मुशर्रफ के खिलाफ खड़े होते चले जा रहे थे| सिर्फ वकील, न्यायाधीश और पत्र्कार ही उनके विरूद्घ नहीं थे, विश्वविद्यालय के छात्रें ने भी आंदोलन की कमान संभाल ली थी| उनका मानना था कि मुशर्रफ ने अमेरिका से खुले तौर पर और कट्टरपंथियों से गुप-चुप सांठ-गांठ कर रखी है| ऐसा लग रहा था कि 1968-69 में फ्रांसीसी छात्रें ने जैसे जनरल दि गाल को उखाड़ फेंका था, पाकिस्तानी छात्र् मुशर्रफ को उखाड़ फेकेंगे| लेकिन अब मुशर्रफ ने गज़ब का पैतरा मारा है| मुशर्रफ ने वह काम कर दिखाया है, जो चौधरी-समर्थकों को सबसे अधिक पि्रय है याने वे मुल्ला-मौलवियों पर टूट पड़े हैं|
पाकिस्तानी जनता अब पसोपेश में पड़े बिना नहीं रहेंगी| लाल मस्जिद पाकिस्तान का ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार है| इंदिरा गाध्ंाी की तरह मुशर्रफ रातों-रात पाकिस्तान के भद्रलोक या प्रबुद्घजन के महानायक बन गए हैं| पाकिस्तान के कमाल पाशा बनने की उनकी हसरत का यह पहला पड़ाव है| प्रगतिशीलता और लोकतंत्र् के समर्थक अब किस मॅंुह से मुशर्रफ की आलोचना करेंगे? पाकिस्तान की दोनों प्रमुख पार्टियों की बोलती बंद है| मौलाना फज़लुर रहमान और काज़ी हुसैन अहमद अगर चीखें-चिल्लाऍं नहीं तो उनकी सियासत ही पैंदे में बैठ जाएगी| पाकिस्तान जैसे देशों में लोकतंत्र् की दुश्मन जितनी फौज होती है, उससे कहीं ज्यादा कठमुल्ले होते हैं| दूसरे ‘ाब्दों में मुसीबत में फॅंसे मुशर्रफ ने कठमुल्लों पर हाथ डालकर सिर्फ पाकिस्तान के ही नहीं, विश्व के सभी लोकतंत्र्वादियों को खुश कर दिया है|
इसमें ‘ाक नहीं कि अमेरिका और पश्चिमी राष्ट्र मुशर्रफ की इस कार्रवाई से गद्रगद्र हैं लेकिन वह केवल उन्हें खुश करने के लिए ही की गई हो, ऐसा भी नहीं है| वजीरिस्तान के कबीलों पर अगर वे हमला बोलते तो तालिबान और अल-काय़दा की जड़ पर सीधा प्रहार होता और यह आरोप भी धुल जाता कि उनके साथ मुशर्रफ की सॉंठ-गॉंठ है| लाल-मस्जिद के मुकाबले वज़ीरी कबीला अमेरिकियों के ज्यादा खिलाफ है| लाल मस्जिद का दो”ा यह है कि वह समानांतर सरकार बनाने की कोशिश कर रही थी| उसने 500 मीटर के भूखंड से फैलते-फैलते कई एकड़ जम़ीन पर कब्जा कर लिया| उसके मदरसों के तालिबों ने सरकारी भवनों, पुस्तकालयों और दफ्तरों को हथिया लिया| ‘ारीयत के मुताबिक सरकार चलाने की हिदायतें इन कमरों से आने लगीं| महिला मंत्र्ी नीलोफर बख्तियार के खिलाफ़ फतवा जारी करके उन्हें इस्तीफे के लिए मजबूर कर दिया| हजारों हथियारबंद छात्र्-छात्रओं ने आगे होकर पुलिस और फौज पर धावा बोला| अगर अब भी मुशर्रफ सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती तो उसका इक़बाल ही खत्म हो जाता| कठोर कार्रवाई करके मुशर्रफ ने न सिर्फ अपनी कुर्सी मजबूत कर ली है बल्कि जिन्ना और लियाक़त के सपनों के पाकिस्तान का परचम भी हवा में लहरा दिया है| मुशर्रफ की यह कार्रवाई भारत और बांग्लादेश के लिए भी प्रेरणादायक होगी| बल्कि मिसाल साबित होगी| जहां-जहां भी मस्जिद जैसे पवित्र्-स्थलों का दुरूपयोग होगा, वहॉं-वहॉं फौज को घुसने को अब हरी झंडी मिल गई है| यह खुशी की बात है कि पाकिस्तानी फौज फिजूल खून नहीं बहा रही है| धीरज और अ़क्ल से काम ले रही है| सारे कांड को लाल मस्जिद के मुल्ला अज़ीज ने विश्व-स्तर का प्रहसन बना दिया है| दाढ़ीवाले मुल्ला का बुर्का पहनकर भागना हर किसी को हॅंसा-हॅंसाकर लोट-पोट कर रहा है| पाकिस्तानी अखबारों ने ‘दाड़ीवाली ऑंटी’ के फोटो इतने जमकर छापे हैं कि जस्टिस चौधरी के फोटो फीके पड़ गए हैं|
लाल मस्जिद की कार्रवाई से सबसे ज्यादा खुशी चीन, अफगानिस्तान और भारत को होगी| बलूचिस्तान के ग्वादर पोर्ट को बनाने वाले चीनी मज़दूरों की हत्या ने चीन को पहले से चिढ़ा रखा था| अब एक्यूप्रेशर जैसी सारी दुनिया में चल रही चिकित्सा-प्रणाली को वेश्यावृत्ति बताना और चीनियों को पकड लेना तो चीनी जनता और चीनी संस्कृति का अपमान है| इधर पेइचिंग-यात्र कर रहे पाकिस्तानी गृहमंत्र्ी की चीनियों ने जमकर खबर ली है| यदि पाकिस्तानी सरकार कोई सख्त कदम नहीं उठाती तो पाक-चीन रिश्तों में खटास पैदा हो सकती थी| इसी प्रकार अफगान राष्ट्रपति हामिद करज़ई कई बार खुलेआम कह चुके हैं कि मुशर्रफ सरकार उन मदरसों की परवरिश कर रही है, जो तालिबों की पौधशाला है| अब सारे संसार को पता चल गया है कि तथाकथित जिहादियों का नेतृत्व कितना कायराना है और जान बचाकर मस्जिद से भागनेवाले हजारों तालिबान कितने बहादुर हैं| अफगानिस्तान और कश्मीर में भेजे जा रहे आतंकवादियों के इस स्रोत पर मुशर्रफ ने हमला अपने खातिर ही किया है लेकिन अब वे चाहें तो उन मदरसों और प्रशिक्षण शिविरों को भी अपना निशाना बना सकते हैं, जो उनकी सत्ता को तो चुनौती नहीं दे रहे हैं लेकिन जो सारे दक्षिण एशिया की ाांति, व्यवस्था और लोकतंत्र् के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं|
इस कार्रवाई से मुशर्रफ और ‘ाौक़त अजीज़ के सिर सेहरा जरूर बंधेगा और उनकी सूखती जड़ों को कुछ पानी भी मिलेगा लेकिन यह सही मौका है जबकि वे लाल मस्जिद से कुछ सबक लें| वे यह कभी न भूलें कि कट्टरपंथी लोग कभी किसी के सगे नहीं होते| इंदिरा गॉंधी और राजीव गांधी ने जिन कट्टरपंथियों से हाथ मिलाया था, उन्होंने ही उनकी हत्या कर दी| जनरल जि़या का भी यही हश्र हुआ| 1959 में श्रीलंका के प्रधानमंत्र्ी एस.डब्ल्यू.आर.डी. बंडारनायक की हत्या भी बौद्घ कट्टरपंथियों ने ही की थी| पाकिस्तान के नेताओं को कट्टरपंथियों के साथ लुका-छिपी करने के बजाय खुल्ला खेल फर्रूखाबादी खेलना चाहिए| अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो वे अपने एक तरफ भद्रलोक की खाई और दूसरी तरफ कट्टरपंथ का कुआ खोद लेंगे| जस्टिस चौधरी के मामले से उबरना कठिन नहीं है| जैसे ही उच्चतम न्यायालय उनके पक्ष में फैसला देगा, भद्रलोक के घावों पर मरहम लग जाएगा लेकिन अगर मुशर्रफ कट्टपंथियों से गुप-चुप सॉंठ-गॉंठ करते हुए दुबारा पकड़े गए तो वे कहीं के नहीं रहेंगे| लाल मस्जिद ने उन्हें सुनहरा मौका दे दिया है कि वे मझदार में अपना घोड़ा बदल लें| मुशर्रफ ही जानें कि अब वे किसकी सवारी करेंगे?
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