विश्व शांति के नए युग का ‘स्टार्ट’
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
राष्ट्रीय सहारा, 29 दिसंबर 2010 | ‘स्टार्ट’ नामक संधि पर मुहर लगाकर अमेरिकी सीनेट ने न सिर्फ ओबामा की प्रतिष्ठा में चार चांद लगा दिए हैं बल्कि विश्व निरस्त्रीकरण और विश्व शांति को नया आयाम प्रदान कर दिया है| यह वह संधि है जिस पर अप्रैल माह में अमेरिका और रूस ने मिलकर प्राहा में दस्तखत किए थे| स्टार्ट याने स्ट्रेटजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी ! अब दोनों राष्ट्रों ने घोषणा की है कि वे 1550 से ज्यादा परमाणु शस्त्र् नहीं रखेंगे और 700 से ज्यादा प्रक्षेपण-सुविधाएं तैनात नहीं करेंगे| दोनों महाशक्तियॉं अपने वर्तमान शस्त्रगारों में अपूर्व कटौती करेंगी| यह कटौती असाधारण है| इस समय अमेरिका के पास 5576 परमाणु शस्त्र् और 1198 प्रक्षेपण-सुविधाएं हैं जबकि रूस के पास 3909 परमाणु शस्त्र् और 814 प्रक्षेपण-सुविधाऍं हैं| दोनों राष्ट्रों की शस्त्र्-क्षमताओं में काफी अंतर है| रूस के मुकाबले अमेरिका की क्षमता डेढ़-दो गुनी है लेकिन अब दोनों महाशक्तियों की परमाणु-शक्ति लगभग एक बराबर हो जाएगी| इस दृष्टि से अमेरिका ने ‘स्टार्ट’ को स्वीकार करके रूस के मुकाबले ज्यादा त्याग किया है| इस संधि में यह प्रावधान भी है कि दोनों राष्ट्र एक-दूसरे के परमाणु-शस्त्रगारों की खुली निगरानी करेंगे| जाहिर है कि दोनों राष्ट्र सिर्फ वियना के परमाणु उर्जा अभिकरण के इंस्पेक्टरों की रिपोर्ट के भरोसे नहीं रहेंगे| वे अपने इंस्पेक्टरों को एक-दूसरे के राष्ट्र में भेजेंगे| इस प्रावधान को रखने के दो अभिप्राय हैं| एक तो यह कि दोनों कोई भी पोल नहीं रहने देंगे| हर तथ्य को खुद ठोक-बजाकर देखेंगे| दूसरा, यह कि पारस्परिक जांच का यह प्रावधान दोनों राष्ट्रों के बीच पारस्परिक विश्वास और सद्रभाव को बढ़ाएगा| जो राष्ट्र अभी दस-पंद्रह साल पहले तक एक-दूसरे के जानी दुश्मन बने हुए थे और एक-दूसरे के सामरिक शस्त्रें की जानकारी निकालने के लिए अपने जासूसों को भिड़ाए रखते थे, वे आज अपने शस्त्रगारों को एक-दूसरे के लिए पूरी तरह खोल देंगे| दूसरे शब्दों में ‘स्टार्ट’ नामक इस संधि ने विश्व राजनीति में पारस्परिक विश्वास के नए युग का सूत्र्पात कर दिया है| विश्व शांति की दिशा में बढ़ा हुआ यह एतिहासिक कदम है| इस ‘स्टार्ट’ संधि तक पहुंचना आसान नहीं था| दोनों राष्ट्रों के नीति-निर्माता एक-दूसरे से सशंकित रहते थे| सबसे पहले तो वे अन्य पक्ष द्वारा पेश किए गए आंकड़ों पर ही विश्वास नहीं करते थे| वे कहते हैं कि जो बताए गए हैं, उन शस्त्रस्त्रें की संख्या तो ठीक है लेकिन जो नहीं बताए गए हैं, उनकी संख्या कितनी है| कौन-से शस्त्र् कहां छिपाए गए हैं, किसको पता है ? इसके अलावा अमेरिका के सीनेटरों और कांग्रेसमेनों की सबसे बड़ी शिकायत थी और कुछ की अब भी है कि यह ‘स्टार्ट’ संधि अपने आप में एक भेदभावपूर्ण संधि है| अमेरिका को अपने शस्त्र् उसी अनुपात में घटाने चाहिए, जिसमें रूस घटा रहा है| इस संधि से अमेरिका घाटे में रहेगा| अब तक विश्व की सबसे शक्तिशाली एक मात्र् महत्तम शक्ति अमेरिका ही था लेकिन इस, संधि ने इस संख्या को एक के बजाय दो में बदल दिया है| अब अमेरिका और रूस का सामरिक शक्ति-संतुलन लगभग बराबर हो गया है| यह संधि अभी तो केवल अमेरिका और रूस के बीच हुई है लेकिन अगर इस पर अमल हो गया तो बि्रटेन, फ्रांस और चीन को भी दुनिया बाध्य करेगी कि वे इसका अनुकरण करें| इस समय दुनिया में ज्ञात और गुप्त सामरिक हथियारों की संख्या लगभग 20 हजार है| ये हथियार इतने ज्यादा हैं कि ये मिलकर हमारी इस दुनिया का ही नहीं, विश्व के अन्य ग्रहों का भी समूल-नाश कर सकते हैं| एक बार नहीं, असंख्य बार कर सकते हैं| आज अमेरिका और रूस ने अपने आपको 1550 हथियारों पर राजी किया है, हो सकता है कि पांच साल बाद वे सिर्फ 500 पर ही राजी हो जाएं और फिर कुछ वर्ष बाद वे तथा अन्य परमाणु-राष्ट्र इन विनाशकारी हथियारों से पूर्ण मुक्ति का मार्ग चुन लें| यह भी असंभव नहीं कि वे आगे चलकर पारंपरिक शस्त्रस्त्रें के नियंत्र्ण पर भी विचार करने लगें| 1959 में संयुक्तराष्ट्र महासभा में भाषण देते हुए पं. जवाहरलाल नेहरू ने जिस व्यापक और समग्र निरस्त्र्ीकरण की मांग की थी, यह ‘स्टार्ट’ संधि उसी महान स्वप्न का ‘स्टार्ट’ सिद्घ हो सकती है| यह संधि अचानक नहीं हुई है| इसकी नींव ओबामा ने 5 अप्रैल 2008 को अपने प्राहा भाषण में रखी थी| ढाई साल पहले जब ओबामा ने परमाणु-मुक्त विश्व का आह्रवान किया था तो दुनिया समझ रही थी कि वे अभी नए-नए राष्ट्रपति बने हैं| वे नेहरू की तरह अपने आत्म-निर्मित स्वप्न-लोक में विचरण कर रहे हैं| उन्हें जब शांति का नोबेल पुरस्कार मिला तो लोगों ने उनकी मज़ाक भी उड़ाई लेकिन यह संधि संपन्न करके उन्होंने अपने आप को नोबेल का सच्चा हकदार बना लिया है| 19 साल पहले जो ‘स्टार्ट-1′ संधि संपन्न हुई थी, उसकी अवधि 5 दिसंबर 2009 को समाप्त होनी थी लेकिन जनवरी 1993 में जो ‘स्टार्ट-2′ तैयार हुई थी, वह अधबीच में ही लटक गई| इसे अब ‘स्टार्ट-3′ कह सकते हैं| इस ‘स्टार्ट-3′ के फलस्वरूप अब रूस और अमेरिका का रक्षा खर्च तो घटेगा ही, उनके आपसी संबंध भी सुधरेंगे| ओबामा ने रिपब्लिकन सीनेटरों से समर्थन मांगते समय यह तर्क भी दिया था कि अब ईरान को पटरी पर लाने में रूस का विशेष सहयोग मिलेगा| यद्यपि इस संधि के पक्ष में ओबामा को सीनेट के 71 वोट मिले लेकिन 26 सीनेटरों ने इसका विरोध भी किया| इस संधि पर मुहर लगाने के साथ सीनेट ने यह मंशा भी जाहिर की है कि बुश ने यूरोप में जो ‘मिसाइल डिफेंस’ की योजना बनाई थी,यह संधि उसके आड़े नहीं आएगी| संधि की प्रस्तावना और सीनेट के प्रस्ताव में कुछ अन्तर्विरोध दिखाई पड़ता है| हो सकता है कि इसको मुद्रदा बनाकर रूसी दूमा (संसद) कुछ अड़गा लगा दे लेकिन ओबामा की अनाक्रामक मुद्रा और सद्रभावपूर्ण यूरोप-नीति रूस को प्रेरित करेगी कि वह इस संधि का पुष्टिकरण कर दे| इस संधि का पुष्टिकरण होते ही इस बात की पूरी संभावना है कि समग्र परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी), जिसे सीनेट ने 1993 में रद्रद कर दिया था, फिर से जी उठे| इस संधि ने विश्व के शक्ति-गणित को शीर्षासन करवा दिया है| पहले माना जाता था कि शस्त्रें की संख्या बढ़ाते जाने से अपनी सुरक्षा होगी और अब माना जाने लगा है कि शस्त्रें को घटाने में ही सबकी सुरक्षा है|
(लेखक, अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हैं| वे 1999 में संयुक्तराष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं)
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