दै. भास्कर, 14 जुलाई 2009 : पिछले साल जब तिब्बत में दंगे हुए थे तो दुनिया को कोई खास आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि दलाई लामा का नाम दुनिया के हर कोने में पहले से पहुंचा हुआ था लेकिन शिंच्यांग के दंगों की खबर ने लोगों को झकझोर दिया| ज्यादातर लोगों को यह ही पता नहीं कि शिंच्यांग कहॉं है, वहॉं कौन लोग रहते हैं और वहां दंगे क्यों हो रहे हैं| चीन में चीनियों को मारा जा रहा है, इससे बढ़कर खबर क्या हो सकती है| ऐसे चीन में जिसमें आज भी कम्युनिस्ट पार्टी का एकछत्र् राज्य है, दुनिया की सबसे बड़ी फौज है और सवा अरब लोग डंडे के जोर पर बंधे हुए हैं, ये कौन गैर-चीनी लोग हैं, जिनकी वजह से लगभग 200 लोग मारे गए, एक हजार लोग घायल हो गए और डेढ़-दो हजार लोग गिरफ्रतार कर लिए गए|
चीन के पश्चिमोत्तर प्रांत में रहनेवाले ये लोग मुसलमान हैं| जात के उइगर हैं| इनकी भाषा चीनी नहीं है, तुर्की है, जो कि मध्य एशिया के मुस्लिम राष्ट्रों में बोली जाती है| इस प्रांत को पहले पूर्वी तुर्किस्तान के नाम से जाना जाता था| इसकी जनसंख्या लगभग दो करोड़ है लेकिन इसका क्षेत्र्फल पाकिस्तान से दुगुना है| यदि शिंच्यांग स्वतंत्र् राष्ट्र होता तो दक्षिण एशिया में वह भारत के बाद सबसे बड़ा राष्ट्र होता| 1949 तक इस प्रांत की आबादी में लगभग 80 प्रतिशत लोग उइगर थे लेकिन अब सिर्फ 45 प्रतिशत हैं| चीनी सरकार ने पिछले साठ साल में इस प्रांत की जनसंख्या ही पलट दी| 41 प्रतिशत चीनी भर दिए और शेष जगह उजबेक, हुइ, किरगीज आदि अन्य अल्पसंख्यक जातियों ने घेर ली| उइगर लोग अपने ही घर में बेगाने हो गए| शिंच्यांग की कम्युनिस्ट पार्टी का मुखिया कोई उइगर नहीं है| वह हान है| उइगर लोग चीनियों से इतनी घृणा करते हैं कि चीनी नागरिक होते हुए भी वे कहते हैं कि हम चीनी नहीं हैं| उन्हें कहना चाहिए कि हम उइगर जाति के हंै, हान जाति के नहीं, लेकिन वे कहते हैं कि हम चीनी नहीं हैं| उइगरों का धर्म, संस्कृति, आचार-विचार, चेहरा-मोहरा, खान-पान-सब कुछ हान लोगों से अलग है| मैंने पूरा चीन कई बार देखा है लेकिन भारतीय और बौद्घ -संस्कृति के जैसे अवशेष मैंने शिंच्यांग में देखे, कहीं और नहीं देखे|
शिंच्यांग के सरकारी और अन्य प्रभावशाली पदों पर हान लोग ही डटे हुए हैं| विश्वविद्यालयों, अस्पतालों, सुपर बाजारों, कल-कारखानों, शानदार बस्तियों और बड़ी-बड़ी होटलों में उइगर लोग कम ही दिखाई पड़ते हैं| ज्यादातर उइगर लोग मजदूरी करते हैं, छोटी-छोटी दुकानें लगाते हैं और सरकारी दफ्रतरों में छोटी-मोटी नौकरियॉं करते हैं| गरीबी का आलम यह है कि उरूमची, तुरफान, काशगर और खोतान के ढाबों में काम करनेवाले उइगर सिर्फ 10 रू. रोज पर गुजारा करते हैं| हजारों उइगर जवान सड़कों पर बेरोजगार घूमते दिखाई पड़ते हैं| इसी तरह के 600 उइगरों को जब गुआंगदोंग के शाओ-गुआन नामक चीनी नगर में नौकरियॉं दे दी गईं तो हान मजदूरांे को गुस्सा आ गया| उन्होंने 25 जून को वहॉं दो उइगरों की हत्या कर दी| इस हत्याकांड के विरूद्घ ही शिंच्यांग के उइगरों ने 5 जुलाई को उरूमची में प्रदर्शन किया था, जो दंगे में बदल गया|
चीनी सरकार कहती है कि शिंच्यांग में दंगे भड़काने का काम ‘उइगर वर्ल्ड कॉंग्रेस’ ने किया है, जिसका दफ्रतर वाशिंगटन डीसी में है लेकिन उसे क्या पता नहीं कि शिंच्यांग के चप्पे-चप्पे में बगावत की बारूद बिछी हुई है| उइगरों के पास दलाई लामा जैसे विश्व-प्रसिद्घ नेता नहीं हैं| ईसा युसुफ अल्पतगीन उइगरों के बड़े नेता हो सकते थे लेकिन 1995 में उनका निधन हो गया| अब उनकी जगह राबिया कादिर हैं| वे भी वाशिंगटन में रहती हैं| ये दंगे उन्हीं के मत्थे मढ़े जा रहे हैं| हजारों मील दूर बैठा व्यक्ति इतने बड़े पैमाने पर अचानक दंगे कैसे करवा सकता है ? क्या चीनी सरकार को पता नहीं कि शिंच्यांग की हालत तिब्बत से भी ज्यादा खराब है ? तिब्बत के साथ तो सिर्फ भारत की सहानुभूति है, वह भी जबानी जमा-खर्च तक सीमित है लेकिन उइगरों के साथ मध्य एशिया के पॉंचों मुस्लिम गणतंत्रें की सहानुभूति है| तिब्बत अलंघ्य पर्वतों से घिरा है, जबकि शिंच्यांग का उत्तरी सीमांत सपाट मैदान है| सीमांत के आर-पार आना-जाना बहुत सरल है| वास्तव में शिंच्यांग प्रांत चीन का हिस्सा ही नहीं मालूम पड़ता| वह मध्य एशिया के अन्य गणतंत्रें की तरह लगता है| इस पूर्वी तुर्किस्तान में रूसी, चीनी और बि्रटिश साम्राज्यों का दंगल लंबे समय तक चलता रहा है| 19 वीं सदी के उत्तरार्ध में उइगर नेता याकूब बेग ने इस क्षेत्र् में स्वतंत्र् राज्य की स्थापना कर ली थी| उसने बि्रटेन के साथ संधि भी की थी| 20 वीं सदी में शिंच्यांग में रूस का प्रभाव इतना बढ़ गया था कि स्तालिन उसे अपना प्रांत बनाने पर आमादा थे| सोवियत क्रांति के पहले जनरल क्रोपाटकिन कहा करते थे कि शिंच्यांग वही इलाका है, जिससे गुजर कर चंगेज़ खान मास्को तक पहुंचा था| इसे चीनी और बि्रटिश प्रभाव से मुक्त करना जरूरी है लेकिन याकूब बेग को अपना ‘हीरो’ माननेवाले उइगर लोग शिंच्यांग को बि्रटिश, रूसी और चीनियों – सभी से मुक्त करवाना चाहते थे| इसीलिए जब माओ की लाल सेना सारे चीन पर कब्जा कर रही थी तो इसी शिंच्यांग में दो बार जमकर जनोत्थान हुआ| लगभग पॉंच साल तक शिंच्यांग आजाद ही रहा| भारत से अंग्रेज की बिदाई और चीन में कम्युनिस्ट सरकार की स्थापना के बाद शिंच्यांग से साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा तो खत्म हो गई लेकिन उसकी राष्ट्रवादी चिंगारिया अंदर ही अंदर सुलगती रहीं| पिछले साल मार्च में काशगर में दंगे हुए, जिनमें 17 पुलिसवाले मारे गए| दो पाकिस्तानी आतंकवादी बंदूकबाज़ी करते हुए पकड़े गए| चीनी सरकार का आरोप है कि अल-क़ायदा के लोग बगावत भड़का रहे हैं| यह आरोप सही हो सकता है| अफगानिस्तान से जिन आतंकवादियों को पकड़कर ग्वांटेनामो बे में ले जाया गया था, उनमें 17 उइगर मुसलमान भी थे| शिंच्यांग के विभिन्न शहरों में सैकड़ों पाकिस्तानी नौजवानों को देखा जा सकता है| उनमें से ज्यादातर डाक्टरी की पढ़ाई करने आते हैं| डाक्टरी की सस्ती पढ़ाई और व्यापार के लालच के कारण दोनों तरफ से आना-जाना लगा रहता है| थल-मार्ग और वायु-मार्ग की यात्र सस्ते में होती हैं| पाकिस्तान और उइगरों को जोड़नेवाली एक मजबूत कड़ी इस्लाम भी है| इस्लाम और उइगर राष्ट्रवाद का मिश्रण काफी विस्फोटक बनता जा रहा है|
चीनी सरकार को अब पाकिस्तान से अपने संबंधों के बारे में पुनर्विचार करने पर मजबूर होना पड़ेगा| जैसे पाकिस्तानी आतंकवाद ने भारत को त्र्स्त किया हुआ है, वैसे ही अब वह चीन को कर रहा है| चीनी दूत को पाकिस्तानी विदेश मंत्रलय के आगे सफाई पेश करनी पड़ी है| शिंच्यांग की घटनाओं से भारत के हाथ मजबूत होंगे| दुनिया के सभी मुस्लिम राष्ट्रों में प्रतिकि्रया हो रही है| तुर्की के एक मंत्री ने तो चीन की कड़ी भर्त्सना की है और चीनी माल के बहिष्कार की अपील भी की है| चीन-अमेरिकी संबंधों में भी तनाव बढ़ेगा, क्योंकि अमेरिका राबिया कादिर पर प्रतिबंध नही लगाएगा लेकिन अमेरिका शायद शिंच्यांग पर चुप्पी धारण किए रहेगा, क्योंकि उसकी धसकती हुई अर्थ-व्यवस्था चीन के कर्जे के दम पर ही आजकल टिकी हुई है| भारत भी चुप है|
चीनी सरकार ने 20 साल पहले अपने हान जाति के नौजवानों पर ही टैंक दौड़ा दिए थे तो अब वह उइगरों को क्यों बख्शने लगी ? कुछ ही दिनों में शिंच्यांग में मरघट की शांति का राज होगा| शिंच्यांग सामरिक दृष्टि से तो चीन का मर्मस्थल है ही, वह दुनिया के सबसे बड़े तेल के भंडारों में से भी है| वहॉं लगभग 100 बिलियन बेरल तेल है और गैस के भी अनंत भंडार हैं| शिंच्यांग में ही लोब नोर नामक स्थान है, जहां चीन के परमाणु-परीक्षण होते हैं| चीनी राष्ट्रपति हू जिन्ताओ जी-8 की बैठक बीच में ही छोड़कर इटली से भागकर आखिर चीन क्यों आए ? यदि शिंच्यांग की बगावत साधारण घटना होती तो चीनी राष्ट्रपति ज़रा भी परवाह नहीं करते| उइगर बगावत के ये बादल उपरी तौर पर तो जल्द ही छट जाएंगे लेकिन शांति की राख के नीचे दबी चिंगारियॉं दूर-दूर तक सुलगती चली जाएंगी| शांघाई, पेइचिंग, नानकिंग और सियान जैसे शहरों तक फैले उइगर लोग अब पहले से अधिक एकजुट होंगे और पाकिस्तान के रास्ते आनेवाले आतंकवाद के मोहरे बनेंगे| चीन की बढ़ती हुई संपन्नता से अप्रभावित ये लोग शिंच्यांग के बाहर भी चीन का नया सिरदर्द साबित होंगे|
लेखक ने शिंच्यांग की विशद् यात्रiऍं की हैं
Leave a Reply