मैं पिछले दो दिन से इंदौर में हूं। आज यहां के ‘नई दुनिया’ अखबार में एक खबर पढ़कर दिल खुश हो गया। मुझे पता नहीं कि वह खबर कैसे बनी? वह महत्वपूर्ण फैसला मध्यप्रदेश सरकार ने मेरा लेख पढ़कर किया है या अपनी प्रेरणा से किया है, मैं नहीं कह सकता। मैं अपने पिछले कुछ लेखों में देश की शिक्षा के बारे में दो सुझाव देता रहा हूं। एक तो यह कि देश के सारे जन-प्रतिनिधियों और समस्त सरकारी कर्मचारियों के बच्चे अनिवार्य रुप से सरकारी स्कूलों में पढ़ें। दूसरा सुझाव यह है कि समस्त गैर-सरकारी स्कूलों और कालेजों की फीस पर कुछ न कुछ नियंत्रण लागू किए जाएं।
मेरा पहला सुझाव इलाहाबाद उच्च न्यायालय को ठीक लगा और उसने कुछ माह पहले यह फैसला दिया कि उप्र में उसे लागू किया जाए। मैं योगी आदित्यनाथजी से आग्रह करता हूं कि वे इस नियम को सारे उप्र में लागू कर दें। अगर एक संन्यासी मुख्यमंत्री इस बड़े काम को नहीं करेगा तो कौन करेगा?
मेरा जो दूसरा सुझाव है कि गैर-सरकारी स्कूलों और कालेजों की फीस पर नियंत्रण लागू किया जाए। यह काम अब मध्यप्रदेश की सरकार करने वाली है। मैं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और शिक्षा मंत्री कुंवर विजय शाह का अभिनंदन करता हूं कि वे अब सभी निजी स्कूलों को सुविधाओं और गुणवत्ता के आधार पर पांच श्रेणियों में बांटेंगे। वे बच्चों के प्रवेश के वक्त लिये जाने वाली मोटी धनराशियों का निषेध करेंगे। बसों के किराए, बच्चों के अन्य सामानों की कीमत और सालाना फीस-वृद्धि के नियम भी तय करेंगे। इसी प्रकार संसद में उज्जैन के सांसद चिंतामणि मालवीय ने भी केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के 19000 स्कूलों में चल रही लूट-पाट पर देश का ध्यान आकर्षित किया है। मुझे विश्वास है कि इस मामले में यदि मप्र सरकार ने सचमुच कोई ठोस काम कर दिखाया तो वह सारे देश के लिए एक उदाहरण बन जाएगा।
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