Dainik Hindustan, 5 Jan 2011 : पाकिस्तानी पंजाब के राज्यपाल सलमान तासीर की अचानक हुई हत्या ने पाकिस्तानी राजनीति में पहले से चले आ रहे संकट को अब और ज्यादा गहरा दिया है। सलमान पीपीपी के सुदृढ़ स्तंभों में से एक थे। उनकी हत्या इसीलिए हुई है कि वे ईश-निंदा के कानून का खुलकर विरोध कर रहे थे, जिसके तहत आसिया बीबी नामक एक ईसाई महिला को उम्रकैद दी गई थी।
इस कानून का विरोध करने की हिम्मत पाकिस्तान की किसी भी पार्टी में नहीं है, लेकिन पीपुल्स पार्टी इस काले कानून के पक्ष में भी नहीं है, यह सबको पता है। सलमान तासीर का बलिदान बेनजीर के बलिदान से भी उच्चतर नैतिक हैसियत का है, लेकिन पाकिस्तान के डीएनए में बसे हुए मजहबी उन्माद के कारण पीपीपी सरकार को गिराने के लिए अनेक शक्तियां अब और अधिक सक्रिय हो जाएंगी। फौज और जमीयते-उलेमा इस्लामी को अब एक नया बहाना मिल जाएगा।
पिछले तीन हफ्ते से पाकिस्तान सरकार काफी गहरे संकट में फंसी हुई है। किसी भी संसदीय सरकार के लिए इससे बड़ा संकट क्या हो सकता है कि सदन में उसका बहुमत खत्म हो जाए? इसकी शुरुआत उस समय हुई जब प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने अपनी गठबंधन-सरकार के मंत्री आजम स्वाती को बर्खास्त कर दिया।
स्वाती जमीयत-उलेमा के मंत्री थे और वे अपनी ही पार्टी के पहले बर्खास्त हुए हज मंत्री के खिलाफ लगातार अभियान चलाए जा रहे थे। हज-मंत्री हामिद काजमी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप थे। प्रधानमंत्री ने स्वाती को अनुशासनहीनता और बड़बोलेपन के कारण निकाला, लेकिन जमीयत के अध्यक्ष मौलाना फजलुर्रहमान ने अपने पूरे दल को ही गठबंधन से अलग कर लिया। तब सरकार हिली जरूर, लेकिन उसके गिरने की कोई आशंका नहीं थी, लेकिन 25 सदस्यों वाली मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट यानी एमक्यूएम ने जब पिछले हफ्ते सरकार छोड़ी तो गिलानी सरकार अल्पमत में आ गई। 340 सदस्यों की संसद में उसके साथ सिर्फ 160 सदस्य रह गए।
एमक्यूएम मुहाजिरों की पार्टी है। भारत से गए मुसलमानों और उनके वंशजों की। इस पार्टी के लोग सिंध में पीपीपी की प्रांतीय सरकार में भी शामिल हैं। असली झगड़ा यहीं से शुरू हुआ। बयान दिए कि कराची में पकड़े गए 60 हत्यारों में से 26 एमक्यूएम के हैं। इस आरोप ने मुत्ताहिदा के लोगों को भड़का दिया। उन्होंने जवाबी आरोप में कहा कि मुख्यमंत्री कायम अली शाह तो कठपुतली हैं। सिंध की असली हुकूमत तो जरदारी की बहन फरयाल तालपुर और कुछ दूसरे लोग मिलकर चला रहे हैं। वे सिंध को लूट रहे हैं।
इस व्यक्तिगत आरोप के अलावा प्रांतीय नेताओं ने कुछ सैद्धांतिक मामले भी उठा दिए। वे जिलों में कायम किए जा रहे नए कमिश्नरी सिस्टम का विरोध कर रहे हैं। यह नई व्यवस्था पंजाब, बलूचिस्तान और खैबर-पख्तूनख्वाह में लागू हो चुकी है। मुत्ताहिदा के लोग जनरल जिया द्वारा लागू की गई ‘नाजिम’ व्यवस्था से ही चिपके रहना चाहते हैं। उन्होंने अपनी इस स्थानीय लड़ाई को केंद्र तक पहुंचा दिया और गिलानी सरकार से मांग की है कि वह भ्रष्टाचार को दूर करे और कीमतें गिराए आदि, नहीं तो इस्तीफा दें।
‘मुत्ताहिदा’ की मंशा शायद यह थी कि वह जरदारी और गिलानी में फूट डाल दे। इस्लामाबाद में यह अफवाह भी फैल गई कि पीपीपी सरकार को कायम रखने के लिए जरदारी शायद गिलानी से इस्तीफा भी मांग लें, लेकिन जरदारी ने खुलेआम बयान देकर गिलानी का जमकर समर्थन कर दिया है। अपनी पार्टी का मनोबल भंग न हो जाए, इसलिए जरदारी ने यह एलान भी किया है कि गिलानी सरकार अपने पांच साल पूरे करेगी।
गिलानी सरकार को बचाने के लिए पीपुल्स पार्टी ने जबर्दस्त अभियान चला दिया है। यदि गृहमंत्री रहमान मलिक मुत्ताहिदा और जमीयत के नेताओं से मिल रहे हैं, तो गिलानी लाहौर जाकर दोनों मुस्लिम लोगों (नवाज और कायद) के नेताओं से समर्थन मांग रहे हैं। नवाज शरीफ ने कहा है कि वे इस सरकार को गिराकर नए चुनाव करवाने के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन उन्होंने गिलानी को अपना लंबा-चौड़ा मांगपत्र पकड़ा दिया है और कहा है कि या तो छह दिन के अंदर वे इसे लागू करने का आश्वासन दें और 45 दिन में इसे लागू करें, वरना वे अविश्वास प्रस्ताव ला सकते हैं। उनके पास 90 सदस्य हैं, इसलिए वे किसी अन्य दल की मदद के बिना इस सरकार को सांसत में डाल सकते हैं। अविश्वास प्रस्ताव के लिए कम से कम 68 सदस्य चाहिए। इतने सदस्य किसी अन्य विरोधी दल के पास नहीं हैं।
हालांकि नवाज शरीफ की यह बहादुरी दिखावटी है, क्योंकि पंजाब में उनके छोटे भाई शाहबाज शरीफ की सरकार पीपुल्स पार्टी के गठबंधन के साथ चल रही है। यदि वे इस्लामाबाद की सरकार गिराएंगे तो पंजाब की सरकार कैसे बचेगी? इस समय पाकिस्तान में कोई भी नेता ऐसा नहीं है, जिसका जादू पूरे देश में चल रहा हो। दोबारा चुनाव हुए तो भी केंद्र और प्रांतों में गठबंधन सरकारें ही बनेंगी, इसीलिए कोईभी दल चुनाव नहीं चाहता। जब तक खिंचे, सभी गाड़ी को खींच ले जाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में 60 सदस्यों वाली मुस्लिम लीग (का) के अध्यक्ष चौधरी शुजात हुसैन ने भी गिलानी को अभय-वचन प्रदान कर दिया है।
कुछ हफ्ते पहले ‘मुत्ताहिदा’ के लंदन में रहने वाले नेता अल्ताफ हुसैन ने फौज की तारीफ करके तहलका मचा दिया था। यह अफवाह चल पड़ी थी कि पाकिस्तान की फौज तख्ता-पलट कर सकती है। जमीयत और मुत्ताहिदा के इस्तीफों के कारण पाकिस्तान के सभी राजनीतिक दलों के कान खड़े हो गए थे, इसीलिए सभी प्रमुख दल संसदीय व्यवस्था को बचाए रखने के लिए कटिबद्ध हो गए हैं।
यह भी संभव है कि मियां नवाज और चौधरी शुजात गिलानी सरकार को टिकाए रखने के लिए बाहर से समर्थन देने पर राजी हो जाएं। इससे भी अधिक प्रबल संभावना यह है कि जमीयत और मुत्ताहिदा के लोग सरकार में वापस लौट आएं, क्योंकि उनका झगड़ा किन्हीं बुनियादी मामलों को लेकर नहीं हुआ है। यह संभव नहीं है कि यह अल्पमत सरकार शेष दो-ढाई वर्षो तक ऐसे ही चलती चली जाए।
यों भी महंगाई, आतंकवाद, भ्रष्टाचार और विदेशी कर्ज ने इस सरकार की कमर तोड़ रखी है। अल्पमत की यह सरकार संसद में किसी भी दिन अचानक गिर सकती है। अविश्वास और अनिश्चय के बीच झूलती इस सरकार ने औसत पाकिस्तानी नागरिकों का मनोबल काफी गिरा दिया है। यदि अपने शेष काल में यह सरकार संकल्प और दृढ़ता के साथ पेश नहीं आएगी तो यह फौज या मुशर्रफ जैसे किसी फौजी नेता के आगमन की राह मजबूत करेगी।
लेखक भारतीय विदेश संबंध परिषद के अध्यक्ष हैं
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