नभाटा, 17 दिसंबर 2003: जेल में पड़ा सद्दाम, गड्ढे में छुपे सद्दाम से अधिक बड़ा सिरदर्द साबित होगा, यह बात अभी जॉर्ज बुश और टोनी ब्लेयर को समझ नहीं पड़ रही है, इसीलिए वे एक-दूसरे को बधाइयॉं दे रहे हैं| गॉंव के किसी गड्ढे में छिपा हुआ सद्दाम अमेरिका का क्या बिगाड़ रहा था या क्या बिगाड़ सकता था ? उसे जान के लाले पड़े हुए थे| हर रात उसे अपना ठिकाना बदलना होता था| उसके बड़े-बड़े साथी-संगी गिरफ्तार हो चुके थे| दोनों लड़के मारे जा चुके थे| स्वयं सद्दाम स्मृतियों के गड्ढे में गहरा धॅंसता चला जा रहा था| उसके अपने लोग उसे भूलने की कोशिश कर रहे थे| सद्दाम के साथ-साथ वे बुश की कारगुजारियों को भी भूलते जा रहे थे| एराकियों के लिए बुश सद्दाम के प्रतिरूप हैं| लोग सद्दाम को भूलते तो वे उप-सद्दाम को भी भूल जाते लेकिन अब सद्दाम के साथ उप-सद्दाम भी दुबारा विश्व-मंच पर अवतरित हो गए हैं| एराक़ के पुनर्निर्माण का मुद्दा अब नेपथ्य में चला जाएगा और छोटे सद्दाम और बड़े सद्दाम का मुद्दा रोज़ सुर्खियों में चमकेगा|
अगर सद्दाम पकड़े न जाते, मर जाते या मार दिए जाते तो अमेरिका का सिरदर्द खत्म हो जाता| मार दिए जाते तो बदनामी जरूर होती लेकिन उससे ज्यादा क्या होती जो मार्च-अप्रैल में पहले ही हो चुकी है| एराक पर अमेरिकी हमले के विरुद्घ जैसे प्रचंड जन-प्रदर्शन पश्चिमी देशों में हुए हैं, वैसे इतिहास में कभी नहीं हुए| यदि सद्दाम मर जाते या मार दिए जाते तो क्या वैसे जन-प्रदर्शन अभी होते ? सद्दाम की गिरफ्तारी पर कौन खुशी मना रहा है ? सिर्फ एराक़ के शिया, कुर्द, कुवैत के लोग और वे भोले अमेरिकी जो बुश के अन्ध-समर्थक हैं| पश्चिमी खबर एजन्सियॉं, अखबार और टी.वी. चैनल लगातार कोशिश कर रहे हैं कि सद्दाम की गिरफ्तारी को अमेरिका की महान विजय के तौर पर चित्र्िात किया जाए लेकिन यह बात लोगों के गले नहीं उतर रही| सद्दाम की गिरफ्तारी बड़ी खबर तो जरूर है लेकिन इसे बड़ी विजय मानने के लिए कौन तैयार है ? ईरान भी नहीं| वह ईरान भी नहीं, जिसे सद्दाम की सनक के कारण दस साल तक युद्घ लड़ना पड़ा| कुवैत के अलावा किसी अरब राष्ट्र ने सद्दाम की गिरफ्तारी पर खुशी जाहिर नहीं की है| सउदी अरब जो कि सदा सद्दाम-विरोधी रहा है और जिसने सीने पर सद्दाम के मिसाइल भी झेले हैं, वह भी चुप-चुप-सा है| जोर्डन के अनेक प्रमुख अरबों ने अपनादुख प्रकट किया है| एराक़ में भी सुन्नी लोग और बाथ पार्टी के सदस्यों ने सद्दाम की गिरफ्तारी को कोई बहादुराना कार्रवाई नहीं कहा है| सद्दाम के क्षेत्र तिकरित में तो सद्दाम के पक्ष में उग्र प्रदर्शन हुए हैं| बगदाद में बम-विस्फोट हुए हैं| सद्दाम अत्याचारी और निरंकुश शासक था, इसमें शक नहीं लेकिन अरब लोग इसी तरह के शासकों के अभ्यस्त हैं| उनके लिए सद्दाम कोई अजूबा नहीं था बल्कि समस्त अरबों के लिए वह अमेरिकी दादागीरी के विरुद्घ लहराता हुआ परचमथा| अरब जगत में जो हैसियत अब्दुल जमाल नासर और सद्दाम को मिली, किसी अन्य नेता को नहीं मिली, क्योंकि वे अरब-अस्मिता के प्रतीक बन गए थे| इस्लामी पोंगापंथ के काले समुद्र में वे चमचमाते प्रकाश-स्तम्भ की तरह थे| दोनों नेताओं की आंतरिक नीतियॉं चाहे हमारी नज़रों में प्रशंसनीय न रही हों लेकिन तीसरी दुनिया में उनके प्रति गहरे सम्मान और आत्मीयता का भाव रहा है| इसीलिए सद्दाम की गिरफ्तारी पर भारत-जैसे देशों ने भी तालियॉं बजाने की बजाय एक ठंडी-सी बेजान प्रतिक्रिया व्यक्त कर दी है|
सद्दाम की गिरफ्तारी अमेरिका के लिए फायदेमंद होगी, यह मान लेना आसान नहीं है| सद्दाम को गिरफ्तार करने में कौनसी बड़ी तीरंदाजी है ? एराक़ अफगानिस्तान नहीं है, जहॉं विकट खाइयॉं-खंदकें, दुर्गम पहाड़, अगम वन और निर्जन क्षेत्र हैं| सपाट रेगिस्तान में किसी को पकड़़ पाना यों ही कठिन नहीं होता और सद्दाम के बारे में तो बच्चा-बच्चा जानता था कि अगर वह कहीं छिपेंगे तो तिकरित में ही छिपेंगे| इसके अलावा उनके सिर पर करोड़ों रुपए का पुरस्कार घोषित किया गया था| यदि चॉंदी के तीस टुकड़ों केलिए ईसा मसीह के साथ विश्वासघात हो गया था तो उनके सामने सद्दाम क्या चीज़ है ? इसका मतलब यह नहीं कि सद्दाम कोई बहुत बहादुर आदमी हैं| अगर वे बहादुर होते तो बगदाद से भागने की बजाय वहीं लड़ते और प्राण न्यौछावर कर देते| अब गड्ढे में सोते हुए पकड़ाए जाने पर वे बंदूक चलाते या गालियॉं बकते या सिपाहियों के साथ मार-पीट करते तो क्या होता? उन्होंने अपनी गरिमा बनाए रखी और उत्तेजित नहीं हुए, यह शासकोचित बर्ताव ही कहा जाएगा| क्या सिकन्दर के दरबार में हमें पुरु का बर्ताव याद नहीं है ? कह नहीं सकते कि आगे आनेवाले कुछ दिनों में सद्दाम शेर की तरह पेश आऍंगे या चूहे की तरह लेकिन उनकी गिरफ्तारी से बुश को शेर की छवि मिलनेवाली नहीं है| अमेरिकी जनता की नजरों में बुश लगातार नीचे गिरते चले जा रहे हैं| सद्दाम के पुतलों की तरह बुश धड़ाम से नीचे नहीं गिर रहे हैं लेकिन जैसे सद्दाम के पुतले गिरे हैं, वैसे ही स्वयं बुश अगले अमेरिकी चुनाव में धराशायी हो जाऍंगे| पुतले के मुकाबले आदमी को गिरने में देर तो लगती ही है|
सद्दाम की गिरफ्तारी से बुश की वैधता कैसे बढ़ेगी, यह समझ में नहीं आता| क्या सद्दाम यह बतानेवाले हैं कि उन्होंने सर्वनाशकारी हथियार कहॉं-कहॉं छिपा रखे हैं ? इसी मुद्दे पर तो बुश ने एराक़ पर हमला किया था| पिछले 10 माह में बुश और ब्लेयर उन हथियारों को नहीं खोज पाए| क्या अब वे सद्दाम से मदद लेंगे ? क्या बडे़ सद्दाम अपने छोटे-सद्दाम की मदद करेंगे ? क्या छोटे-सद्दाम बड़े सद्दाम को यह आश्वासन देंगे कि अगर वे सर्वनाशी हथियारों के जखीरे बता दें तो उन्हें प्राणदान मिल जाएगा ? क्या इस तरह की कोई सौदेबाजी हो सकती है ? इस तरह की किसी भी सौदेबाजी के दरवाज़े बंद हो चुके हैं क्योंकि सद्दाम ने साफ़ कह दिया है कि उनके यहॉं इस तरह के कोई हथियार नहीं थे|
सद्दाम के प्राण रहें या जाऍं, दोनों स्थितियॉं बुश के लिए प्राणलेवा हैं| यदि सद्दाम को मृत्युदंड दिया जाता है तो पूछा जाएगा कि जो अपराध उन्होंने किया ही नहीं, उसके लिए दंड कैसा ? यदि उन्हें सर्वनाशी हथियारों के लिए नहीं लेकिन ईरान और कुवैत के विरुद्घ युद्घ छेड़ने के लिए अपराधी माना जाता है तो इस तरह के अपराध के लिए सद्दाम से ज्यादा संगीन मुकदमा बुश के खिलाफ़ बनता है| कुवैत का कब्जा सद्दाम ने खाली कर दिया था और कब्जा करते वक्त सद्दाम के पास कमज़ोर-सा बहाना भी था लेकिन बुश ने एराक़ पर जब कब्जा किया तो उनके पास कोई बहाना नहीं था| सद्दाम की तरह उन्होंने भी अन्तरराष्ट्रीय कानून का सरासर उल्लंघन किया था| जैसे सॉंपनाथ, वैसे नागनाथ ! यह मुद्दा नेपथ्य में खिसकता चला जा रहा था, क्योंकि एराक के पुनर्निर्माण के दौर में बॅंटनेवाली रेवडि़यों पर भारत और यूरोपीय देश भी अपनी नज़रें गड़ाए हुए हैं लेकिन अब सद्दाम की गिरफ्तारी ने बुश के अपराधों को हरा कर दिया है| यदि सद्दाम पर युद्घ-अपराध के लिए मुकदमा चलाया गया तो विश्व जनमत यह मॉंग किए बिना नहीं रहेगा कि बुश को भी कठघरे में खड़ा किया जाए| अब यह मामला छोटे सद्दाम और बड़े सद्दाम का बन जाएगा| हेग के अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय में यह मामला रवांडा, सियरा लियोन या मिलोसविच के मुकदमों की तरह एकतरफा नहीं रहेगा| यदि सद्दाम के विरुद्घ एराक़ के अंदर ही कोई मुकदमा चलेगा तो जाहिर है कि उसके मुद्दे काफी अलग होंगे| बिल्कुल आंतरिक मामले होंगे| अन्तरराष्ट्रीय समुदाय का उससे कुछ लेना-देना नहीं होगा| अमेरिका की टोपी में वह भी कोई सुरखाब के पर की तरह खोंसा नहीं जा सकेगा, क्योंकि हमला तो सर्वनाशी हथियारों की ओट में किया गया था| यदि अन्दरूनी अदालत ने मृत्युदंड दिया तो बि्रटेन और यूरोपीय राष्ट्र उसका समर्थन नहीं करेंगे, क्योंकि वे मृत्युदंड के विरोधी हैं और यों भी मृत्युदंड सद्दाम को वैसी शहादत के ऊचे मुकाम पर बैठा देगा, जिस पर जुल्फिकार अली भुट्टो जा बैठे थे| सद्दाम गड्ढे में रहें, जेल में रहें, कठघरे में रहें या फॉंसी के फंदे पर रहें, वे अमेरिका के गले के सॉंप बन गए हैं|
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