Nav Bharat Times, 14 Nov. 2002 : समझ में नहीं आ रहा कि इसे किसकी विजय कहा जाए ? सुरक्षा परिषद् की या अमेरिका की या एराक की ? या तीनों की ? सुरक्षा परिषद् ने अपना प्रस्ताव सर्वानुमति से पारित किया है| पन्द्रह में से एक राष्ट्र ने भी इस प्रस्ताव का विरोध नहीं किया| सीरिया ने भी नहीं| माना यह जा रहा था कि सीरिया पश्चिमी राष्ट्रों का साथ नहीं देगा| एराक के विरुद्घ आनेवाले किसी भी प्रस्ताव का सीरिया अगर विरोध नहीं करेगा तो कम से कम तटस्थ हो जाएगा| लेकिन सीरिया ने भी समर्थन किया| इसका मतलब क्या हुआ ? यही कि प्रस्ताव इतना बढि़या था कि कोई भी सदस्य उसका विरोध नहीं कर सकता था| वास्तव में प्रस्ताव इतना अच्छा है कि एराक को भी उसका समर्थन कर देना चाहिए था लेकिन सद्दाम अगर वैसा कर देते तो शायद उनकी नाक नीची हो जाती| इसीलिए उन्होंने संसद का विशेष सत्र बुलाया है| एराक की संसद उस प्रस्ताव की चीर-फाड़ जरूर करेगी लेकिन एराकी संसद क्या है ? वह तो सद्दाम का ठप्पा है| जो सद्दाम चाहेंगे, वही संसद कहेगी|
जैसे सद्दाम इधर एराक पर सवार हैं, लगभग वैसे ही बुश अमेरिका पर हैं| ये बात दूसरी है कि अमेरिका लोकतांत्र्िाक देश है और उसकी विधानपालिका, न्यायपालिका और खबरपालिका के मुँह पर ताले नहीं जड़े हैं| सद्दाम पर खम ठोकना बुश को काफी मुबारक साबित हुआ है| कई बरसों बाद काँग्रेस के दोनोें सदनों-सीनेट और प्रतिनिधि सभा पर रिपब्लिकन पार्टी का कब्जा हुआ है| उनके भाई भी जोर-शोर से दुबारा फ्लोरिडा के गवर्नर बन गए हैं| ये वही बुश हैं, जो राष्ट्रपति के चुनाव में बाल-बाल बचे थे| बुश को एराक के विरुद्घ युद्घ छेड़ने के लिए अमेरिकी काँग्रेस का समर्थन भी मिल चुका है| अमेरिका की अन्दरूनी राजनीति में बुश को एराक काफी फल रहा है लेकिन यह जग-जाहिर हो गया है कि सुरक्षा परिषद्र के प्रस्ताव के बाद अब वे दादागीरी नहीं कर पाएँगे|
सुरक्षा परिषद्र ने अपने प्रस्ताव न. 1441 में ऐसा कुछ नहीं कहा है, जिसके दम पर बुश को एराक पर हमला बोलने का अधिकार अपने आप मिल सकता है| यदि सद्दाम सात दिन में इस प्रस्ताव को स्वीकार न करें और 30 दिन में अपने रासायनिक, जैविक और परमाणु हथियारों की संपूर्ण सूची प्रकट न करें तो वे निश्चय ही दोषी घोषित किए जाएँगे लेकिन इसके बावजूद अमेरिका या किसी अन्य देश को अधिकार नहीं होगा कि वे एराक पर हमला बोल दें| वास्तव में यह अधिकार खुद सुरक्षा परिषद् ने भी अपने हाथों में नहीं लिया है| प्रस्ताव में केवल इतना कहा गया है कि सद्दाम हुसैन की अवहेलना के बाद जो भी स्थिति उत्पन्न होगी, उस पर सुरक्षा परिषद्र फिर से विचार करेगी| प्रस्ताव के इन शब्दों से दो बातें एक दम स्पष्ट हो जाती हैं| एक तो यह कि सद्दाम हुसैन को हटाकर उनकी जगह अपने कठपुतली तानाशाह को बिठाने की अमेरिकी योजना विफल हो गई है| अमेरिका ने जो वैकल्पिक नेता खड़े कर लिए थे, वे अब आराम से दुबारा अपने सुरा-सुंदरी दौर में प्रवेश कर सकते हैं| दूसरे शब्दों में अब पूरा अन्तरराष्ट्रीय फोकस ही बदल गया है| अब मुद्दा सद्दाम नहीं, सर्वनाशी हथियार बन गए हैं| अगर अमेरिका शुरू से यही मुद्दा उठाता तो उसे ज्यादा जिल्लत नहीं झेलनी पड़ती| फ्रांस और जर्मनी जैसे मित्र राष्ट्र उसकी टाँग नहीं खीचते| सुरक्षा परिषद्र के प्रस्ताव ने अमेरिका की लाज भी रख ली और अन्तरराष्ट्रीय समाज की मौन भावना को मुखर भी कर दिया| इस प्रस्ताव से जो दूसरी बात स्पष्ट हुई है, वह यह कि इस प्रस्ताव में न तो कोई ‘अदृश्य खटका’ है, जिसे सुरक्षा परिषद्र या अमेरिका जैसे राष्ट्र, जब चाहें तब दबा सकते हैं और न ही कोई ऐसा प्रावधान है, जिसकी आड़ में तालिबान-विरोधी कार्रवाई जैसा कदम कोई ‘अपने आप’ उठा सके| वास्तव में यह प्रावधान ही अमेरिका पर लगी लगाम है| यह लगाम है या नहीं, इसका स्पष्टीकरण संयुक्तराष्ट्र में अमेरिका के प्रतिनिधि नीग्रोपोन्ते ने उसी दिन कर दिया था, जिस दिन यह प्रस्ताव पारित हुआ था| रूस के राष्ट्रपति पूतिन ने भी इसी आशय का बयान जारी किया है| रूसी विशेषज्ञों का मानना है कि यदि रूस, फ्रांस और चीन दबाव नहीं डालते तो अमेरिका और बि्रटेन मिलकर सुरक्षा परिषद् ही नहीं, सारे संसार को भयंकर संकट में डाल देते| लगभग सात हफ्ते तक सुरक्षा परिषद् के चौदह सदस्य अपने पंद्रहवें सदस्य अमेरिका को पटाते रहे, उसकी जिदों को सहलाते रहे और अन्ततोगत्वा उन्होंने ऐसा प्रस्ताव पारित करवा लिया, जिस पर अमेरिका की मुहर भी लग गई और तीसरे विश्व-युद्घ का खतरा भी टल गया|
अमेरिका ने प्रस्ताव पर मुहर तो लगा दी है लेकिन जैसे सद्दाम उसे सहर्ष स्वीकार नहीं कर रहे हैं, ठीक उसी तरह बुश अपने बचाव की गलियाँ निकाल रहे हैं| सबसे पहले तो उनका कहना है कि उन्होंने सीधे हमले की धमकी इसीलिए दी थी कि सुरक्षा परिषद्र इसी तरह का कोई प्रस्ताव पारित कर दे| यदि वे विश्व-जनमत को खतरे के निशान पर नहीं पहुँचाते तो जैसे सद्दाम 1998 से संयुक्तराष्ट्र पर्यवेक्षकों को बाहर निकाले हुए थे, अब भी निकाले रहते| वे किसी की नहीं सुनते| उन्हें सुरक्षा परिषद्र भी कुछ नहीं कहती| बुश का मानना है कि सुरक्षा परिषद्र ने अब सद्दाम के हाथ में हथकडि़याँ डाल दी हैं| अब वे बच नहीं सकते| हर हालत में अब उन्हें अपने सारे आपत्तिजनक हथियार दिखाने पड़ेगे और नष्ट करने पडेगे| बुश की यह बात सही भी है| प्रस्ताव ने कोई गली बाकी नहीं छोड़ी, जिससे सद्दाम निकल भागें| अब वे न तो ये बहाना बना सकेंगे कि अन्तरराष्ट्रीय इन्स्पेक्टरों को अपने निजी महलों की तलाशी नहीं लेने देंगे या तलाशीवाले उनके द्वारा निकाले गए मुहुर्तों पर ही तलाशी ले सकेंगे| इस प्रस्ताव ने इन्स्पेक्टरों को इतनी ताकत दे दी है कि वे जब चाहें एराक के किसी भी स्थान पर छापा मार सकेंगे और उसकी तलाशी ले सकेंगे| अब वे उन संस्थानों की भी जाँच-पड़ताल कर सकेंगे, जो विदेशी जासूसी एजेन्सियों के शक के दायरे में भी रहे हैं| जाहिर है कि यदि सद्दाम सुरक्षा परिषद्र के इस प्रस्ताव को स्वीकार करेंगे तो इस बार वे संयुक्तराष्ट्र के साथ आँख मिचौनी नहीं खेल पाएँगे| यह अमेरिका की विजय है| अमेरिका को इस प्रावधान से संतुष्ट होना चाहिए| लेकिन अमेरिका की अकड़ कुछ ऐसी है कि राष्ट्रपति बुश तो बुश, उनके छोटे-मोटे अधिकारी भी ऐसी फिज़ा बना रहे हैं कि जैसे सद्दाम हुसैन की गर्दन पर उन्होंने शिकंजा रख दिया है और बस अब क़त्ल का हुक्म होने ही वाला है| अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार कंडोलीज़ा राइस ने दो-टूक शब्दों में कहा है कि हमारे राष्ट्रपति एराक को सबक सिखाए बिना मानेंगे नहीं| यदि सद्दाम ने अपने आपत्तिजनक हथियार प्रकट नहीं किए तो राष्ट्रपति उनके विरुद्घ बल-प्रयोग अवश्य करेंगे| अभी सद्दाम ने प्रस्ताव के लिए ‘हाँ’ या ‘ना’ कुछ भी नहीं कहा है| इसके बावजूद बुश-प्रशासन घोषणा कर रहा है कि उसने अपने दो से ढाई लाख फौजियों को ‘तैयार’ रहने का आदेश दे दिया है| वह एराक पर उसी तरह हमला करना चाहता है, जैसे उसने पिछले साल तालिबानी अफगानिस्तान पर किया था| अमेरिका का यह पैंतरा अनावश्यक है और उत्तेजक है| गरम सद्दाम की जगह क्या उसे नरम सद्दाम स्वीकार नहीं है ? सद्दाम अगर नरम पड़ रहे हैं तो उन्हें गरिमामय ढंग से नरम पड़ने दिया जाए ताकि विश्व-शांति की सर्वतोमुखी विजय सुरक्षित हो सके| सद्दाम के अनुकूल रवैए के बावजूद यदि अमेरिका उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करेगा तो विजय भी पराजय में बदल सकती है| पराजित सद्दाम अमेरिका के गले का हार बन सकते हैं| सद्दाम से भी अधिक उग्र तत्व एराक के बादल पर मँडराने लग सकते हैं| वे चाहें सद्दाम को हटा न पाएँ, उनके द्वारा पैदा किया गया निराशावाद संपूर्ण मुस्लिम जगत में फैल सकता है और अल-क़ायदा के घायल पंछी को नए पंख प्रदान कर सकता है|
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