दैनिक भास्कर, 07 जनवरी 2010 | मनमोहन सिंह सरकार की समस्याएं अपरंपार हैं| इस सरकार के सिर पर अभी जेपीसी और पीएसी का झांझ तो कुट ही रहा है, अब बोफोर्स का आरा भी दुबारा चल पड़ा है| लगता था कि बोफोर्स का भूद सदा के लिए दफन हो गया है, चाहे वह नेहरू परिवार की प्रतिष्ठा, सीबीआई की विश्वसनीयता और अदालतों की निर्भीकता भी अपने साथ कब्र में ले गया था, लेकिन अब आयकर अदालत जैसी मासूस संस्था ने कैसा गजब का जुल्म ढाया है| जिस संस्था का दायरा आय और उसके कर तक सीमित है, उसके फैसले ने एक राजनीतिक तोप का रूप धारण कर लिया| इस तोप के गोले बोफोर्स की तोप के गोलों से अधिक भयानक होंगे|
लेकिन आज की भारत की जनता यह भी सोच सकती है कि 50-60 करोड़ का रोना अब क्या रोना ? जहां ढाई लाख करोड़ के दो बड़े घपले छोटे-मोटे खिलाडि़यों ने कर दिए, वहां इस 20-22 साल पुराने गड़े मुर्दे को क्यों उखाड़ना ? जिसे सजा मिलना चाहिए थी, उसे चाहे अदालत ने बचा लिया हो लेकिन जनता ने जरूरत से ज्यादा सजा दे दी थी| जनता का यह दयालु रवैया तभी कायम रह पाएगा, जबकि वर्तमान सरकार चालू घोटालों पर यमराज की तरह टूट पड़ेगी| अन्यथा कल कब्र से लौटा बोफोर्स का यह भूत इतनी डरावनी आवाजें निकालेगा कि मनमोहन सरकार के पसीने छूट जाएंगे| लगता है सरकार थक गई है| वह अपने होने से थक गई है| वह किंकर्तव्यविमूढ़ क्यों हो गई है ? वह कुछ करती हुई क्यों दिखती नहीं पड़ती ? प्रधानमंत्र्ी पीएसी (सार्वजनिक लेखा समिति) के सामने पेश होने को तैयार है| यह उनकी झुंझलाहट है और सज्जनता भी है| घपले में उनका कोई हाथ नहीं है लेकिन सारा दोष उन्हीं के मत्थे मढ़ा जा रहा है| घपलेबाजों को उन्होंने उचित समय पर सावधान भी किया था, लेकिन सारा देश उन्हीं पर उंगली उठा रहा है| आखिर क्यों ? इसीलिए कि वे प्रधानमंत्री हैं| इस मौके पर उन्हें यह सिद्घ करना है कि वे सचमुच प्रधानमंत्र्ी है| यदि इस सरकार ने भ्रष्टाचारियों के विरूद्घ कोई अमलकारी कदम नहीं उठाया तो सारे देश में शंकाओं का बाजार गर्म हो जाएगा| अफवाहें फैलना शुरू हो गई हैं| बोफोर्स की वापसी इन निराधार अफवाहों की रफ्रतार की और भी तेज कर देगी|
विपक्ष जेपीसी पर अड़ा है और सरकार पीएसी पर| दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं| दोनों वक्त काटने के साधन हैं| कमेटियां बैठाओं और मामलों को टालो| विपक्ष की रूचि भ्रष्टाचारियों को पकड़ने में उतनी नहीं है, जितनी इस सरकार को बदनाम करके खुद सरकार बनाने में है| विपक्ष जेपीसी पर इसीलिए अड़ा हुआ है कि यह शक्तिशाली संसदीय समिति मंत्रियों और प्रधानमंत्री तक की खिंचाई करेगी और सरकार को कीचड़ में लथपथ कर देगी| जांच को चुनाव तक खींचा जाएगा और सरकार को डुबोने की कोशिश की जाएगी| यह राजीव गांधी सरकार की तरह 410 सांसदों वाली सरकार नहीं है| यह गठबंधन के नाजुक धागे से बंधी हुई है| जेपीसी के दौरान करूणानिधि, शरद पवार, ममता बैनर्जी, माया और मुलायम जैसे खिलाड़ी पता नहीं इस कितना निचोड़ेंगे ? अंत तक साथ भी देंगे या नहीं ? डूबती नाव में कौन बैठता है ? यही डर है इस सरकार का| यों भी जेपीसी क्या कर लेगी ? क्या वह ढाई सौ करोड़ रूपए वापस करवा देगी ? जेपीसी के पूरे होते-होते भ्रष्टाचार के सारे प्रमाण और स्वयं भ्रष्टाचार भी गायब हो जाएंगे| बोफोर्स वाली जेपीसी से क्या फायदा हुआ ? क्या दलाली के करोड़ों रूपए वापस आ गए ? देश के लोगों की दिलचस्पी जेपीसी और पीएसी में चलने वाले दंगलों को देखने में बिल्कुल भी नहीं है| उनकी मांग सिर्फ एक है, राष्ट्रकुल खेलों और फोन-घोटाले में खाए हुए करोड़ों-अरबों रूपए को ब्याज समेत वसूल किए जाएं| जल्दी से जल्दी किए जाएं| संसद की समितियां इन्हें कैसे वसूल करेंगी ? समितियों की रपट आजाने के बाद भी यह काम तो सरकार को ही करना है| तो यह काम सरकार अभी ही क्यों नहीं करती ? विपक्ष उसे इसके लिए मजबूर क्यों नहीं करता ?
सरकार के पास किस चीज की कमी है ? अपराधियों को खोजने के लिए तमाम गुप्तचर एजेंसिया है, उन्हें पकड़ने के लिए पुलिस है और उन्हें कठघरे में खड़े करने के लिए अदालतें हैं| दोनों घोटालों में जो लोग भी शामिल है, उनसे सिर्फ पूछताछ हो रही है| क्या आम आदमी को पता नहीं है कि यह पूछताछ और कुछ नहीं है, सिर्फ लोगों की आंखों में धूल झोंकना है| घोटालों के लिए जिम्मेदार लोगों को अभी तक गिरफ्रतार क्यों नहीं किया गया ? उनकी सभी चल-अचल संपत्ति अभी तक जब्त क्यों नहीं की गई ? यदि पिछले दो-तीन महीने में यह सरकार इस तरह के कदम उठा लेती तो क्या होता ? जबर्दस्त धमाका होता| लोग बोफोर्स को तो याद ही नहीं करते, उनका ध्यान शायद ऐसे ज्वलंत मुद्दे से हट जाता जिसके कारण इस सरकार की प्रतिष्ठा पैंदे में बैठी चली जा रही है|
इस सरकार का कितना दुर्भाग्य है कि इसके दौरान एक ऐसा व्यक्ति मानव अधिकार आयोग का अध्यक्ष है, जो अभी-अभी भारत का प्रधान न्यायाधीश था और जिसके रिश्तेदार भयंकर भ्रष्टाचार के सूत्र्धार के तौर पर पकड़े जा रहे हैं| इस सरकार के सीवीसी (मुख्य निगरानी आयुक्त) पर भी उंगली उठ चुकी है| प्रसार भारती के मुख्य अधिकारी को भी भ्रष्टाचार के कारण अपना पद छोड़ना पड़ा है| ज्यों-ज्यों समय बीत रहा है, इस सरकार का कंबल गीला होता चला जा रहा है| यदि यह भ्रष्टाचारियों पर टूट पड़े तो जेपीसी और पीएसी अपने आप अप्रासंगिक हो जाएंगी|
यदि प्रधानमंत्री यह समझ रहे है कि उनके कारण लोग इस भ्रष्टाचार को बर्दाश्त कर लेंगे, तो उन्हें यह जान लेना चाहिए कि भ्रष्टाचार से तंग आए लोग उन्हें भी बर्दाश्त करना बंद कर देंगे| बोफोर्स के बाद राजीव गांधी की सरकार दो-ढाई साल चल गई लेकिन यहां तो बोफोर्स से हजार गुना बड़े घपले हो रहे हैं| और कई एक साथ हो रहे हैं| महंगाई के मारे जनता बिलबिला रही है| ऐसे में क्या भारत की जनता अगले तीन साल इंतजार करेगी ? क्या हमारे प्रधानमंत्री गुजरात जैसे जन आंदोलन की नींव तो नहीं रख रहे हैं ? इंदिरा गांधी जैसी महाप्रतापी प्रधानमंत्री के विरूद्घ जैसे जयप्रकाश का जयघोष पूरे राष्ट्र में गुंजायमान हुआ था, क्या वैसे ही अब जन आक्रोश की प्रत्यंचा फिर नहीं खिंचेगी|
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