रा. सहारा, 21 जनवरी 2003। परमाणु बम का बटन प्रधानमंत्री के हाथ में होगा| उसे वे दबाएँ या न दबाएँ और दबाएँ तो कब दबाएँ, यह बताने के लिए एक राजनीतिक और दूसरी कार्यकारी परिषद् होगी तथा परिषद्रयुक्त प्रधानमंत्री के आदेश का पालन करने के लिए एक कमांडर-इन-चीफ़ होगा| भारत की परमाणु-कमान की इस ताजा घोषणा का सर्वत्र स्वागत हुआ है, क्योंकि यह घोषणा एक तो परमाणु बम के साढ़े चार साल बाद हुई है और दूसरा, पाकिस्तान के तीन साल बाद हुई है| इस खुश खबर के कारण हमारे सामरिक चिन्तन पर गज़ब की धुंध छा गई है| असली मुद्दा आँख से ओझल हो गया है और सतही सवाल उभरकर ऊपर आ गए हैं|
असली मुद्दा यह है कि भारत ने आखिर परमाणु बम क्यों बनाया ? इस प्रश्न का उत्तर हमारी सरकार के पास न साढ़े चार साल पहले था और न अब है| पहले नहीं था, यह भूल माफ़ की जा सकती है, क्योंकि यह माना जा सकता है कि हमने बम इसलिए बना लिया कि हमारे पहले अन्य पाँच राष्ट्रों के पास था तो हमारे पास क्यों न हो ? इसलिए भी बना लिया कि वह पहले से बना-बनाया पड़ा था| हमें तो सिर्फ घोड़ा दबाना था| इसलिए भी बना लिया कि हमारे घोषणा-पत्रों में हम बनाने की कसम खाते रहे थे| राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने पूछा कि आपने क्यों बनाया तो उन्हें चिट्रठी लिखकर हमने बता दिया कि हमें चीन और पाकिस्तान से खतरा था| चीन का बम तो 1964 में ही आ गया था| 34 साल में हमें उससे कोई खतरा न हुआ और जहाँ तक पाकिस्तान का प्रश्न है, जब 11 मई 1998 को हमारा बम बना तो पाकिस्तान से हमें क्या खतरा था ? न पाकिस्तान ने तब तक बम बनाया था और न ही उसकी पारम्परिक सेना भारत से अधिक शक्तिशाली थी| अब जबकि पाकिस्तान ने हमारी देखादेखी जवाबी बम बना लिया तो सचमुच हमारी सुरक्षा को असाधारण खतरा हो गया है|
यह खतरा असाधारण क्यों है ? इसके तीन कारण हैं| पहला तो यह कि अब तक की हमारी पारम्परिक सैन्य श्रेष्ठता समाप्त हो गई है| पहले हम भारी थे, पाकिस्तान हल्का था| अब दोनों बराबर हो गए हैं| दोनों के पास परमाणु बम आ गए हैं, जो कि समूलनाशक हैं| दूसरा, भारत और पाकिस्तान की तरह दो प्रतिद्वंद्वी देश एक-दूसरे के पड़ौसी हों और उनके पास परमाणु शस्त्रास्त्र भी हों, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ| याने अमेरिका और रूस के बीच अगर प्रक्षेपास्त्र चलें तो उन्हें पहुँचने में 15 मिनिट से आधा घंटा तक लग सकता है जबकि भारत और पाकिस्तान के बीच चलें तो 2 से 5 मिनिट ही काफी हैं| तीसरा, दुनिया का कोई भी परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र पाकिस्तान की तरह उद्दंड नहीं रहा है| पाकिस्तान अन्तरराष्ट्रीय आतंकवाद का अड्रडा तो है ही, वह डंडें के ज़ोर पर कश्मीर भी छीनना चाहता है| वह 1947-48, 1965 तथा 1999 में तीन बड़ी कोशिशें कर चुका है| कौन जानता है कि वह चौथी कोशिश नहीं करेगा ? करगिल के वक्त भारत और पाकिस्तान, दोनों के पास परमाणु बम थे| इसके बावजूद पाकिस्तान ने घुसपैठ की हिमाकत की| उसे भारत के बम का ज़रा भी डर नहीं था|
यही असली मुद्दा है, भारत की परमाणु नीति का ! यदि हमारे बम से पाकिस्तान के दिल में डर भी पैदा न हो तो आखिर हमने बम किसलिए बनाया ? वास्तव में हमने बम बनाते ही पाकिस्तान को निर्भय कर दिया| हमने एक टेक पकड़ ली कि हम पहले हमला नहीं करेंगे याने हम सिर्फ जवाबी हमला करेंगे| नो फर्स्ट यूज़| हम पहल-वार नहीं करेंगे| केवल पलट-वार करेंगे| हमारा बम रक्षात्मक होगा, आक्रमणात्मक नहीं| ऐसा क्यों ? शायद इसलिए कि हम दुनिया को बताना चाहते हैं कि भारत कितना शांतिपि्रय देश है| हम अमेरिका की नज़रों में भी बुरे नहीं बनना चाहते ? हमने चीन को भी खुश करने की कोशिश की, क्योंकि यह चीन का ही नारा है कि ‘वह आगे होकर हमला नहीं करेगा’ (नो फर्स्ट यूज़) लेकिन हम यह भूल गए कि चीन ने यह घोषणा उन देशों के बार में की है, जिनके पास परमाणु हथियार नहीं हैं| क्या पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार नहीं हैं ? उसे हमने अनाक्रमण की गारंटी क्यों दे दी है ? परमाणु-अनाक्रमण की गारंटी तो नेपाल, श्रीलंका, बर्मा, भूटान आदि राष्ट्र को दी जा सकती है| इन राष्ट्रों के पास परमाणु’हथियार नहीं हैं लेकिन पाकिस्तान को अनाक्रमण की गारंटी देकर हमने उसे पहले से भी अधिक उद्दंड बनने के लिए प्रोत्साहित किया है| इसीलिए जनरल मुशर्रफ ने अपने 30 दिसंबर के इन्टरव्यू में कह दिया कि यदि ‘ऑपरेशन पराक्रम’ के दौरान भारत पाकिस्तान में एक इंच भी आगे बढ़ता तो वे परमाणु शस्त्रास्त्रों का प्रयोग कर सकते थे| याने भारत का बम कोरी गीदड़भभकी है जबकि पाकिस्तान का बम शेर की दहाड़ है| पाकिस्तान का बम अपने पाँव के बल चल रहा है और भारत का बम सिर के बल खड़ा है| आशा थी कि पिछले साढ़े चार साल के कटु अनुभवों से भारत सरकार कुछ सबक लेगी और अपनी परमाणु-जड़ता तोड़ेगी|
लेकिन भारत ने अपने परमाणु-कमान की ताज़ा घोषणा में भी यही रट लगा रखी है कि वह केवल जवाबी हमला करेगा| पाकिस्तान आगे होकर हमला कर सकता है, इस ठोस सम्भावना के बावजूद भारत अपनी पुरानी टेक पर डटा हुआ है| यह भारत का दीमागी कब्ज है| पता नहीं, कौनसे जुलाब से यह दूर होगा ? क्या यह वही कायराना हिन्दू रवैया नहीं है कि गज़नी आता है तो आने दो, ग़ोरी आता है तो आने दो, बाबर आता है तो आने दो| उनसे हम यहीं लड़ लेंगे| अपनी रक्षा कर लेंगे| लेकिन उनकी सीमा में नहीं घुसेंगे| अन्दर घुसकर नहीं मारेंगे| पहलवार नहीं करेंगे| सिर्फ पलटवार करेंगे| यह एतिहासिक दब्बूपन अब भी जस का तस जारी है|
भारत की परमाणु-नीति के निर्माता इतिहास की बेडि़यों में इस क़दर जकड़े हुए हैं कि वे वर्तमान की कटु सच्चाइयों को भी भूल गए| परमाणु-आक्रमण कोई पैदली आक्रमण नहीं होता| अब हमलावर पैदल या घोड़े पर बैठकर नहीं आएगा| परमाणु बम अब उस फुर्ती से आएँगे, जो आवाज़ में होती है| ध्वनि की गति से चलनेवाले बमों का जवाब आप कैसे देंगे ? भीष्म पितामहवाला आकाशबाण किसके पास है ? डेढ़-दो मिनिट में प्रधानमंत्री बटन कैसे दबाएँगे ? किससे सलाह करेंगे ? कैसे करेंगे ? सलाहकार परिषदें तो इस अंदाज से बनाई हैं, मानो भारत आगे होकर व्यवस्थित हमला करेगा और परमाणु सिद्घांत इस तरह से बनाया है कि वह सिर्फ जवाबी हमला करेगा| जवाबी हमले के वक्त सलाहकार परिषदों की बैठक बुलाने की फुर्सत किसे हेागी ? परमाणु हमले के समय सलाह नहीं, सिर्फ आदेश की जरूरत होगी| आदेश जारी होने और उसके पालन में भी जो समय लगेगा, उस अवधि में क्या दिल्ली का संपूर्ण सत्ता-प्रतिष्ठान राख के ढेर में नहीं बदल जाएगा ? यदि बटन दबाने के लिए प्रधानमंत्री उपलब्ध नहीं होंगे तो उनके बाद उनका उत्तराधिकार किस क्रम से आगे सरकेगा, यह भी पता नहीं है| अमेरिका आदि देशों में उत्तराधिकार-क्रम काफी दूर तक सुपरिभाषित है| भारत उसे गोपनीय रखे, इसमें बुराई नहीं है लेकिन गोपनीय रखने लायक कोई क्रम तो उसके पास हो| परमाणु हमला सोच-विचार की मोहलत नहीं देता जबकि हमारी सरकार तो स्वभाव से कुंभकर्णवादी है| करगिल में दुश्मन घुस गए, उसे पता नहीं चला, उसका जहाज आतंकवादी कंधार उड़ा ले गए, उसे पता नहीं चला और उसकी संसद पर हमला हो गया, उसे पता नहीं चला| तो अब उसे कैसे पता चलेगा कि पाकिस्तान उस पर परमाणु बम कब फेंक रहा है ?
यदि कोई परमाणु बम भारत पर गिरे तो वह पाकिस्तान ने ही फेंका है, यह कैसे पता चलेगा ? क्या दो मिनिट में यह पता चल सकता है कि बम पाकिस्तान ने फेंका है या उसके आतंकवादियों ने ? यदि आतंकवादियों ने फेंका हो तो भी क्या भारत पाकिस्तान पर पलटवार करेगा ? क्या इस तरह का पलटवार उचित होगा? यदि भारत की फौजें मानो लाहौर पर कब्जा कर लें और पाकिस्तान सिर्फ उन फौजों पर परमाणु बम चला दे तो भारत पलटवार करेगा या नहीं ? वह हमला भारत पर तो नहीं हुआ| उनके अपने लाहौर पर हुआ| भारत अपना हाथ रोकेगा तो गलत होगा और चलाएगा तो क्या यह नहीं माना जाएगा कि उसने जवाबी हमला नहीं, पहलवार, अगाऊ हमला या अग्राक्रमण किया है ? यदि भारत को यह खबर मिले कि पाकिस्तानी परमाणु बम चलने ही वाला है तो ऐसे में क्या भारत उस बम के गिरने का इन्तज़ार करेगा या पहले ही हमला बोल देगा, वह इन्तज़ार करेगा तो वह परले दर्जे की मूर्खता होगी और पहले ही हमला बोल देगा तो उसके परमाणु सिद्घान्त का उल्लंघन हो जाएगा| इस परमाणु सिद्घांत का उल्लंघन न हो, क्या इसके लिए भारत को आत्मघात की मूर्खता करनी होगी ? ऐसे आत्मघाती और मूर्खतापूर्ण सिद्घान्त को जितनी जल्दी तिलांजलि दी जाए, उतना ही अच्छा !
यह तर्क बिल्कुल बोदा है कि भारत यदि जवाबी हमले की बजाय पहले हमले का सिद्घांत बनाता तो वह बहुत खतरनाक होता| भारत को सतत सतर्कता की स्थिति में रहना पड़ता, जो खर्चीली तो होती ही, साथ में यह डर भी होता कि किसी भी गलतफहमी के कारण कभी भी परमाणु-युद्घ भड़क उठता| पाकिस्तान शांत रहने की बजाय सदा उत्तेजित रहता| यहाँ सच्चाई एकदम उलट है| हमले का मुकाबला करनेवाले को अधिक सतर्क रहना पड़ता है या हमला करनेवाले को ? मुकाबला करनेवाले को पता नहीं होता कि हमला कब होगा जबकि करनेवाले को पता होता है कि वह हमला कब करेगा ? किसे अधिक सतर्क रहना होगा ? किसे अधिक खर्च करना होगा ? इसके अलावा जवाबी हमले की हमारी नरम नीति का पाकिस्तान पर क्या असर हुआ ? यही न, कि वह हमें आँखें दिखाता है| आँखें दिखानेवाले की हम आँखें निकाल लें, यह जरूरी नहीं लेकिन हमारी आँखें हमेशा नीचे ही रहें, यह जरूरी क्यों है ?
यह संतोष की बात नहीं कि जवाबी हमला जबर्दस्त होगा| इतना जबर्दस्त कि दुश्मन को वह ‘अस्वीकार्य’ (अनएक्सेप्टेबल) होगा| धन्य हैं, हमारे नौकरशाह ! अंग्रेजी भाषा की गुलामी उनसे क्या-क्या शब्द कहलवाती है| ‘अनएक्सेप्टेबल’ का मतलब क्या है ? याने जवाबी हमले में जो नाश होगा, वह पाकिस्तान को स्वीकार नहीं होगा जैसे किसी को बैंगन की सब्जी स्वीकार नहीं होती या कद्दू स्वीकार नहीं होता| क्या परमाणु हमला किसी को भी किसी भी रूप में स्वीकार होता है ? जवाबी हमला स्वीकार नहीं होगा तो क्या अगाऊ हमला स्वीकार होगा ? जैसा जवाबी हमला, वैसा अगाऊ हमला| अगाऊ हमला ही इतना जबर्दस्त हो सकता है कि उसका जवाबी हमला संभव ही न हो| परमाणु युद्घ के पहल-वार और पलट-वार में ज्यादा फर्क नहीं होता| इसीलिए जवाबी हमले को अपनी परमाणु नीति की धुरी बनाना गलत है|
इसके अलावा अगर पाकिस्तान भारत के परमाणु संस्थानों पर परमाणु बम न गिराए और उन्हें साधारण बमों से उड़ा दे तो भारत क्या करेगा ? क्या वह इसे पाकिस्तान का परमाणु हमला मानेगा ? क्या वह जवाबी परमाणु हमला करेगा या परम्परागत हवाई हमले से जवाब देगा ? यदि वह परमाणु हमला करता है तो उसके सिद्घांत का उल्लंघन होगा और अगर नहीं करता है तो वह नखदन्तहीन बूढ़े बंदर की तरह सिर्फ किलकारियाँ भरता रहेगा| यदि भारत स्वयं पाकिस्तान के परमाणु संस्थानों को परम्परागत तरीकों से उड़ाना चाहे तो क्या यह जवाबी परमाणु हमला माना जाएगा ? जाहिर है कि नहीं लेकिन ऐसा करना जरूरी हो सकता है जैसा कि एराक के ओसिराक संयंत्र पर हमला करना इस्राइल के लिए जरूरी हो गया था| कहने का अर्थ यह कि परमाणु मामलों में इतनी अकस्मात स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं कि उन्हें किसी संकीर्ण सिद्घांत की बेडि़यों में जकड़ना ठीक नहीं है|
1999 के मुकाबले इस बार सरकार ने थोड़ी बहादुरी दिखाई है| इस बार परमाणु कमान की घोषणा के समय उसने यह भी कहा कि यदि किसी देश ने भारत के विरुद्घ जैविक या रासायनिक हथियारों का प्रयोग किया तो भारत उसके विरुद्घ परमाणु हथियारों का प्रयोग करेगा| कौनसा ऐसा देश है, जो इस तरह के हथियार भारत के विरुद्घ इस्तेमाल कर सकता है ? पाकिस्तान और चीन, दोनों ने ऐसी संधियों पर हस्ताक्षर कर रखे हैं, जिनके अनुसार ऐसे हथियार बनाना, रखना या उनका प्रयोग करना गैर-कानूनी है| फिर भी यह मुद्दा अगर पाकिस्तान को धमकाने के लिए जोड़ा गया है तो पूछा जा सकता है कि परमाणु हथियारों के दण्डात्मक प्रथम प्रहार की बात क्या इससे बेहतर धमकी नहीं होती ? जवाबी हमले की बात ही यह सिद्घ करती है कि भारत धमकाने की कला में माहिर नहीं है| ऐसी स्थिति में जैविक और रासायनिक हथियारों के काल्पनिक आक्रमण के विरुद्घ जवाबी परमाणु हमले की बात ऐसी लगती है, जैसे कोई हवा में लठ्रठ चला रहा हो या मच्छर को मारने के लिए तमंचे की धमकी दे रहा हो|
भारत ने अपने लिए जो परमाणु नीति चुनी है, उसमें न तो पारम्परिक महाशक्तियों की तरह हिंस्र-भाव है और न ही गांधीवादी नव-महाशक्ति की तरह कोई शांति-कामना है| हमारी राय है कि 21वीं सदी के भारत की परमाणु-नीति में इन दोनों धाराओं का सुन्दर समागम संभव है| पाकिस्तान जैसे आक्रमक राष्ट्रों के लिए जवाबी हमला नहीं, दण्डात्मक अग्र आक्रमण की चेतावनी हो और उसके साथ-साथ सारे विश्व के लिए ऐसे व्यापक और समग्र निरस्त्रीकरण का कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाए कि न केवल परमाणु शस्त्रास्त्रों का खात्मा हो बल्कि विनाशकारी युद्घ इतिहास के विषय बन जाएँ| भारत का परमाणु बम शांति का ब्रह्मास्त्र बन सकता है बशर्ते कि भारत का वर्तमान नेतृत्व इस अपराध-बोध से मुक्त हो जाए कि परमाणु बम फोड़कर उसने कोई गलत काम किया है| भारत का परमाणु बम भारत की सामरिक संप्रभुता का शंखनाद है| वह तीसरी दुनिया की सामरिक आत्म-निर्भरता का प्रतीक है| यदि भारत तीसरी दुनिया को अपने साथ ले सके तो परमाणु बमों से रहित दुनिया का सपना साकार होने में बहुत देर नहीं लगेगी| अब न तो शीतयुद्घ बचा है और न ही महाशक्तियों की परमाणु प्रतिद्वंद्विता| अमेरिका के एकध्रुवीय विश्व में परमाणु निरस्त्रीकरण अब जितना आसान है, उतना पहले कभी नहीं था| भारत के परमाणु निरस्त्रीकरण अभियान को तीसरा दुनिया नैतिक-समर्थन प्रदान करे और अमेरिका सैन्य-समर्थन तो सर्वनाश के कगार पर खड़ी दुनिया वापस शांति के शिविर में लौट सकती है|
(डॉ. वैदिक भारतीय विदेश नीति परिषद् के अध्यक्ष हैं तथा भारतीय प्रतिरक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान के सीनियर फैलो रह चुके हैं)
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