नवभारत टाइम्स, 3 फरवरी 2003। अच्छा दिखने की इच्छा हमेशा अच्छी नहीं होती| कभी-कभी तो वह बहुत बुरी होती है| आजकल भारत सरकार इसी तरह की इच्छा से ग्रस्त है| वह अपने हाथ में परमाणु बम भी रखना चाहती है और ‘सान्ता क्लाउज़’ भी दिखना चाहती है| उसकी हसरत है कि लोग बम को बम नहीं, खिलौना समझें| बम तो उसने बना लिया लेकिन बिना माँगे ही वह सारी दुनिया को वचन देती फिर रही है कि उसका इस्तेमाल वह आगे होकर कदापि नहीं करेगी| उसे नहीं करना है, न करे लेकिन उसकी कसमें खाने की क्या जरूरत है ? कसमें शायद इसलिए खाई जा रही हैं कि हम गाँधी का देश हैं, हम नेहरू के उत्तराधिकारी हैं, हम बड़ें शांतिपि्रय हैं, हमारा आचरण दूसरों के लिए अनुकरणीय होना चाहिए !
आपके आचरण का अनुकरण कौन कर रहा है ? कोई भी नहीं| पाकिस्तान भी नहीं| वह पाकिस्तान भी नहीं, जिसने आपका अनुकरण करते हुए परमाणु बम बना लिया| वह आपकी बहादुरी की नकल करता है, भौंदूपन की नहीं| बम बनाने के बहुत पहले से हम यह नारा दे रहे हैं कि ‘हम पहले प्रहार नहीं करेंगे’ (नो फर्स्ट यूज़) और अब जबकि बम बन चुका है, साढ़े चार साल बाद भी हम यही सिद्घान्त बघार रहे हैं कि हम केवल जवाबी हमला करेंगे| प्रथम प्रहार नहीं करेंगे| केवल पलट-प्रहार करेंगे| पाकिस्तान ने यह बात न तो बम बनाने के पहले कही और न उसके बाद ! क्या पाकिस्तान की नाक कट गई ? क्या दुनिया का एक देश भी इस बात के लिए पाकिस्तान की आलोचना कर रहा है ? न कोई पाकिस्तान की आलोचना कर रहा है और न कोई भारत की सराहना! याने अगर भारत ने वाहवाही लूटने के लिए ही ‘प्रथम प्रहार नहीं’ का सिद्घांत बनाया है तो यह सिद्घांत तो गल गया| भारत का बम तो दुनिया को दिखाई पड़ रहा है| लोग उसे सलाम भी कर रहे हैं लेकिन ‘सान्ता क्लाउज़’ पर कोई नज़र भी नहीं डाल रहा ! डर यही है कि ‘सान्ता क्लाउज़’ कहीं सान्ता क्लाउज न बन जाए !
सिर्फ चीन ऐसा देश है, जिसने बम भी बनाया और ‘प्रथम प्रहार नहीं’ का सिद्घांत भी दिया| चीन के अलावा किसी भी परमाणु-शक्ति ने बम बनाते वक्त इस सिद्घांत की टेर नहीं लगाई| चीन का मामला कुछ दूसरा था| चीन ने जब 1964 में बम बनाया तो उसे पता था कि वह किसी का भी सीधा परमाणु प्रतिद्वंद्वी नहीं है| असली परमाणु-प्रतिद्वंद्विता केवल अमेरिका और सोवियत संघ के बीच है| वे ही एक-दूसरे पर परमाणु-हमला कर सकते हैं| अमेरिका चीन पर परमाणु हमला करेगा, यह सोचा भी नहीं जा सकता था| इसी प्रकार हजारों मील दूर बैठा चीन अमेरिका पर परमाणु-हमला कैसे करता ? उसके पास इतनी लंबी मारवाले परमाणु-प्रक्षेपास्त्र ही नहीं थे| ऐसे में ‘प्रथम प्रहार नहीं’ का सिद्घांत बढि़या कूटनीति थी, बढि़या रणनीति नहीं| उस समय चीन न तो प्रथम प्रहार कर सकता था और न पलट-प्रहार| वह अमेरिका के ‘प्रथम-प्रहार’ से डरा हुआ जरूर था| इसीलिए वह प्रथम प्रहार के विरुद्घ था| क्या आज भारत और पाकिस्तान के बीच भी वही स्थिति है, जो अब से चालीस वर्ष पहले चीन और अमेरिका के बीच थी ? बिल्कुल नहीं| बल्कि उलटी स्थिति है| पहला, भारत और पाक परमाणु-प्रतिद्वंद्वी हैं| दोनों एक दूसरे पर प्रहार कर सकते हैं और प्रथम प्रहार भी कर सकते हैं| दूसरा, दोनों एक-दूसरे के पड़ौसी हैं जबकि चीन और अमेरिका एक-दूसरे से हजारों मील दूर हैं| तीसरा, चीन जब कहता है कि ‘प्रथम प्रहार नहीं’ तो उसका अर्थ था, अमेरिका की तरफ से प्रथम प्रहार नहीं, क्योंकि वह खुद प्रथम प्रहार किस पर करता लेकिन जब भारत कहता है कि ‘प्रथम प्रहार नहीं’ तो उसका अर्थ हुआ कि भारत की तरफ से नहीं होगा| पाकिस्तान की तरफ से हो सकता है| याने ‘प्रथम प्रहार नहीं’ का सिद्घांत चीन में पैर के बल खड़ा है और भारत पहुँचते ही वह सिर के बल खड़ा हो गया| चीन का सिद्घांत अपने दुश्मन को बेड़ी पहनाने के लिए था और भारत का सिद्घांत अपने ही हाथ में हथकडि़याँ लगाने के लिए है|
चीन ने अपने पुराने सिद्घांत में इधर कुछ फेर-बदल भी किया है| अब वह कहता है कि ‘प्रथम प्रहार नहीं’ का सिद्घांत केवल उन देशों पर लागू होगा, जिनके पास परमाणु शस्त्रास्त्र नहीं हैं याने वह नेपाल और भूटान जैसे देशों पर प्रथम प्रहार नहीं करेगा लेकिन भारत और पाकिस्तान जैसे देशों पर कर सकता है| इसी तर्क के आधार पर पूछा जा सकता है कि क्या पाकिस्तान भी नेपाल और भूटान की तरह परमाणु शस्त्रास्त्र रहित देश है ? जब पाकिस्तान परमाणु-शस्त्रास्त्र सम्पन्न राष्ट्र है और वह स्वयं प्रथम प्रहार के विरुद्घ नहीं तो आप ‘प्रथम प्रहार नहीं’ की गारंटी उसे क्यों दे रहे हैं ? यह गारंटी चीन को दी जाए, क्योंकि वह भी वैसी ही गारंटी देगा, और उससे उभयपक्षीय समझौता किया जाए तो उसमें कोई बुराई नहीं लेकिन पाकिस्तान को यह गारंटी देना, उसे प्रथम प्रहार के लिए आमंत्रित करना है| भारत का यह निमंत्रण उसने सहर्ष स्वीकार भी किया है| इसीलिए अपने 30 दिसंबर के इंटरव्यू में जनरल मुशर्रफ ने कहा कि यदि करगिल-युद्घ के दौरान भारत एक इंच भी आगे बढ़ता तो वे परमाणु बम का प्रयोग करते ! याने प्रथम प्रहार करते | पाकिस्तान का परमाणु बम भारत को ब्लेकमेल कर रहा है और भारत का परमाणु बम पाकिस्तान में सिहरन भी पैदा नहीं कर रहा| इसीलिए नहीं कर रहा कि हमने जिसके लिए बम बनाया, उसे पहले ही आश्वस्त कर दिया कि यह तुम्हारे लिए नहीं है| यह उसके लिए है, जो हम पर हमला करेगा|
याने अब हम हमले का इन्तज़ार करेंगे| सिर्फ जवाबी हमला करेंगे| केवल दूसरा प्रहार करेंगे ? दूसरा प्रहार तो तब करेंगे, जब हम बचेंगे| पहले प्रहार के बाद कौन बचेगा ? दिल्ली का सत्ता-प्रतिष्ठान सबसे पहले उड़ेगा| रेसकोर्स रोड, राष्ट्रपति भवन, संसद, विजय चौक और जनपथ के लिए कितने बम चाहिए ? यदि हमारे परमाणु शस्त्रास्त्र हमने लक्षदीप, अण्डमान और गुवाहाटी में भी छिपा रखे हों तो भी उन्हें चलाने का आदेश कौन देगा ? अगर आदेश पहले से ही तैयार हों और उन्हें चला भी दिया जाए तो भी क्या होगा ? पाकिस्तान के सत्ता-प्रतिष्ठान को छूना मुश्किल होगा जबकि भारत का सत्ता-प्रतिष्ठान दिवंगत हो चुका होगा| दोनों तरफ लाखों बेकसूर लोग मौत के घाट उतरेंगे| ऐसी विजय महाभारत की विजय से भी बदतर होगी| क्या इसी तरह की विजय के लिए हमने परमाणु बम बनाया है ?
बम बनाया है तो उसका प्रयोग करना ही है, यह तो बहुत मूर्खतापूर्ण सोच है लेकिन हम प्रथम प्रहार नहीं करेंगे, ऐसी रट लगाना उसके प्रयोग को प्रोत्साहित करना ही है| यदि हम ‘प्रथम प्रहार नहीं’ को प्रस्ताव की तरह इस्तेमाल करें और उसे दिखाकर पाकिस्तान तथा अन्य परमाणु-शक्तियों को उसी तरह की घोषणा के लिए प्रेरित करें तो हमारा सिद्घांत विश्व शांति की सीढ़ी बन सकता है| पिछले 57 वर्षों में परमाणु बम आखिर क्यों नहीं चला ? बर्लिन, कोरिया, क्यूबा के बावजूद क्यों नहीं चला ? इसीलिए कि जो राष्ट्र चला सकते थे, उन्होंने कभी ‘प्रथम प्रहार नहीं’ का झूठा आश्वासन नहीं दिया| सभी परमाणु-शक्तियाँ प्रथम प्रहार के लिए तैयार दिखाई पड़ती थीं| भय और सतर्कता दोनों ही पराकाष्ठा पर थे, इसीलिए परस्पर का समान भय सबको रोके रहा| यह नहीं हो सकता कि दो प्रतिद्वंद्वियों में से एक इस सिद्घांत को माने और दूसरा न माने| यथास्थिति या शांति तभी बनी रह सकती है कि जबकि दोनों किसी परमाणु सिद्घांत को एक साथ मानें या एक साथ न मानें|
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