भारतीय सेनापति जनरल बिपिन रावत के बयान पर विचित्र किस्म की राजनीति हो रही है। भाजपा और कांग्रेस के छोटे-मोटे नेताओं और प्रवक्ताओं ने बयानों की झड़ी लगा दी है। दोनों पार्टियां एक-दूसरे को देशद्रोही सिद्ध करने पर उतारु हो गई हैं। जनरल रावत ने यही तो कहा है कि कश्मीर के आंदोलनकारी नौजवान यदि पत्थर मारते हैं और हिंसा करते हैं तो उनके साथ सख्ती बरती जाएगी।
फौज का काम क्या होता है? क्या उसका काम लोगों को रसगुल्ले बांटने का होता है या चिकन-बिरयानी खिलाने का होता है? जब सरकार को सख्ती करना हो, हिंसा करना हो, लोगों को डराना या मारना हो या दुश्मनों से लड़ना हो तो फौज का इस्तेमाल होता है। आजकल कश्मीर में यह नया पैंतरा चल गया है कि लोग फौज और पुलिस पर बेशुमार पत्थर बरसाते हैं। ऐसे में फौजी क्या करते हैं? जिनके हाथ में पत्थर है, वो पत्थर चलाते हैं और जिनके हाथ में बंदूक है, वे गोली चलाते हैं। आप क्या चाहते हैं? पत्थरों के जवाब में पुलिस और फौज भी पत्थर चलाए?
इसीलिए जनरल रावत ने जो बयान दिया है, वह स्वाभाविक है। वह तो बयान भर ही है। इसका मकसद डर पैदा करना भी है ताकि पत्थर-युद्ध बंद हो या घट जाए। लेकिन हमारी सरकार या फौज को यह नहीं भूलना चाहिए कि कश्मीरी लोग भी भारतीय नागरिक हैं। हमारे भाई हैं। उन पर जुल्म करना भी ठीक नहीं है। यदि कुछ गुमराह नौजवान पत्थर बरसाते हैं तो उन्हें रोकना जरुर चाहिए लेकिन उनकी आंखें फोड़ डालना, हाथ-पांव तोड़ देना और हत्या करना ठीक नहीं है। यह अपनी ताकत का बेजा इस्तेमाल है।
पिछले दिनों हजारों नौजवान इसके शिकार हुए हैं। हमारी संसद ने इस वाकिए पर ध्यान दिया और सरकार ने घायलों के इलाज की विशेष व्यवस्था की। भारत की फौज निरंकुश नहीं है। बहुत ही अनुशासित है। वह बड़ी मुश्किलों का सामना करती है। वह हर कीमत पर देश की रक्षा करती है। उसकी टांग-खिचाई करना ठीक नहीं है लेकिन फौज के अफसर भी विवादास्पद बयान देने से बचें तो बेहतर होगा।
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