भास्कर, 12 मई 2005। डॉ. राममनोहर लोहिया ने कभी कहा था कि जि़न्दा क़ौमें पॉंच साल इंतजार नहीं करतीं| लेकिन जो क़ौम पॉंच साल में सिर्फ एक दिन जिंदा होती है, वह क्या करेगी? चुनाव के दिन हम अपना वोट डालते हैं और फिर पॉंच साल तक हम सोये पड़े रहते हैं| हमारे विधायक और सांसद चाहे अयोग्य, अकर्मण्य या भ्रष्ट सिद्घ हों, हम कुछ नहीं कर सकते| न हम यथायोग्य क़ानून बनवा पाते हैं, न गलत क़ानून का निषेध करवा पाते हैं और न ही अपने जन-प्रतिनिधियों को वापस बुला पाते हैं| हमें पॉंच साल तक इंतजार करना पड़ता है| यही क़ौम का मुर्दा होना है| जिन प्रतिनिधियों को जनता चुनती है, वे जनता के प्रति नहीं, अपने पार्टी-नेताओं के प्रति जवाबदेह हो जाते हैं| जवाबदेही सिर के बल खड़ी हो जाती है| जवाबदेही को पॉंव के बल खड़ा करना ही सीधा लोकतंत्र है| यदि भारत की जनता को तीन अधिकार – पहल, निषेध और वापसी – मिल जाऍं तो भारत का लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा ही नहीं, सबसे अच्छा लोकतंत्र भी बन जाएगा|
यदि विधायकों और सांसदों को यह पता हो कि उनकी अवधि पूरी हो, उसके पहले ही जनता उन्हें बर्खास्त कर सकती है तो समझ लीजिए कि वे कितने जवाबदार, जिम्मेदार और विनम्र हो जाएंगे| स्विटजरलैंड, अमेरिका के 18 राज्यों, आस्ट्रेलिया, केनाडा, आयरलैंड, इटेली, स्वीडन आदि देशों में इस तरह के प्रावधानों के कारण काफी जागरूकता है| जनता की सतत सतर्कता ही उनकी स्वतंत्रता की गारंटी है| यह ठीक है कि जन-प्रतिनिधियों की वापसी की प्रक्रिया में निजी राग-द्वेष, साधनों का दुरुपयोग, फोकट नेतागीरी आदि की अवांछनीय भूमिका हो सकती है लेकिन क्या कांटों के डर के मारे हम गुलाब को सूंघना बंद कर देते हैं? हाल ही में पारित सूचना के अधिकार के कानून की अगली कड़ी है, जनता को कानून बनाने की पहल, गलत कानून के निषेध और जन-प्रतिनिधियों की वापसी का अधिकार देना| इन अधिकारों के मिलने पर भारत की जनता पूरे पांच वर्षों तक हर दिन देश की मालिक बन कर रहेगी| अभी वह सिर्फ चुनाव के दिन ही मालिक होती है| यह हमें तय करना है कि भारत की जनता को हम सिर्फ एक दिन का मालिक बनाए रखना चाहते हैं या हर दिन का? जिस देश की जनता हर दिन की मालिक होती है, वह अपनी भाग्य-विधाता स्वंय होती है और जहॉं वह पॉंच साल में सिर्फ एक दिन की मालिक होती है वहॉं मुनीम ही असली मालिक बन बैठते हैं| भारतीय लोकतंत्र इसे वहॉं मुनीमवाद का बंदी बन गया है| यदि उसे मुनीमवाद से मुक्त करना हो तो अयोग्य मुनीमों की वापसी का अधिकार उसे मिलना ही चाहिए|
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