दैनिक भास्कर, भोपाल, 13 January 2010 : बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की यह भारत यात्रा ऐतिहासिक सिद्ध होगी, इसमें जरा भी शक नहीं है। यह भारत-बांग्ला स्वर्ण युग का प्रारंभ है। बांग्लादेश का जन्म 1971 में हुआ, लेकिन पिछले 39 सालों में से ३क् से भी ज्यादा साल तक ढाका में ऐसी सरकारें बनीं, जिनका एक ही मूल मंत्र रहा, भारत विरोध। भारत विरोध के नाम पर या तो वे चुनाव जीतती थीं या फौजी तख्तापलट के बाद वे भारत विरोध के दम पर अपना औचित्य सिद्ध करती थीं।
उन सरकारों ने भारत के साथ सहज संबंध बनाने की बजाय ऐसे कदम उठाए, जिससे भारत का नुकसान हुआ। भारत की छवि बिगड़ी। भारत के दुश्मनों को मदद मिली और बांग्लादेश को कोई फायदा नहीं हुआ। कुछ बांग्लादेशी सरकारों ने ऐसे राष्ट्रों के साथ भी अपनी सांठ-गांठ बढ़ा ली, जो भारत को तबाह करने पर तुले हुए थे। शेख हसीना और उनके पिता शेख मुजीब तो भारत के अभिन्न मित्र रहे हैं, लेकिन शेख हसीना के पिछले शासनकाल के दौरान भी अनेक अड़चनें बनी रहीं।
फरक्का जल विवाद जरूर सुलझा, लेकिन हसीना सरकार तब इतनी मजबूत नहीं थी कि वह कोई जबर्दस्त कदम उठा पाती और इधर भारत में उस समय कई अल्पकालिक सरकारें बनीं, जिनका ध्यान आंतरिक उठापटक पर अधिक केंद्रित रहा। इस बार शेख हसीना प्रचंड एवं अपूर्व बहुमत से जीती हैं और यह संयोग है कि समस्त भारत विरोधी ताकतों की पोल खुल चुकी है। भारत विरोधी ताकतें आजकल इतनी पस्त हैं कि शेख हसीना की इस भारत यात्रा का उन्हें स्वागत करना पड़ा है।
शेख हसीना की इस यात्रा के दौरान भारत और बांग्लादेश के बीच जो समझौते हुए हैं, वे सिर्फ इन दो देशों ही नहीं, बल्कि नेपाल, भूटान और म्यांमार पर भी गहरा असर डालेंगे। भारत ने बांग्लादेश को एक बिलियन डॉलर यानी लगभग 4500 करोड़ रुपए का अनुदान दिया है। किसी भी विकासमान राष्ट्र के लिए यह बहुत बड़ी राशि है। इतनी बड़ी राशि भारत ने अब से पहले किसी भी राष्ट्र को एकमुश्त नहीं दी है।
भारत ने अफगानिस्तान को लगभग सवा बिलियन डॉलर दिए हैं, लेकिन वे उसे पिछले 7-8 वर्षो में मिले हैं। इस घोषणा से दो बातें सिद्ध होती हैं। एक तो यह पता चलता है कि भारत स्वयं समर्थ राष्ट्र है और दूसरा यह कि वह अपने पड़ोसी राष्ट्रों के प्रति उदार है। भारत की इस घोषणा का सीधा लाभ शेख हसीना को मिलेगा। बांग्लादेश में कहा जाएगा कि शेख हसीना की जगह यदि बेगम खालिदा जिया या इरशाद होते तो क्या भारत इतनी बड़ी राशि दे देता?
अब हसीना के विरोधियों की बोलती बंद हो जाएगी। भारत की इस उदारता का असर अन्य पड़ोसी राष्ट्रों पर भी पड़ेगा। भारत की इस उदारता का मार्ग हसीना ने पहले ही प्रशस्त कर दिया था। असम के आतंकवादी नेता राजखोवा को भारत के हवाले करके ढाका सरकार ने यह स्पष्ट संकेत दे दिया था कि अपनी जमीन पर वह कोई भी भारत विरोधी गतिविधि बर्दाश्त नहीं करेगी।
सच्चई तो यह है कि ढाका की पिछली कुछ सरकारों ने न केवल भारत विरोधी आतंकवादियों को प्रश्रय दिया, बल्कि उन्हें पाकिस्तान के शीर्ष नेताओं से भी मिलवाया था। अब जो तीन सुरक्षा समझौते हुए हैं, उनके तहत दोनों देश आपराधिक मामलों में पारस्परिक कानूनी सहायता करेंगे, सजायाफ्ता लोगों को लौटाएंगे, आतंकवादियों, गिरोहों और तस्करों के विरुद्ध संयुक्त कार्रवाई करेंगे। इन समझौतों के कारण भारत को समस्त पूर्वाचल में शांति स्थापित करने में सुविधा होगी।
उन समाज विरोधी तत्वों को भी वह अपनी गिरफ्त में ले सकेगी, जो बांग्लादेश में छुपकर पाकिस्तानी, श्रीलंकाई और बर्मी आतंकवादियों से सांठ-गांठ करते रहते हैं। भारत ने बांग्लादेश को नेपाल और भूटान तक आने-जाने के लिए रेल और सड़क की सुविधा देने की भी घोषणा की है। बांग्लादेश ने अखौरा-अगरतला रेल-लिंक बनाने पर सहमति दी है। यह शुरुआत है और बहुत अच्छी है।
यदि भारत और बांग्लादेश अपनी-अपनी सीमा में से दोनों के माल और लोगों के लिए रास्ता खोल दे तो यह संपूर्ण पूर्वाचल के लिए युगांतरकारी कदम होगा। यदि कलकत्ता और अगरतला के बीच बांग्लादेश होकर रेल और सड़कें दौड़ने लगें तो 1700 किलोमीटर का फासला सिर्फ ५क्क् किलोमीटर रह जाएगा। बांग्लादेशी रास्तों के खुल जाने से भारत, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और म्यांमार का आपसी व्यापार कई गुना बढ़ जाएगा।
बांग्लादेश के फायदों को देखकर कोई आश्चर्य नहीं कि किसी दिन पाकिस्तान भी अपने थल मार्ग भारत के लिए खोल देगा। उस दिन संपूर्ण मध्य एशिया और दक्षिण एशिया के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक सहकार के नए युग का सूत्रपात होगा। पड़ोसी देशों का भय और संशय दूर करने के लिए भारत को एकतरफा उदारता भी दिखानी पड़े तो दिखानी चाहिए। यह उदारता मनमोहन सिंह सरकार प्रचुर मात्रा में दिखा रही है।
बांग्लादेश के साथ भारत का व्यापार बढ़े और भारत में बांग्ला माल ज्यादा खपे, इस दृष्टि से कई रियायतें दी जा रही हैं। अभी बांग्लादेश भारत से लगभग २५क्क् मिलियन डॉलर का आयात करता है, लेकिन भारत को उसका निर्यात ५क्क् मिलियन डॉलर भी नहीं है। भारत ने बांग्ला वस्तुओं पर तट कर घटाया है और 700 वस्तुओं की निषेध सूची को घटाकर ४क्क् वस्तुओं की कर दिया है। यदि पड़ोसी देशों के माल को कर मुक्त कर दिया जाए तो आखिर भारत का कितना नुकसान हो जाएगा?
भारत थोड़ी पहल करे तो अगले पांच वर्षो में ही दक्षिण एशिया में मुक्त बाजार की स्थापना हो सकती है। भारत ने बांग्लादेश को 250 मेगावाट बिजली देने का वायदा भी किया है। दोनों देशों का जल आयोग भी अब अधिक सक्रिय किया जाएगा ताकि बांग्लादेश को बाढ़ से बचाया जा सके और दोनों देशों के जलस्रोतों का बहुविध उपयोग किया जा सके। इसके अलावा बांग्लादेश के आशुगंज और भारत के सिलीघाट बंदरगाहों को भी एक-दूसरे के लिए खोला जाएगा।
अब चिटगांव और मंगला के बारे में भी थोड़ी उदारता बरती जाएगी। 300 बांग्ला युवकों को भारत छात्रवृत्ति देगा और अगले साल दोनों देश मिलकर रवींद्र ड़ेढ शतक भी मनाएंगे। पिछले ३९ साल में कुल मिलाकर जितनी गहरी समझ दोनों देशों में पैदा नहीं हुई, उससे कहीं ज्यादा इस यात्रा के दौरान दिखाई पड़ रही है। सोनिया गांधी और प्रतिभा पाटील के साथ छपे हसीना के आत्मीय चित्र अपनी कहानी खुद कहते हैं।
इसमें संदेह नहीं कि ‘भारत पलट हसीना’, अब दूसरी हसीना होंगी। बांग्लादेश में अब उनका जलवा कुछ और ही होगा। भारत से जुड़ा उनका तार अब उन्हें अधिक विद्युतमय बना देगा। उनकी यह यात्रा उन्हें शेख मुजीब के सपनों का बांग्लादेश बनाने में काफी मदद करेगी। प्रधानमंत्री के तौर पर शेख हसीना कई अन्य देशों का सफर करेंगी, लेकिन क्या इस सफर से ज्यादा हसीन कोई अन्य सफर होगा?
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