राष्ट्रीय सहारा, 6 दिसंबर 2003: तीन मूर्ति भवन में हुई अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी ने हमारी ऑंखें खोल दीं| इस संगोष्ठी में चीन, जापान, यूरोप, अमेरिका, अफ्रीका आदि से लगभग दर्जन भर विद्वान आए थे| चीनी विद्वान प्रो. कुई ने जो कुछ कहा था, वह आपने पिछले हफ्ते पढ़ा| दूसरे दिन की संगोष्ठी की अध्यक्षता करने के लिए मुझे कहा गया| जितने विदेशी विद्वान बोले, उनसे उनके देशों में अक्सर मेरी भेंट होती रहती है| मुझे अध्यक्ष की कुर्सी में बैठा देख उन विद्वानों ने जबर्दस्त वाक्र-स्वातंत्र्य का परिचय दिया| अपने-अपने देश में हिन्दी की स्थिति पर तो उन्होंने प्रकाश डाला ही, सबने भारत में हिन्दी की स्थिति को भी लपेट लिया| मोरिशस के प्रसिद्घ विद्वान और संपादक डॉ. जागासिंह ने कहा कि मैंने तय किया है कि मैं अपनी मॉं को कभी भारत नहीं दिखाऊॅंगा| किसी मोरिशसीय व्यक्ति के मॅुंह से ऐसा वाक्य पहले किसी ने नहीं सुना था| वहॉं तो जीवन-भर लोग यही साध लगाए रहते हैं कि कुछ पैसा हो जाए तो भारत चलें| डॉ. जागासिंह के यह बोलते ही श्रोताओं को सॉंप-सा सॅूंघ गया| उन्होंने तुरंत कारण बताया| उन्होंने कहा कि अगर मेरी मॉं को मैं भारत ले आया तो मुम्बई या दिल्ली के हवाई अड्डे पर ही भारत की तस्वीर चूर-चूर हो जाएगी| मेरी बूढ़ी मॉं समझती है कि भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी है| अगर वह भारत न आए तो कम से कम यह भ्रम तो उसके दिल में सदा बना ही रहेगा| इसी प्रकार जर्मन विद्वान फ्रीडमान श्लेंडर ने कहा कि जर्मनी में रहनेवाले भारतीयों के बच्चे आपस में कभी हिन्दी में बात नहीं करते और वे अपने मॉं-बाप की आपसी बातचीत भी नहीं समझते| हिन्दी छूटने के कारण पीढि़यों के बीच का सेतु टूट रहा है| रूस से आए विद्वान डॉ. वारान्निकोफ़ तो बहुत ही दुखी थे| उन्होंने और उनके स्वनामधन्य पिता ने पूरा जीवन ही हिन्दी के लिए खपा दिया लेकिन भारत के उच्च वर्गों में हिन्दी की दुर्दशा देखकर वे आश्चर्यचकित हैं| वैश्वीकरण के नाम पर अंग्रेजी की गुलामी का लगभग सभी वक्ताओं ने विरोध किया| उस गोष्ठी में तथा उसके पहले की गोष्ठियों में कुल निष्कर्ष यह निकला कि हिंदी अपने घर में ही प्रवासिनी है| भारत के भद्रलोक के लिए वह ऐसी है, जैसे कोई विदेशी भाषा हो| सभी वक्ताओं का कहना था कि हिंदी की हालत जब तक भारत में पतली रहेगी, विदेशों में गाढ़ी कैसे हो सकती है ? जो अपने पॉंव पर नहीं खड़ा है, वह दुनिया को कैसे हिलाएगा ? ‘विदेशों में हिंदी’ विषय पर संगोष्ठी करने के बजाय ‘भारत में हिन्दी विदेशी’ विषय पर संगोष्ठी क्यों न की जाए|
बेनज़ीर, एलब्राइट, फुकुयामाआदि
पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो, अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री मेडलीन एलब्राइट, प्रसिद्घ विचारक फ्रांसिस फुकुयामा आदि दर्जनों हस्तियॉं अगले हफ्ते दिल्ली में होंगी| दुनिया के इन दर्जनों प्रसिद्घ व्यक्तियों के साथ भारत के लगभग 200 महत्वपूर्ण विचारक, उद्योगपति, विशेषज्ञ आदि इस बात पर विचार करेंगे कि शांति-प्रक्रिया से भारत और दक्षिण एशिया का लाभ कैसे होगा| यह बहुत ही सामयिक पहल है| यह पहल श्री कृष्णकुमार बिड़ला की बेटी शोभना भरतिया कर रही हैं| इस संगोष्ठी का उद्रघाटन प्रधानमंत्री वाजपेयी करेंगे| भारत और पाक के बीच आजकल संबंध-सुधार की जैसी हवा बही हुई है, इस खुशनुमा माहौल में अगर बेनज़ीर भुट्टो भारत-पाक मैत्री की बात कहेंगी तो पाकिस्तान में कोई उन पर वार नहीं कर सकेगा| अमेरिका के एलब्राइट और रिचर्ड हास जैसे लोग तो इस तरह की गोष्ठी से परम प्रसन्न होंगे| यदि शोभनाजी पाकिस्तान, ईरान, अफगानिस्तान तथा मध्य एशिया के कुछ प्रमुख विशेषज्ञों को भी बुला लेतीं तो यह संगोष्ठी ज्यादा सार्थक हो जाती|
फोनऔरसड़क
पत्रकार लोग दिल्ली में जहॉं-जहॉं रहते हैं, वहॉं अक्सर बिजली, सड़क और पानी की ज्यादा परेशानी नहीं होती| पत्रकारों का डर इतना बड़ा है कि सभी कॉलोनियों में अॅंधेरा हो जाए तो भी पत्रकारों की बस्ती में बल्ब जगमगाते रहते हैं लेकिन साकेत के प्रेस एनक्लेव के फोन और सड़क की दुर्दशा देखने लायक थी| मोदी अस्पताल तक जानेवाली सड़क पर पहॅुंचते ही कार से उतरकर देखना पड़ता था कि सड़क कहॉं है ? सड़क में गड्रढे हैं या गड्रढों में सड़क है| यह दुर्दशा पिछले दो साल से चल रही थी| इस सड़क के किनारे जिन लोगों के घर और दुकाने हैं, वे सुबह-सुबह ही धूल में नहा लेते थे| लोग शिकायत करते लेकिन सरकार बिल्कुल नहीं सुनती | मैंने एक दिन दिल्ली की मुख्य सचिव शैलजा चंद्रा को फोन किया लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई| उसी दिन से मैंने संकल्प कर लिया कि यह सड़क बनवाना ही है| अगर अफसरों के विरुद्घ सीधी कार्रवाई भी करना पड़े तो करेंगे| रोज़ सुबह मुख्य सचिव, मुख्य अभियंता आदि आठ-दस अफसरों को मैंने फोन किए| वे समझ गए कि यह मामला बड़ा सार्वजनिक मुद्दा बन सकता है| नतीजा यह हुआ कि पिछले हफ्ते एक ही दिन में सारी सड़क बन गई| क्या यह प्रयोग सारे भारत में नहीं किया जाना चाहिए ? जहॉं-जहॉं ढिलाई देखें, वहॉं समझौता करने, रिश्वत देने, गिड़गिड़ाने की बजाय सीधी कार्रवाई की रणनीति बनाऍं तो सुपरिणाम तुरंत सामने क्यों नहीं आऍंगे ? इसी तरह जुलाई में अमेरिका से लौटने पर मेरा फोन बिल देखकर मैं दंग रह गया| जिस माह एक भी फोन नहीं किया, उसका बिल दस हजार रु. कैसे हो सकता था| फोन विभाग को मैंने फोन किया| कोई जवाब नहीं आया| उल्टे फोन काट दिया| मैंने महाप्रबंधक ओबेराय को फैक्स करके कहा कि मैं आप पर 11 हजार रु. जुर्माना करता हॅूं| फोन चालू करें| सही बिल भेजें और माफी मॉंगे| उन्होंने फोन दुबारा शुरू करवा दिया और बिल घटाकर 2900 रु. कर दिया| यह राशि भी क्यों लगाई, यह वे अभी तक नहीं बता पाए| अभी लड़ाई जारी है|
Leave a Reply