राष्ट्रीय सहारा, 7 मई,2005 : बि्रटेन में कौन जीता, इसका आसान जवाब तो यही है कि टोनी ब्लेयर जीत गए| लेबर पार्टी तीसरी बार अपनी सरकार बनाएगी| इससे पहले लेबर पार्टी ने लगातार तीन बार कभी भी अपनी सरकार नहीं बनाई| इस दृष्टि से टोनी ब्लेयर सिर्फ विजयी ही नहीं हुए, उनकी विजय एतिहासिक भी है| एतिहासिक तो वह है लेकिन मूल प्रश्न यह है कि उसे विजय भी माना जाए या नहीं? अगर वह विजय है तो ब्लेयर की पार्टी के लोग ही यह क्यों कह रहे हैं कि लेबर पार्टी का पहला काम यह होना चाहिए कि वह प्रधानमंत्री ब्लेयर को बर्खास्त कर दे|
ब्लेयर खुद अपनी विजय से ज्यादा खुश नहीं हैं| बधाइयॉं स्वीकार करते हुए वे सहमे-सहमे-से लगते हैं लेकिन अगर खुशी सबसे ज्यादा किसी के चेहरे से फूटी पड़ रही है तो वे हैं – गोर्डन ब्राउन ! कौन हैं, ये? ये हैं ब्लेयर के नं 2 ! वित्तमंत्री और ब्लेयर के प्रतिद्वंद्वी| यदि लेबर पार्टी हार जाती तो ब्राउन तत्काल उसके नेता बन जाते और ब्लेयर इतिहास के कूड़ेदान में समा जाते लेकिन अब जबकि लेबर पार्टी जीत गई है, ब्लेयर, पार्टी और सरकार दोनों के नेता तो बने रहेंगे लेकिन गोर्डन ब्राउन का महत्व पहले से कहीं अधिक बढ़ जाएगा| ब्लेयर को कंसर्वेटिव पार्टी के नेता माइकेल हावर्ड से उतना खतरा नहीं होगा, जितना अपने उप-नेता ब्राउन से होगा| लेबर पार्टी की सफल आर्थिक नीतियों का श्रेय प्राय: ब्राउन को ही मिलता रहा है और इस चुनाव में लेबर पार्टी की जीत का आधार उसकी आर्थिक नीतियों को ही माना जा रहा है| इन नीतियों के जनक ब्राउन का गुट पार्टी में काफी मजबूत हो गया है| अगर लेबर पार्टी के सांसदों में से 50 ने भी बगावत कर दी तो ब्लेयर को प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ेगा| ठीक उसी तरह जैसे देवीलाल की बगावत के आगे विश्वनाथ प्रताप सिंह को छोड़ना पड़ा था| बि्रटिश इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि इतने कम वोटों से कोई सरकार बनी है| सीटें तो घटीं ही, वोट भी घट गए याने प्रधानमंत्री की ताकत घट गई| प्रधानमंत्री के तौर पर वे तीसरी बार कुर्सी पर अवश्य बैठेंगे लेकिन यह हिलती हुई कुर्सी होगी| कैसी विडंबना है कि जिस एराक़ ने बुश जैसे आदमी को दुबारा उनकी कुर्सी में जमा दिया, उसी एराक़ ने टोनी ब्लेयर जैसे प्रधानमंत्री की कुर्सी हिला दी|
अगर टोनी ब्लेयर एराक़ पर अमेरिका का समर्थन नहीं करते तो उनकी विजय सचमुच एतिहासिक होती| वे शायद इतने वोटों से जीतते कि जितनों से आज तक कोई बि्रटिश प्रधानमंत्री नहीं जीता| विरोधी दलों के लिए जिंदा रहना मुश्किल हो जाता| जैसे पिछले 200 वर्षों में प्रधानमंत्री बननेवाले लोगों में वे सबसे अधिक जवान थे, वैसे ही उन्हें बि्रटेन का सबसे अधिक लोकपि्रय प्रधानमंत्री भी माना जाता लेकिन एराक़ ने उन्हें बि्रटिश जनता की नज़रों में ‘झूठा’ और ‘हत्यारा’ बना दिया| झूठा इसलिए कि सद्रदाम के पास सर्वनाशी हथियार हैं, यह झूठ उन्होंने जान-बूझकर बोला और फिर इस झूठ के खातिर उन्होंने बि्रटिश नौजवानों को युद्घ में झोंक दिया| फ्रांस और जर्मनी की तरह उन्होंने निष्पक्ष और निर्भीक रवैया नहीं अपनाया| बुश और ब्लेयर के विरुद्घ अपूर्व प्रदर्शन हुए| उस हिसाब से ब्लेयर की जमानत जब्त हो जानी चाहिए थी और उनकी पार्टी को 100 से अधिक सीटें नहीं मिलनी चाहिए थीं लेकिन उन्हें अपने चुनाव-क्षेत्र सेजफील्ड में पहले से अधिक वोट मिले और उनके विदेश मंत्री जेक स्ट्रा भी जीत गए| जेक-स्ट्रा अपने मुस्लिम-बहुल क्षेत्र में जीते हैं| इसका एक अभिप्राय यह भी है कि बि्रटेन के हिन्दू और मुसलमान नागरिकों ने एराक़ पर उतना गुस्सा नहीं दिखाया है, जितना अंग्रेजों ने दिखाया है| लेबर ने एशियाई मूल के 20, कंसर्वेटिव ने 32 और लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी ने 21 उम्मीदवार खड़े किए थे| लेबर के प्यारा खाबरा और कीथ वाज़ जैसे उम्मीदवार जीत गए हैं| संसद में उन्हें प्रचंड न सही, स्पष्ट बहुमत तो मिल ही गया है| इसका अर्थ क्या यह नहीं कि ब्लेयर की एराक़ संबंधी भयंकर भूल के बावजूद वे बच गए| पूरी तरह ध्वस्त नहीं हुए| ब्लेयर के राज में बि्रटेन की समृद्घि बढ़ी है, लोगों का जीवन-स्तर ऊंचा हुआ है, रोजगार फैला है, एशियाई लोगों ने स्वयं को सुरक्षित महसूस किया है| अब जबकि उनको ठोकर लग चुकी है, अपने इस तीसरे अवतरण में वे अधिक सतर्क, अधिक संवेदनशील और अधिक लचीले प्रधानमंत्री सिद्घ होंगे| अमेरिका के साथ तो उनके संबंध घनिष्ट होंगे ही लेकिन यूरोप और तीसरी दुनिया में उन्हें अपनी छवि सुधारनी होगी| जाहिर है कि ब्लेयर की जीत का सबसे अधिक दुख किसी को है तो वह यूरोप को है| अपनी तीसरी अवधि में ब्लेयर की मुख्य चुनौती यही होगी कि बंटे हुए बि्रटेन और बंटे हुए यूरोप को कैसे जोड़ें? यह ठीक है कि कंसर्वेटिवों और लिबरलों के मुकाबले उन्हें संसद में सीटें ज्यादा मिल गई हैं लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना है कि कुल मतदाताओं में से केवल एक-तिहाई ही उनके साथ हैं| यदि पार्टी के आधे से ज्यादा सांसद उनके साथ टिके रहे तो वे पार्टी नेता तो बने रहेंगे लेकिन उनका प्रधानमंत्री पद तब भी हिलती हुई खूंटी पर टंगा रहेगा| मुट्ठी भर सांसदों की बगावत प्रधानमंत्री को धराशायी तो कर ही सकती है, उससे भी ज्यादा बड़ा सिरदर्द बना रहेगा – प्रतिपक्ष का मजबूत होना| कंसर्वेटिव और लिबरल पार्टी के लगभग 250 सदस्य बि्रटिश संसद के सदन को गर्म तवा बना देंगे| दोनों विपक्षी दल ब्लेयर सरकार को आड़े हाथों लेने में एक-दूसरे से होड़ करेंगे| लिबरल नेता चार्ल्स केनेडी का यह कहना बड़ा महत्वपूर्ण है कि बि्रटेन की राजनीति पहली बार सचमुच त्र्िादलीय बन गई है| बि्रटेन जैसे छोटे-से देश में त्र्िादलीय व्यवस्था का उभरना लोकमत की विविधता का परिचायक तो है ही लेकिन यह राजनीति के विखंडीकरण का भी सूचक है| अगर टोनी ब्लेयर ने एराक़-जैसी कोई गंभीर भूल आंतरिक राजनीति में कर दी तो बि्रटिश समाज हिंसा और टूट का शिकार हो जाएगा| सीटों में जीते हुए और वोटों में हारे हुए ब्लेयर को हर कदम फूंक-फूंककर रखना होगा, क्योंकि इस चुनाव ने उनके रास्तों में कई अदृश्य सुरंगे बिछा दी हैं|
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