हवाई जहाजों में यात्रा करते वक्त हमारे नेताओं को क्या ‘प्रोटोकाॅल’ (विशेष व्यवहार) मिलना चाहिए, इसे लेकर नागर विमानन मंत्रालय ने सभी गैर-सरकारी हवाई कंपनियों की एक बैठक बुलाई है। अब एयर इंडिया भी बिकनेवाली है, इसीलिए नेताओं को अपने प्रोटोकाॅल की चिंता सता रही है। यदि देश में कोई सरकारी हवाई कंपनी ही नहीं रहेगी तो नेताओं के नखरे कौन उठाएगा ? अब गैर-सरकारी हवाई कंपनियों को भी मजबूर किया जाएगा कि वे नेताओं की अगवानी दूल्हों की तरह किया करें। जब जनता के चुने हुए प्रतिनिधि जहाज या रेल से यात्रा करते हैं तो लगता है कि वे हमारे लोकतंत्र पर तमाचा जड़ रहे हैं। एक तो उनकी यात्रा मुफ्त होती है। उनका किराया हम भरते हैं। वह हमारे टैक्स के पैसों में से जाता है। फिर उन्हें बिजनेस क्लास और फर्स्ट क्लास में सीटें दी जाती हैं। सबसे अगली सीट पर कब्जा करने के लिए वे बेताब रहते हैं। उनका खाना-पीना भी अति-विशेष होता है। उन्हें कहीं भी लाइन में नहीं लगना पड़ता है। उनका हैंडबेग भी कोई न कोई अर्दली ढोता है। वे विशेष लाउंज से निकलकर सीधे जहाज में जाते हैं। ये सब ठाठ-बाट वे क्यों मांगते हैं ? इसलिए कि वे जन-प्रतिनिधि हैं या जनता के सेवक हैं या नौकर हैं। मैं तो अपने घर के नौकरों से भी भाई-बहन की तरह बर्ताव करने का हिमायती हूं लेकिन आप जब अपने नौकरों को अपने सिर पर बिठाने लगते हैं तो वे अपने आप को बादशाह समझने लगते हैं। यह बादशाहत लोकतंत्र के लिए कलंक है। यदि ये वीआईपी लोग वास्तव में जनता के सेवक हैं तो उन्हें सबसे पीछे बैठने, सबसे बाद में खाने और लाइन में लगने के लिए तैयार रहना चाहिए। यदि मोदी सरकार में दम हो तो वह रेलों और जहाजों में से सारी ‘क्लासें’ खत्म करे और सब यात्रियों को समान माने। मोदी सरकार ने कारों पर से लाल बत्ती हटवाने का अत्यंत प्रशंसनीय कार्य किया है। अब वह नेताओं के दिमागों में से यह वीआईपी बत्ती भी हटवाने का काम करे। नेताओं को यह पता होना चाहिए कि समाज में उनसे भी कई गुना महत्वपूर्ण लोग रहते हैं। यदि वे अपने लिए कोई विशेष व्यवहार नहीं चाहते तो सिर्फ नेता ही अपने अहं की मालिश करवाने पर क्यों तुले रहते हैं।
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