अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी कमाल के आदमी हैं। मैं पिछले 50-55 साल से अमेरिकी राजनीति को समझने की कोशिश करता रहा हूं। जब मैं न्यूयार्क की कोलंबिया युनिवर्सिटी में रिसर्च कर रहा था और बाद में भी जब मैं अमेरिका कई बार गया तो वहां के नेताओं से बराबर भेंट होती रही लेकिन ट्रंप-जैसे किसी अमेरिकी नेता से मैं न तो कभी मिला और न ही उसके बारे में कभी सुना। ट्रंप ने अपने लगभग एक साल के कार्यकाल में अपने दर्जनों सलाहकारों, मंत्रियों, सहायकों और साथियों को निकाल बाहर किया है। कुछ दिन पहले उन्होंने अपने विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन की छुट्टी कर ही दी थी, अब सुरक्षा सलाहकार एच.आर. मेकास्टर को भी उन्होंने घर बिठा दिया है। मेकास्टर के पहले इस पद पर मिखाएल फिन थे। फिन को सिर्फ 22 दिन बाद ही ट्रंप ने धक्का लगा दिया था।
अब इस पद पर वे ज़ॉन बोल्टन को ला रहे हैं। विदेश मंत्री के पद पर बैठेंगे, अब माइक पोंपियो, जो सीआईए के डॉयरेक्टर रह चुके हैं। वोल्टन और पोंपियों की जोड़ी क्या गजब ढाएगी, कुछ पता नहीं, क्योंकि दोनों ही अपने उग्रवादी विचारों के लिए जाने जाते हैं। इनकी नियुक्ति पर जब अमेरिका में जमकर चर्चा छिड़ी तो ट्रंप ने कहा ‘ज़रा, देखते रहियो, मैं अब क्या करता हूं।’ बोल्टन ईरान के साथ परमाणु-समझौते और उत्तर कोरिया के साथ बात करने का विरोध करते रहे हैं। राष्ट्रपति जार्ज बुश के साथ रहते हुए उन्होंने इराक पर हमले और सद्दाम हुसैन के खात्मे की पेशकश की थी। बुश ने उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ में राजदूत बना दिया था लेकिन सीनेट ने उसकी पुष्टि नहीं की थी। अब भी यह पुष्टि आसान नहीं होगी। पुष्टि हो या न हो ट्रंप के वास्तविक सलाहकार तो वे अब भी हैं ही। ट्रंप, बोल्टन और पोंपियों की यह तिकड़ी यूरोपीय राष्ट्रों को भी क्यों बख्शने लगी ? चीन के विरुद्ध भी अब खुल्लमखुल्ला अभियान चलने की संभावना बढ़ती जा रही है। कोई आश्चर्य नहीं कि ट्रंप की जैसी बुद्धि है और जैसे सलाहकार वे खोज लाए हैं, वे एक बार फिर दुनिया में शीतयुद्ध की शुरुआत कर सकते हैं। वैसे भारत को चिंता करने की ज्यादा जरुरत दिखाई नहीं पड़ती।
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