चीनी सरकार का यह अजीब-सा रवैया है कि जो व्यक्ति या देश दलाई लामा से मिलता है या उन्हें अपने यहां बुलाता है, उसे वह अपराधी मानेगी। तो इसका अर्थ यह हुआ कि भारत सबसे बड़ा अपराधी है, क्योंकि दलाई लामा 1959 से भारत में ही रह रहे हैं। वैसे दुनिया के लगभग प्रमुख राष्ट्र दलाई लामा का स्वागत कर चुके हैं। चीन का कहना है कि दलाई लामा भारत में रहकर तिब्बत को चीन से अलग करने का अभियान चला रहे हैं। पता नहीं, चीनियों को यह क्यों पता नहीं है कि खुद दलाई लामा ने कुछ साल पहले स्विटजरलैंड में दिए अपने भाषण में साफ-साफ कहा था कि वे तिब्बत को चीन से अलग नहीं करना चाहते हैं। वे तो तिब्बत के लिए केवल इतनी स्वायत्ता चाहते हैं कि वह अपने धर्म और संस्कृति का पालन ठीक से कर सके।
इसके अलावा वे कई बार कह चुके हैं कि वे चीन का भला चाहते हैं। वे उसके खिलाफ कोई बगावत नहीं करवाना चाहते हैं। वे पूर्ण अहिंसा में विश्वास करते हैं। कुछ वर्ष पहले चीन ने दलाई लामा के भाई से संवाद भी किया था। अब चीन द्वारा इस तरह का बयान जारी करना आखिर किस बात का सूचक है ? क्या इसका नहीं कि चीन अनावश्यक रुप से डरा हुआ है ?
मैंने अपनी चीन-यात्राओं के दौरान चीनी नेताओं और विद्वानों से जब भी तिब्बत की बात छेड़ी, वे बौखला उठे। 68 साल के राज के बावजूद चीनियों को लगता है कि तिब्बत में बगावत बिलबिला रही है। दलाई लामाजी और उनके निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्रियों से मेरा संबंध रहा है लेकिन मुझे यह कभी भी नहीं लगा कि वे हिंसा से तिब्बत को आजाद करवाना चाहते हैं। इस समय चीन की फौजी उपस्थिति तिब्बत में इतनी ज्यादा है कि वह चुटकी दबाते ही किसी भी बगावत को मसल डाल सकता है।
भारत भी तिब्बत की कोई फौजी मदद नहीं कर रहा है। पाकिस्तान जैसे कश्मीर के पीछे हैं, वैसे भारत तिब्बत के पीछे नहीं है। हालांकि मुझे लगता है कि दलाई लामा को शरण देने के कारण ही भारत-चीन युद्ध 1962 में भड़का। तिब्बत की आजादी का समर्थन सरदार पटेल, डा. लोहिया, डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी किया करते थे लेकिन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने स्पष्ट रुप से तिब्बत को चीन का अंग बता दिया था तो अब झगड़ा क्या है ?
चीनी सरकार को चाहिए कि वह अपने आत्मविश्वास को जगाए, दलाई लामा से सीधे बात करे और भारत को मध्यस्थता करने के लिए कहे। यदि चीन अब भी अड़ियल नीति अपनाता रहा तो डोनाल्ड ट्रंप तथा कुछ पश्चिमी राष्ट्र, जो चीन का पराभव चाहते हैं, वे तिब्बत को चीन का नया सिरदर्द बना सकते हैं।
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