दैनिक भास्कर, 04 मार्च 2021: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति वैंकय्या नायडू तथा अन्य कई मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों ने पहले दिन कोवेक्सीन का टीका लगवाकर अत्यंत सराहनीय कार्य किया है। इन शीर्ष नेताओं की इस पहल के कई सुपरिणाम होंगे। पहला तो यही कि देश के करोड़ों लोग, जो टीका लगवाने से डर रहे हैं, वे अब हिम्मत करके टीका लगवाएंगे। अमेरिका और यूरोप में टीका जिस रफ्तार से लगा है, उस हिसाब से भारत अभी पीछे है लेकिन कोई आश्चर्य नहीं कि वह कुछ ही दिनों में सबसे आगे निकल जाएगा। दूसरा, विरोधी दलों के नेता कह सकते हैं कि नरेंद्र मोदी तो नौटंकीप्रिय नेता हैं। इसीलिए उन्होंने रवींद्रनाथ ठाकुर की तरह दाढ़ी बढ़ाकर और असमिया दुपट्टा डालकर टीका लगावाया ताकि बंगाल और असम के मतदाताओं को सम्मोहित कर सकें। उनके टीके को अखबारों और टीवी चैनलों पर इसी उद्देश्य से प्रचारित किया गया है। विरोधी ऐसा आरोप नहीं लगाएंगे तो उन्हें विरोधी कौन मानेगा लेकिन ऐसा आरोप लगाकर वे अपनी ही छवि को तार-तार कर रहे हैं, क्योंकि करोड़ों साधारण लोग यह भी देख रहे हैं कि बड़े—बड़े विरोधी नेताओं ने खुद को टीका लगवाने की पहल नहीं की। टीकाकरण के इस अभियान ने विपक्षी राजनीति की हवा निकालकर रख दी है।
तीसरा, जो कोवेक्सीन का टीका प्रधानमंत्री ने लगवाया है, वह शुद्ध भारतीय है। वह विदेश से मंगाया हुआ नहीं है। इससे भारतीय वैज्ञानिकों की प्रामणिकता पर मुहर तो लगी ही है, आम आदमी के संकोच और दुविधा को भी दूर करने का मौका मिला है। अब कोवेक्सीन लगवाएं कि कोविशील्ड, यह असमंजस भी दूर हो गया है।
चौथा, यह कितनी बड़ी बात है कि भारत के करोड़ों लोगों को यह टीका मुफ्त में मिलेगा। दुनिया के कितने देश हैं, जो करोड़ों तो जाने दीजिए अपने हजारों या लाखों लोगों को यह टीका मुफ्त में मुहय्या करवा रहे हैं ? दुनिया के सवा सौ देश ऐसे हैं, जिनके एक नागरिक को भी आज तक टीका नहीं लगा है। दुनिया के कुछ मालदार देश ऐसे हैं, जिन्होंने टीके की जमाखोरी भी शुरु कर दी है। उन्होंने अपनी कुल आबादी से 10-15 गुना ज्यादा टीके खरीदकर रख लिए हैं जबकि भारत ने दर्जनों देशों को करोड़ों टीके मुफ्त में बांट दिए हैं। इस टीके ने भारत को विश्व की ‘चिकित्सा-महाशक्ति’ बना दिया है। भारत विश्वत्राता बनकर उभर रहा है।
पांचवाँ, भारत के स्वास्थ्यकर्मियों ने अपने स्वास्थ्य मंत्री डाॅ. हर्षवर्द्धन के मार्गदर्शन में अदभुत सेवा-कर्म करके दिखाया है। उन्होंने अपनी जान को जोखिम में डालकर कोरोनाग्रस्त मरीजों की सेवा की है। स्वास्थ्य मंत्रालय और राज्य सरकारों ने टीकाकरण के अगणित केंद्र बनाकर आम जनता के लिए बड़ी सुविधा उपलब्ध करवा दी है। सरकार ने गैर-सरकारी अस्पतालों को टीकाकरण की अनुमति देकर बहुत ही उचित फैसला किया है। टीके का मूल्य 150 रु. और अस्पताल की फीस 100 रु. रखकर देश के लगभग 100 करोड़ों लोगों के लिए सरकार ने काफी सुविधा जुटा दी है। कुछ अस्पतालों ने तो अपनी फीस भी माफ कर दी है। बिहार सरकार ने तो निजी अस्पतालों में भी टीके को निःशुल्क कर दिया है।
छठा, सरकार ने तो कोविड को हराने में कोई कसर नहीं छोड़ी है लेकिन इधर पिछले कुछ दिनों से संक्रमितों की संख्या फिर बढ़ी है। फिर भी कई अन्य मालदार, शक्तिशाली और सुविधासंपन्न देशों के मुकाबले भारत में कोविड का असर काफी कम रहा है। अमेरिका में कोविड से मरनेवालों की संख्या भारत से चौगुनी है जबकि भारत की जनसंख्या ही अमेरिका से पांच गुनी है। अमेरिका की साफ-सफाई और दवाई भारत से कई गुना ज्यादा है, फिर भी भारत कोरोना-युद्ध में अमेरिका से आगे क्यों है ? क्योंकि हमारा खान-पान ज्यादातर शाकाहारी और मसालेदार है, जो किसी भी संक्रमण का मुकाबला करने में हमारी मदद करता है। इसके अलावा हमारे आयुष मंत्रालय और राज्य सरकारों ने करोड़ों आयुर्वेदिक काढ़े की पुड़ियाएं भी बंटवाई हैं। देश में आयुर्वेद का ऐसा डंका पहली बार बजा है।
सातवाँ, भारत ने कोरोना का मुकाबला करने में जो सफलता पाई है, वह अन्य देशों के लिए अनुकरणीय है। देश के लगभग 20 राज्यों में पिछले 24 घंटे में कोरोना से एक भी मौत नहीं हुई है। सिर्फ 6 राज्यों में कोरोना के 85 प्रतिशत मामले सामने आए हैं। कुछ राज्यों में नए मरीज बढ़ रहे हैं। उसका मूल कारण लोगों की ढील है। वे मुखपट्टी नहीं लगाते, शारीरिक दूरी नहीं रखते और बार-बार हाथ नहीं धोते। यह अच्छी बात है कि देश के टीवी चैनल और अखबार इस मामले में लोगों को जगाते रहते हैं।
आठवाँ, कोरोना-युद्ध में केंद्र और राज्य-सरकारें तो अपना दायित्व पूरी तरह से निभाने की कोशिश कर रही हैं लेकिन अभी तक सभी स्वास्थकर्मियों ने भी टीके नहीं लगवाए हैं। वे या तो डरे हुए हैं या आत्मविश्वास की अधिकता से ग्रस्त हैं। यही हाल कई बुजुर्गों का भी दिखाई पड़ रहा है जबकि टीके की जरूरत सबसे पहले उन्हीं को है। नेतागण भी इसी श्रेणी में आते हैं, क्योंकि वे दिन-रात भीड़-भड़क्के में घिरे रहते हैं लेकिन मोदी ने नर्सो से यह कहकर सच्चाई खोल दी कि आपकी सुई पशु डाक्टरों वाली तो नहीं है, क्योंकि नेताओं की खाल ज़रा मोटी होती है। नेतागण पहल करें तो करोड़ लोग उनका अनुकरण करेंगे। कोरोना-युद्ध में भारत अद्वितीय योद्धा बनकर उभरेगा।
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