नवभारत टाइम्स, 27 अप्रैल 2020: तालाबंदी (लाॅकडाउन) की घोषणा हुए एक महिना हो गया, फिर भी कोरोना पर काबू नहीं हो पा रहा है। पता नहीं, 3 मई तक भी यह तालाबंदी खत्म होगी या नहीं। ऐसे में ज्यादातर लोग घर बैठे–बैठे क्या करें ? किसी काम में उनका मन लगता नहीं। बीवी–बच्चों से झड़पों के कई किस्से सुनने में आ रहे हैं। जो प्रवासी छात्र और मजदूर अधर में लटके हुए हैं, जो अधखुले छात्रावासों में रह रहे हैं या भीड़भरे शरण–स्थलों में अपना वक्त काट रहे हैं, उनकी परेशानियां भी बेशुमार हैं। यदि उनके खान–पान की व्यवस्था भी किसी तरह हो जाती है तो भी उनकी सबसे बड़ी समस्या है कि वे अपना दिन कैसे काटें ?
सबसे पहले तो यह जरुरी है कि हम अपना मन बुलंद रखें। डरे नहीं। लोगों के दिल में मौत का डर इतना गहरा बैठ गया है कि उनकी सिट्टी–पिट्टी गुम हो गई है। भारत जैसे 140 करोड़ लोगों के देश में कोरोना से मौत का आंकड़ा अभी 700 तक पहुंचा है जबकि अमेरिका जैसे देश में 50 हजार तक पहुंच रहा है। यदि भारत और अमेरिका की जनसंख्या के हिसाब से अनुपात लगाएं तो भारत में यह चौगुना–पांच गुना याने दो–ढाई लाख हो जाता। हमारे देश में विभिन्न रोगों से रोज़ मरनेवालों की संख्या 22 से 25 हजार होती है।
जो लोग कोरोना से मर रहे हैं, वे कौन हैं ? उनमें से ज्यादातर लोग वे हैं, जिनके शरीरों को कई गंभीर रोगों ने पहले से अपना घर बना रखा है और जो लोग तालाबंदी के परहेजों का उल्लंघन कर रहे हैं। ऐसे लोगों के लिए भी इलाज की भरसक कोशिश हो रही है। कोरोना से पूर्ण मुक्ति पानेवाले लोगों की संख्या भारत में सबसे ज्यादा है। अब जांच–यंत्र लाखों में तैयार हो गए हैं और करोड़ों मुखपट्टियां बाजार में आ गई हैं। प्लाज्मा चिकित्सा का चमत्कारी प्रयोग भी दिल्ली में सफल हो गया है। ऐसी स्थिति में भारत के लोगों को उदास और निराश होने की बिल्कुल भी जरुरत नहीं है।
दूसरा, देश के 99 प्रतिशत लोग अपने घरों में ही टिके हुए हैं और शारीरिक दूरी (सामाजिक दूरी नहीं), हाथ धोने और मुखपट्टी की सावधानी बरत ही रहे हैं। ऐसे सब लोगों से मैं कहता हूं कि आप शारीरिक दूरी जरुर बढ़ाएं लेकिन सामाजिक दूरी घटाइए ? सामाजिक निकटता बढ़ाने का सबसे आसान यंत्र है– आपका मोबाइल फोन। इस फोन पर आप अपने मित्रों और परिचितों से खूब बात कीजिए। व्हाटसाप पर उनको सजीव देखते रहिए और खुद को भी दिखाते रहिए। इंटरनेट के जरिए आप सारी दुनिया से जीवंत संपर्क रख सकते हैं। इसके जरिए आप सिनेमा देख सकते हैं, भजन और संगीत सुन सकते हैं, किताबें पढ़ सकते हैं।
तीसरा, ध्यान कीजिए। अपनी भाग–दौड़ की रोजाना की जिंदगी में हम अपने ज्यादातर काम यंत्रवत करते रहते हैं। उन पर ध्यान देने का हमारे पास समय ही नहीं होता। अब आप घर बैठे हैं। आपके पास समय ही समय है। मेरे कहने से आप एक नया प्रयोग कीजिए। इस प्रयोग से आपका समय तो कटेगा ही, जीवन में एकदम नई अनुभूति भी होगी। आप अपने हर काम में ढील दे दीजिए। खुद को एकदम ढीला छोड़ दीजिए। आप जितने काम जितने समय में करते हैं, अब उन्हें करने में आप उसका दुगुना या चौगुना समय लगाइए। जैसे आप रोटी का एक ग्रास एक मिनिट में खाते हैं तो उसे अब दो या चार मिनिट में खाइए। उस पर ध्यान लगाइए। अब देखिए क्या होता है ? सबसे पहले तो उसका असली स्वाद आप चखेंगे। फिर उसके चबाने की आवाज आपको सुनाई देगी और आप अगर आंख बंद कर लें तो आपको अपने दांत, जुबान और ग्रास भी दिखने लगेंगे। यह जीवन का एकदम नया अनुभव होगा। इस ध्यान प्रक्रिया को आप अपने चलने–फिरने, बोलने– लिखने, उठने–बैठने, कपड़े पहनने–उतारने आदि पर भी लागू करके देखिए। आपका समय भी कटेगा, मनोरंजन भी होगा और लंबे समय तक आपकेा आध्यात्मिक लाभ भी होता रहेगा।
चौथा, आप दो–तीन घंटे रोज स्वाध्याय में भी बिता सकते हैं। जिन्हें दर्शन, राजनीति, अर्थशास्त्र आदि में रुचि नहीं है, वे उपन्यास, कहानियां और महापुरुषों की जीवनियां पढ़ सकते हैं। धर्मग्रंथों का पाठ कर सकते हैं। अखबारों पर अब लोग कोरोना–काल में दुगुना समय खर्च कर रहे हैं। बैठे–बैठे आप अपनी आत्मकथा या डायरी भी लिख सकते हैं।
पांचवां, घर की रसोई में नए–नए व्यंजन बनवाए जा सकते हैं। उसमें खुद भी हाथ बटाएं। कई घरेलू खेल भी खेले जा सकते हैं। भोजन और मनोरंजन को तालाबंदी के दौरान आप अपने जीवन में वह स्थान दे सकते हैं, जो पहले कभी नहीं दे सके।
छठा, फुर्सत की इस वेला का उपयोग आप अपने शरीर को बुलंद बनाने में भी कर सकते हैं। यदि एक घंटा रोज आप आसन, प्राणायाम और व्यायाम करें तो कोरोना से आपकी रक्षा में मदद तो मिलेगी ही, दीर्घायुष्य भी मिलेगा और आगे जाकर कार्यक्षमता भी बढ़ेगी। घर में साफ–सफाई और थोड़ी–सी बागवानी भी करें तो मन भी खूब लगेगा।
सातवां, जिन लोगों को टीवी देखने की कभी फुर्सत नहीं मिलती थी, वे भी आजकल घंटों टीवी के सामने बैठे रहते हैं। उन पर चलनेवाली दुखद और निंदनीय खबरों को लगातर देखते रहने से दर्शकों का मन डूबने लगता है। उनका अचेतन मन चिंता से बोझिल हो जाता है। टीवी वालों की यह मजबूरी है। कुछेक चैनलों को छोड़कर ज्यादातर चैनल पार्टी–प्रवक्ताओं के फूहड़ दंगल दिखाने में एक–दूसरे को मात करते हैं। इनसे आप इस दौर में खुद को बचाएं, यह जरुरी है। टीवी देखें, लेकिन सम्हलकर !
आठवां, उदासीनता के इस दौर में अपने मन को खुश रखने का एक नयाब तरीका यह भी है कि अपने घर में बैठे–बैठे या लेटे–लेटे आप उन दिवंगत और जीवित अपने पुराने प्रिय परिचितों को याद करें, जिन्हें आपकी व्यस्तता ने स्मृति–कक्ष में संजो दिया है। जो जीवित हैं, उनसे जरा संपर्क करके देखें, उनकी और आपकी प्रसन्नता का कोई पारावार नहीं रहेगा। इस दौर में आप उन प्रिय प्रसंगों को भी याद करें, जिनके कारण आपके जीवन में ऊर्जा और आनंद का संचार हुआ है। वे प्रसंग आज की उदासीनता और निराशा के घनघोर बादलों में बिजली का काम करेंगे।
नौवां, मुझे विश्वास है कि इस लेख के पाठक कोरोना के मरीज नहीं हैं और यदि वे हैं तो भी उनसे मेरा अनुरोध है कि हम भारतीयों के घरो में जिन पारंपरिक मसालों का भोजन में इस्तेमाल होता है, उनका काढ़ा बनाकर वे रोज़ क्यों नहीं पीते ? उससे कोई भी नुकसान होने की आशंका बिल्कुल नहीं है। यह ठीक है कि वह काढ़ा कोरोना का एकदम पक्का इलाज नहीं है लेकिन इसमें ज़रा भी शक नहीं है कि वह मनुष्यों की प्रतिरोध–शक्ति बढ़ाता है। गिलोय, हल्दी, दालचीनी, तुलसी, अदरक, काली मिर्च, अजवाइन, लौंग आदि का दैनिक प्रयोग ही भारतीयों पर अभी तक इस माहामारी को हावी नहीं होने दे रहा है।
-एमपी कौशिक says
डॉक्टर वैदिक जी हम आपके अनुभव और बुद्धि के कायल हो गए हैं हमने आपके कई लेख पढे़ हालांकि पहले भी पढ़ते रहे हैं लेकिन आपके बारे में चिंतन मंथन अभी किया। हमारा प्रणाम स्वीकार कीजिए। परमपिता आपको दीर्घायु दे।