दिल्ली में एक आयुर्वेदिक अस्पताल का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री ने कई खरी-खरी और काम की बातें कह डालीं। यह आयुर्वेदिक अस्पताल उसी तर्ज पर बना है, जिस पर आल इंडिया इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) बना है। वे चाहते हैं कि देश के हर जिले में ऐसा ही आयुर्वेदिक संस्थान बने। हर जिले में कैसे बनेगा? जो दिल्ली में बन रहा है, उसी में लगभग 200 करोड़ रु. खर्च हो रहे हैं।
देश के 707 जिलों में ऐसे अस्पताल बनाने का अर्थ है, लगभग डेढ़ लाख करोड़ रु. का खर्च ! क्या सरकार के पास आज इतनी सुविधा है ? चाहे आज सुविधा न हो, चाहे वे न ही बनें लेकिन मोदी का यह विचार ही अपने आप में प्रशंसा के योग्य है।
एलोपेथिक अस्पतालों में लगे अरबों-खरबों रु. के बावजूद भी देश की लगभग 70 प्रतिशत जनता आयुर्वेदिक, यूनानी, होम्योपेथी और घरेलू इलाजों पर निर्भर है। उसके पास इतना पैसा ही नहीं होता कि वह लुटने-पिटने के लिए शहरी अस्पतालों की शरण में जाए। गैर-सरकारी एलोपेथी के अस्पताल तो निहित स्वार्थ के अड्डे बन गए हैं। दवा-निर्माताओं और डाक्टरों की सांठगांठ, एलोपेथी दवाओं के आनुवांशिक दुष्प्रभाव, अनावश्यक डाक्टरी जांचों की भरमार और स्वास्थ्य-बीमा का लंबा-चौड़ा कारोबार आदि सबने मिलकर एलोपेथी को शहरी, मालदार वर्ग और ऊंची जातियों तक सीमित कर दिया है।
इसमें शक नहीं कि एलोपेथी इलाज तुरंत असरदार होता है लेकिन इसके पीछे पश्चिमी जगत की पूरी ताकत लगी हुई है। उनका शोध और पैसा मिलकर सारी दुनिया पर छा गया है। उसके मुकाबले आज का आयुर्वेदिक और हकीमी इलाज पिछड़ा हुआ है, क्योंकि सैकड़ों वर्षों से उसमें शोध लगभग नहीं के बराबर हुआ है। मैंने हजार साल पुराने इंडोनेशिया के ऐसे चित्र देखे हैं, जिनमें भारतीय वैद्य खोपड़ी को खोलकर उसकी शल्य-चिकित्सा कर रहे हैं जबकि एलोपेथी के डाक्टर अब से सौ साल पहले तक रोगी को बेहोश करना भी नहीं जानते थे। इसके अलावा मेडिकल साइंस सिर्फ रोग का इलाज करती है जबकि आयुर्वेद रोगी का इलाज़ करता है।
अब यदि हर जिले में आयुर्वेद के अस्पताल बनाने हैं तो पहले उनमें शोध-कार्य पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाए। एक अकेला शोध कार्य सारे अस्पतालों को जगमगा सकता है। आयुर्वेदिक औषधियां सस्ती, सुलभ और प्रभावी होती हैं। जांच के एलोपेथिक तरीकों से फायदा उठाने में कोई बुराई नहीं हैं लेकिन हम यह न भूलें कि अकेली नाड़ी-परीक्षा ही दर्जन भर मशीनों के बराबर होती है।
मोदी ने यह ठीक ही कहा कि वैद्यजी अगर अपने रोगियों को एलोपेथी दवाएं दे रहे हैं और खुद ही डाॅक्टर के यहां लाइन में लगे हों तो उनकी कद्र क्या होगी ? प्रधानमंत्री चाहते हैं कि जैसे इन्टरनेट ने सूचना क्रांति की है, वैसे ही आयुर्वेद चिकित्सा-क्रांति करे तो उसके लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान भारत ही है। भारत विलक्षण औषधियों और वनस्पतियों का भंडार है। यदि वह दुनिया पर आयुर्वेद का सिक्का जमा सके तो वह विश्व का कल्याण तो करेगा ही, खुद को भी मालामाल कर लेगा।
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