दिल्ली के मंडावली इलाके के किसी घर में तीन बच्चियां मरी पाई गईं। तीनों बहनें थीं। उनकी मां की हालत दिमागी तौर पर ठीक नहीं है और उनका बाप तीन-चार दिन से घर नहीं आया था। वह रिक्शा-चालक था। उसकी नौकरी छूट गई थी। वह नई नौकरी की तलाश में भटक रहा था। 2, 4 और 8 साल की इन तीनों बच्चियों के शव जब अस्पताल लाए गए तो पता चला कि वे 12 से 18 घंटे पहले ही मर चुकी थीं। उन्हें पिछले तीन दिन से खाने को कुछ नहीं मिला था।
जब डॉक्टरों ने उनकी शव-परीक्षा की तो उन्हें पता चला कि उन तीनों के पेट में एक दाना भी नहीं था। वे भूख से मर गईं। जब यह खबर छपी तो हल्ला मच गया। इस मामले की न्यायिक जांच शुरु हुई। दुबारा शव-परीक्षा हुई। भूख ही उनकी मौत का कारण पाई गई। भूख से ऐसी मौत कोई पहली बार नहीं हुई है लेकिन इस पर संसद में भी हंगामा इसलिए हो गया कि यह दिल्ली में हुई है और इसकी खबर टीवी चैनलों और अखबारों को लग गई। पिछले साल झारखंड में 11 साल की बच्ची और 58 साल की महिला का भी यही हाल हुआ था लेकिन वे मामले आए-गए हो गए, क्योंकि वे खबर नहीं बन पाए।
कोई व्यक्ति भूख से मरा या नहीं, उसे कुछ भी सिद्ध कर देना आसान होता है, क्योंकि मरते वक्त कुछ भी बहाना बन जाता है। एक सरकारी आंकड़े के मुताबिक भारत में 4500 बच्चे रोज मर जाते हैं। इनमें से ज्यादातर कुपोषण के कारण मरते हैं। यदि इन बच्चों को भरपेट भोजन दिया जा सके तो हर साल लाखों बच्चों की जान बचाई जा सकती है। भूखा बच्चा या आदमी तुरंत नहीं मरता। वह तिल-तिल कर मरता है। उसकी शारीरिक क्षमता ही नहीं, मानसिक और बौद्धिक क्षमता भी पंगु होती जाती है। वह बीमार-सा रहता है। ऐसे लोग भारत में करोड़ों हैं लेकिन हमारे देश में सड़ने वाला करोड़ों टन अनाज बेकार चला जाता है। यह स्थिति भारत में ही नहीं है, पड़ौसी देशों में भी है। जो लोग संपन्न हैं, शक्तिशाली हैं, उन्हें कल्पना भी नहीं हो सकती कि कोई आदमी भूखे रहने के कारण मर भी सकता है। यदि कोई बच्चा या आदमी भूख से मर जाए तो क्या हमारा समाज, सभ्य समाज कहलाने के योग्य रह जाता है ?
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