सावरकर, सुभाष बोस और भगतसिंह की त्रिमूर्ति को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय में फिजूल का विवाद चल पड़ा है। इन तीनों स्वतंत्रता-सेनानियों की एक साथ तीन मूर्तियां बनवाकर भाजपा के छात्र संगठन ने दिल्ली विवि के परिसर में लगवा दी थीं। लेकिन कांग्रेस, वामपंथी दलों और ‘आप’ के छात्र-संगठनों ने विशेषकर सावरकर की मूर्ति का विरोध किया और उस पर कालिख पोत दी। राजनीतिक दल और उनके छात्र-संगठन एक-दूसरे की टांग-खिंचाई करते रहे, यह स्वाभाविक है लेकिन वे अपने दल-दल में महान स्वतंत्रता-सेनानियों को भी घसीट लें, यह उचित नहीं है। यह ठीक है कि सावरकर, सुभाष और भगतसिंह के विचारों और गांधी-नेहरु के विचारों में काफी अंतर रहा है लेकिन इन सभी महानायकों ने स्वातंत्र्य-संग्राम में अपना-अपना उल्लेखनीय योगदान किया है।
जहां तक विनायक दामोदर सावरकर का सवाल है, उनमें और गांधी में शुरु से ही 36 का आंकड़ा रहा है। 1909 में जब गांधी और सावरकर पहली बार लंदन के इंडिया हाउस में मिले तो इस पहली मुलाकात में ही उनकी भिड़ंत हो गई। गांधी बोउर-युद्ध में अंग्रेज के समर्थक रहे और सावरकर धुर विरोधी ! गांधी अहिंसा और सावरकर हिंसा के समर्थक। सावरकर पोंगापंथी और अंधभक्त हिंदू नहीं थे। वे तर्कशील राष्ट्रवादी थे। उनके कई विचार आज के हिंदू राष्ट्रवादियों के पेट में छाले उपाड़ सकते हैं। इनके बारे में मं! फिर कभी लिखूंगा। यह ठीक है कि सावरकर के ग्रंथ ‘हिंदुत्व’ को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जनसंघ भाजपा और हिंदू महासभा अपना वैचारिक मूलग्रंथ मानती रही हैं लेकिन यदि आप उसे ध्यान से पढ़ें तो उसमें कहीं भी संकीर्णता, सांप्रदायिकता, जातिवाद या अतिवाद का प्रतिपादन नहीं है। वह जिन्ना और मुस्लिम लीग के द्विराष्ट्रवाद का कठोर उत्तर था। सावरकर के ‘हिंदू राष्ट्र’ में हिंदुओं, मुसलमानों, सिखों, ईसाइयों, यहूदियों आदि को समान अधिकार देने की वकालत की गई है। उन्होंने मुस्लिम लीगी नेताओं की तुर्की के खलीफा की भक्ति (खिलाफत) के विरुद्ध जोरदार आवाज उठाई थी।
वे मुस्लिम लीग के प्रति गांधीजी के नरम रवैए के विरुद्ध थे। यदि सावरकर का स्वाधीनता संग्राम में जबर्दस्त योगदान नहीं होता तो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उन पर डाक-टिकिट जारी क्यों करतीं, उनके स्मृति-न्यास को 11 हजार रु. क्यों देतीं, मुंबई के कांग्रेसी महापौर दादर में 100 करोड़ रु. की जमीन सावरकर-स्मृति के लिए भेंट क्यों करते, उसका शिलान्यास डा. शंकरदयाल शर्मा क्यों करते, संसद में सावरकर का चित्र क्यों लगवाया जाता ? इंदिराजी का सूचना मंत्रालय सावरकर पर फिल्म क्यों बनवाता ? भारतीय युवा पीढ़ी को अपने पुरखों के कृतित्व और व्यक्तित्व पर अपनी दो-टूक राय जरुर बनानी चाहिए लेकिन उन्हें दलीय राजनीति के दल-दल में क्यों घसीटना चाहिए ? उन्हें इंदिराजी से ही कुछ सीखना चाहिए।
Subhash Sharma says
Sir, your analysis and disclosures on 3 martyrs, specially Late Shri Veer Savarkar are really addition to information for general masses.
Sir, I am your fan and I met you at Shri Mahesh Dayma’s residence about 15 days back.
Respects and regards,
Subhash Sharma,
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