अमेरिका के रक्षामंत्री जिम मेटिस को इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा। डोनाल्ड ट्रंप के काल में जिस तरह उनके महारथियों के इस्तीफे हो रहे हैं, शायद किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति के काल में नहीं हुए। पिछले दो साल में ट्रंप के 10 बड़े सहयोगियों ने उनसे अपना पिंड छुड़ाया है। उनमें विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, एटार्नी जनरल, व्हाइट हाउस के स्टाफ प्रमुख आदि कई महत्वपूर्ण पदाधिकारी हैं। कुछ ने खुद इस्तीफे दिए हैं और कुछ को ट्रंप ने निकाल बाहर किया है।
ट्रंप ने इस मामले में हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी मात कर दिया है। हमारे यहां रिजर्व बैंक और आर्थिक मामलों के पदाधिकारियों ने इस्तीफे दिए हैं लेकिन हमारे नेताओं की मोटी खाल को दाद देनी पड़ेगी। वे कितना ही अपमान और उपेक्षा सहें लेकिन वे इस्तीफा देने की बात सोच भी नहीं सकते। उन्हें अपने ‘बास’ से कभी असहमति होती ही नहीं, वह चाहे कितना ही अविवेकपूर्ण और हानिकारक फैसला करे। अमेरिका में रक्षा मंत्री मेटिस ने अपने वास्तविक बास ट्रंप को साफ-साफ शब्दों में कहा कि सीरिया से अमेरिकी फौजों की वापसी अनुचित है। लेकिन ट्रंप डटे रहे। टस से मस नहीं हुए।
उन्होंने सीरिया से अपने दो हजार और अफगानिस्तान से आधे याने सात हजार जवान वापस करने की घोषणा कर दी। ट्रंप का तर्क यह है कि अमेरिका दूसरे राष्ट्रों की शांति और सुरक्षा के लिए अपना पैसा और खून क्यों बहाए ? वे यह भी नहीं चाहते कि नाटो देशों की मदद भी अमेरिका करता रहे। वे द्वितीय महायुद्ध के बाद बनी अमेरिका की विश्व नीति को उलट देना चाहते हैं। यदि पश्चिम एशिया और अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजें हटा ली जाएंगी तो जाहिर है कि सीरिया, रुस और ईरान को फायदा होगा लेकिन ट्रंप का तर्क है कि इन राष्ट्रों को ‘इस्लामिक स्टेट’ याने आईएसआईएस से सीधे भिड़ने दें। उससे लड़कर हम इन राष्ट्रों की मदद क्यों करें और अफगानिस्तान में तालिबान या आईएसआईएस, कोई भी राज करे, हमारी बला से ! हमारा क्या बिगड़ता है ? जो भी सत्ता में आएगा, हम उसे पटा लेंगे।
जो भी हो ट्रंप के इस फैसले से भारत की चिंता बढ़े बिना नहीं रहेगी। मेटिस तो भारत के मित्र ही थे। उन्होंने ही अमेरिकी प्रतिबंधों को भारत पर नहीं थोपने की छूट दिलवाई थी। जो भी हो, भारत सरकार की दोनों मंत्रियों- सुषमा स्वराज और निर्मला सीतारमन- को अब जरा पहले से अधिक चौकन्ना रहना होगा।
Leave a Reply