इराक के तेल समृद्ध किरकुक इलके में रहने वाले कुर्दों के विशाल बहुमत ने स्वतंत्र देश के निर्माण के पक्ष में मतदान किया। उस क्षेत्र में कुर्द पार्टी का शासन है, जिसने वहां जनमत संग्रह आयोजित किया। वोट डालने वाले 33 लाख लोगों में से 92 फ़ीसद ने अलगाव का समर्थन किया। इराक की सरकार ने इस जनमत संग्रह को अवैध करार दिया था। इराक़ी प्रधानमंत्री हैदर अल-अबादी ने आखिर में जनमत संग्रह के नतीजों का एलान ना करने की अपील की। लेकिन इसे ठुकरा दिया गया। इराकी प्रधानमंत्री ने कुर्दों से कहा कि वो ‘संविधान के ढांचे के तहत’ इराक़ सरकार से बातचीत करें। लेकिन कुर्द नेताओं का कहना है कि जनमत संग्रह में भारी जीत के बाद अब वे बगदाद में मौजूद सरकार से अलगाव के मुद्दे पर बातचीत करेंगे।
बातचीत से हल निकलने की संभावना खत्म होने के बाद इराक की संसद ने एक प्रस्ताव पारित कर सरकार से कहा कि वो किरकुक और कुर्दों के नियंत्रण वाले दूसरे विवादित क्षेत्रों में सेना तैनात करे। इराक सरकार ने चेतावनी दी कि उसे शुक्रवार तक इरबिल और सुलेमानिया हवाई अड्डों का अधिकार नहीं सौंपा गया, तो कुर्दिस्तान क्षेत्र को आने वाली सभी सीधी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर रोक लगा दी जाएगी। जाहिर है, एक गंभीर टकराव की पृष्ठभूमि तैयार हो गई है। इस घटनाक्रम से तुर्की और ईरान भी परेशान हैं। उनके यहां कुर्दों की एक बड़ी आबादी रहती है। उनमें भी अलगाववादी भावनाएं रही हैं। आशंका है कि इराक में हुई घटनाओं का असर वहां भी पड़ेगा।
कुर्द पश्चिम एशिया में चौथा सबसे बड़ा जातीय समूह हैं, लेकिन उनका कभी कोई अपना राष्ट्र-राज्य नहीं रहा। इराक की आबादी में उनकी हिस्सेदारी 15 से 20 फ़ीसदी है। कुर्द पशमरगा लड़ाकों ने किरकुक पर 2014 में निंयत्रण हासिल किया था, जब पूरे उत्तरी इराक़ में कथित इस्लामिक स्टेट के जिहादी इराक़ी सेना को परास्त करते हुए तेजी से आगे बढ़ रह थे। जनमत संग्रह में 72.61 फ़ीसद लोगों ने हिस्सा लिया। जाहिर है, अब लोकतांत्रिक तर्कों से कुर्दों की अलग देश की मांग का विरोध करना कठिन होगा। लेकिन इराक इतनी आसानी से ये मांग नहीं मानेगा। ना ही तुर्की और ईरान ऐसा होने देंगे। इससे पहले से ही हिंसा-ग्रस्त इस इलाके में और भी ज्यादा अशांति फैल सकती है। इसी आशंका के मद्देनजर अमेरिका और यूरोपीय देशों ने भी जनमत संग्रह का विरोध किया था। लेकिन उनकी मर्जी वहां नहीं चली।
Leave a Reply