आज शिक्षा संबंधी दो खबरों पर मेरा अचानक ध्यान गया। एक खबर अच्छी है और दूसरी बुरी ! अच्छी खबर यह है कि उत्तराखंड के मदरसों ने मांग की है कि उनमें संस्कृत की पढ़ाई भी शुरु की जाए और बुरी खबर यह है कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार पांच ऐसे स्कूल शुरु करेगी, जिनकी पढ़ाई शुद्ध अंग्रेजी माध्यम से होगी। पहली से 12 वीं कक्षा तक सारे विषय अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाए जाएंगे।
हमारे ये नौसिखिए नेता हिंदी भाषा की पढ़ाई भी अंग्रेजी माध्यम से शुरु कर दें तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। छात्रगण स्वेच्छा से अंग्रेजी और अन्य विदेशी भाषाएं पढ़ें, यह तो अच्छी बात है और उनमें वे निपुणता हासिल करें, यह और भी अच्छा है लेकिन किसी विषय को विदेशी भाषा के माध्यम से पढ़ना तो अव्वल दर्जे की मूर्खता है। यह सीखने के सभी सिद्धांतों के विरुद्ध है। इसके कारण मौलिक चिंतन लंगड़ाने लगता है। सीखने वाला नकलची बन जाता है। उसे परिश्रम भी बहुत ज्यादा करना पड़ता है। उसकी स्मरण-शक्ति पर भी जोर पड़ता है। आदमी रट्टू तोता बन जाता है। ऐसा नहीं है कि अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया इन सब तथ्यों को नहीं जानते हैं। वे जानते हैं। वे खुद इसके शिकार हुए हैं। फिर भी वे यह क्यों कर रहे हैं ? इसलिए कर रहे हैं कि देश में अभी भी राज अंग्रेजी का ही है। हमारे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी इसके गुलाम हैं। अंग्रेजी के बिना देश में न तो अच्छी नौकरी मिल सकती है, न सम्मान मिल सकता है और न ही मोटा पैसा कमाया जा सकता है।
इस विषचक्र को तोड़ने की हिम्मत किस माई के लाल में है? आप चौखट ऊंची नहीं कर सकते तो आप अपना सिर ही काट ले रहे हैं। अरविंद और मनीष यही कर रहे हैं। उत्तराखंड की ‘मदरसा वेलफेयर सोसायटी’ अपने 207 मदरसों में अगले साल से संस्कृत, योग और आयुर्वेद की पढ़ाई भी शुरु करेगी। यह अत्यंत शुभ और क्रांतिकारी समाचार है। इससे देश के मुस्लिम संप्रदाय को जबर्दस्त लाभ होगा। उनके जीवन में नई रोशनी पैदा होगी। उनके इस्लाम में नई चमक पैदा होगी। उन्हें मेरी बधाई।
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