सर्वोच्च न्यायालय आजकल नेताओं की खाट खड़ी करने पर तुला हुआ है। अब उसने एक ऐसा फैसला कर दिया है, जिसकी वजह से कई नेताओं को अपने सरकारी बंगले खाली करने पड़ेंगे। अब कोई भी पूर्व मुख्यमंत्री सरकारी बंगले में रहने का हकदार नहीं होगा। 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने जब इसी तरह का फैसला दिया था तो उप्र विधानसभा में बाकायदा एक कानून पास करके पूर्व मुख्यमंत्रियों की दावेदारी को कायम रहने दिया था। इस कानून को भी अदालत ने अब रद्द कर दिया है। इस समय देश की प्रादेशिक राजधानियों में लगभग दो दर्जन बंगले ऐसे हैं, जिन पर पूर्व मुख्यमंत्रियों ने कब्जे कर रखे हैं। ये बंगले कई-कई एकड़ में फैले हुए हैं। यदि इन बंगलों का किराया इन नेताओं से वसूला जाए तो बाजार भाव के हिसाब से वह लाखों रु. महिना बनेगा।
इन बंगलों की देखभाल भी सरकारी खर्चे पर ही होती है। इन कब्जेदार नेताओं में शायद कोई ऐसा होगा, जिसके पास उस शहर या अपने प्रांत में अपना मकान नहीं होगा। इन नेताओं के पास मुफ्त का माल इतना जमा है कि वे चाहें तो अपने लिए दर्जनों मकान खरीद सकते हैं लेकिन फिर भी वे सरकारी बंगले हथियाए हुए हैं। इनके मुकाबले अमेरिका-जैसे देशों में सांसद और विधायक ही नहीं, उनके राष्ट्रपति भी सेवा-निवृत्त होने पर किराए के मकानों में रहते हैं। अब भी लगभग 50 साल पहले वाशिंगटन में मेरे किराए के कमरे के साथ दो जो कमरे थे, उनमें अमेरिकी कांग्रेस (संसद) के दो सदस्य 45 डालर महिना किराया देकर रहते थे। पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को भी मैंने जार्जटाउन युनिवर्सिटी के पास अपने निजी मकान में रहते हुए और अपनी कार खुद चलाते हुए देखा है। हमारे नेताओं को भी ऐसा होने में क्या दिक्कत है ? वे मालामाल तो पहले से ही रहते हैं और उन्हें मोटी पेंशन भी मिलती है। मैं तो हमारे सर्वोच्च न्यायालय से कहूंगा कि वह संसद के उस कानून को भी रद्द कर दे, जिसके अंतर्गत राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उप-राष्ट्रपति वगैरह को भी सेवा-निवृत्ति के बाद सरकारी बंगले वगैरह दिए जाते हैं।
Neelesh patel says
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