गोरक्षा के नाम पर चल रही पशुता पर अब शायद कुछ रोक लगे। एक तो संसद में तथाकथित गोरक्षकों को दंडित करने का विधेयक लाने की बात चल रही है और दूसरा, यह सराहनीय है कि अब सर्वोच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर सरकार की जमकर खिंचाई कर दी है। अदालत के सामने केंद्र सरकार के वकील ने अपना पल्ला झाड़ते हुए कह दिया कि उन ‘गोरक्षकों’ के खिलाफ कार्रवाई करना राज्य-सरकारों का काम है, केंद्र सरकार का नहीं।
फिर भी केंद्र सरकार ने संसद में साफ-साफ कह दिया है कि वह ‘गोरक्षकों’ का किसी भी रुप में समर्थन नहीं करती है। राज्य सरकारों के वकीलों ने भी देश की सबसे बड़ी अदालत को भरोसा दिलाया है कि वे इस तरह की हिंसक घटनाओं को रोकने के लिए भरसक प्रयत्न कर रही हैं लेकिन सच्चाई क्या है ? गोरक्षा के नाम पर दलितों और मुसलमानों की हत्या करने वालों को अभी तक कोई ऐसी कड़ी सजा नहीं मिली है, जिसे देख-सुनकर भावी हत्यारों की हड्डियां कांप उठें।
सबसे ज्यादा दुख और शर्म की बात यह है कि समाज के कुछ तबकों के विरुद्ध छिपी घृणा और हिंसा की भावना को ‘गोरक्षा’ के नाम पर लोग अंजाम दे रहे हैं। यह ठीक है कि कई राज्यों में गोवध अवैध है लेकिन किसी ने यह अवैध कार्य किया है तो उसकी सजा क्या सड़क छाप लोग देंगे ? इन लोगों को यह पक्का पता नहीं होता कि जिसे वे गोमांस समझ रहे हैं, वह भैंस का, भेड़ का या बकरी का मांस तो नहीं है ? उन्हें यह भी पता नहीं कि गोवध करने वाला असली अपराधी कौन है ? मान लिया कि किसी ने जाने या अनजाने गोवध कर ही दिया तो क्या उसकी सजा मौत होगी ? कानून का इससे बड़ा मजाक क्या होगा ? क्या पशु हत्या और मानव हत्या में कोई फर्क नहीं है?
यह ठीक है कि भारत में गाय एक अत्यंत पूज्य प्राणी है। उसकी सेवा और सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए। संविधान में भी इसका निर्देश है लेकिन क्या ‘गोरक्षक’ लोग किसी गाय की सेवा करते हुए कभी पाए जाते हैं ? यदि बांझ और दुग्धहीन गायों की यथेष्ट सेवा का व्रत हमारे देशवासी ले लें तो गोवध अपने आप रुक जाएगा। सिर्फ कानून से गोरक्षा नहीं हो सकती और कानून को हाथ में ले लेने से तो बिल्कुल नहीं ! इस दुस्साहस के कारण ‘गोरक्षक’ अब ‘नरभक्षक’ बन रहे हैं। इन नरभक्षकों की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी कड़ी भर्त्सना की है। इन कुछ नादान, अति उत्साही और अपराधी तत्वों के कारण गोरक्षा के पवित्र कर्म की बदनामी हो रही है और सच्चे गोभक्तों की भी।
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