गोरखपुर में हुई बच्चों की हत्या पर सरकार की कितनी ही किरकिरी हुई हो, लेकिन केंद्र सरकार ने घुटनों की शल्य-चिकित्सा में चल रही लूट-पाट को बंद करने का जो निर्णय लिया है, वह सराहनीय है। भारत में लगभग डेढ़ करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्हें अपने घुटने बदलवाने की जरूरत होती है लेकिन मुश्किल से एक-डेढ़ लाख ही बदलवा पाते हैं, क्योंकि यह इलाज जरूरत से ज्यादा मंहगा है। इस पर हजारों नहीं, लाखों रुपए खर्च होते हैं। अब सरकार ने ऐसा निर्णय किया है कि जिसके वजह से यह लूटपाट रुकने की पूरी उम्मीद है।
पहले यदि घुटना बदलवाने में एक सौ रुपए खर्च होते थे तो अब यह काम 25-30 रुपए में ही हो जाएगा। जो यांत्रिक घुटना बाजार में अब तक डेढ़ लाख रुपए का मिलता था, वह अब सिर्फ 55 हजार में मिलेगा। टाइटेनियम का जो घुटना ढाई लाख तक में मिलता था, वह अब 67 हजार रुपए में मिलेगा। कैंसर के रोगियों को लगने वाले उपकरण की कीमत पांच लाख रुपए थी, वह अब एक लाख 14 हजार रुपए में मिलेगा। जो भी डॉक्टर, अस्पताल या दवा-विक्रेता इससे ज्यादा कीमत वसूलेगा, सरकार उसे कड़ी सजा देगी।
जाहिर है कि इस नई व्यवस्था से देश के लाखों गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को विशेष राहत मिलेगी। घुटने का ऑपरेशन ज्यादातर बुजुर्ग लोग ही करवाते हैं। वे मोदी सरकार और स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा को तहे-दिल से आशीर्वाद देंगे। इसके पहले सरकार ने फरवरी 2017 में हृदय की शल्य-चिकित्सा में लगनेवाले उपकरणों की लूट-पाट में जबरदस्त कटौती की थी। चिकित्सा के अनेक अन्य आयाम भी हैं, जिन पर सरकार की ओर से कठोर कार्रवाई की जरूरत है।
लगभग सभी दवाइयों पर सरकार को दाम बांधो नीति लागू करनी चाहिए। किसी भी दवाई के दाम उसकी लागत के दुगुने से ज्यादा नहीं होने चाहिए। निर्माता और विक्रेता यदि इससे ज्यादा मुनाफा कमाने की कोशिश करें तो उन्हें जेल भेजा जाए। आज तो कई दवाइयां दो रुपए की हैं लेकिन वे बिकती हैं, 200 रुपए में! सिर्फ दवाइयों और उपकरणों में चलने वाली लूट पर प्रतिबंध काफी नहीं है। अस्पतालों की पांच सितारा संस्कृति भी खत्म होनी चाहिए। आप दवा और उपकरण सस्ते कर दीजिए, वे पलंग, डाक्टरों की फीस, अनावश्यक टेस्टों का शुल्क इतना बढ़ा देंगे कि गाड़ी मुड़ कर फिर वहीं खड़ी हो जाएगी। सरकार ने इतनी हिम्मत की है तो उसे डॉक्टरों और अस्पतालों की फीस पर भी दाम बांधो नीति लागू करनी होगी।
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