दैनिक भास्कर, 15 दिसंबर 2017: भारत का एक पूर्व प्रधानमंत्री वर्तमान प्रधानमंत्री से माफी मांगने को कहे, यह अपने आप में एक खबर है। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसा क्या कर दिया कि पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह ने उन्हें अनाप-शनाप और झूठ बोलनेवाला बताकर उन्हें माफी मांगने के लिए कह दिया। ऐसी क्या बात हुई कि मौनी बाबा को मौन तोड़ना पड़ा और एक दहाड़ लगानी पड़ी ? बात सचमुच ऐसी ही हुई है कि जिससे प्रधानमंत्री पद की गरिमा खटाई में पड़ गई है। गुजरात के चुनाव अभियान के दौरान नरेंद्र मोदी ने एक जबर्दस्त आरोप जड़ दिया। ऐसा आरोप देशद्रोहियों पर ही लगाया जा सकता है। उन्होंने यह आरोप लगाया कि कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर के घर पर एक गुप्त बैठक हुई, जिसमें इस बात पर बहस हुई कि गुजरात में मोदी को कैसे हराया जाए। मोदी ने ही बताया कि इस बैठक में पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद कसूरी, पाकिस्तानी उच्चायुक्त और उनके साथ डाॅ. मनमोहन सिंह भी थे।
यदि रात्रि-भोज की वह बैठक गुप्त थी तो मोदी को कैसे पता चला कि उसमें किन-किन मुद्दों पर बहस हुई ? क्या हमारी गुप्चतर सेवा का कोई आदमी वहां अंदर बैठा हुआ था ? क्या अय्यर की अनुमति के बिना वह वहां जा सकता था ? क्या किसी ऐसी बैठक को गुप्त बैठक कहा जा सकता है, जिसमें तरह—तरह के 10—12 लोग बैठकर मुक्त चर्चा कर रहे हों ? यदि इस बैठक में मोदी को हराने का षड़यंत्र किया गया था और पाकिस्तान के इशारे पर किया गया था तो उन सब लोगों को तत्काल गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया और उन पर देशद्रोह का मुकदमा क्यों नहीं चलाया गया ? यह आश्चर्य की बात है कि किसी के घर पर बैठक हो और उसमें पाकिस्तानी उच्चायुक्त शामिल हो और उसका पता हमारे गुप्तचर विभाग को न हो। अगर न हो तो सारा गुप्तचर विभाग बर्खास्त होने के लायक क्यों नहीं है ? यदि गुप्तचर विभाग को इस षडयंत्रकारी बैठक का पहले से पता था तो उसने इसे होने ही क्यों दिया ? उसने सबको पहले ही गिरफ्तार क्यों नहीं कर लिया ?
ये सब कौन थे? इनमें भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व सेनापति, पूर्व विदेश मंत्री, पूर्व विदेश सचिव, पूर्व राजदूत और कई प्रमुख पत्रकार भी थे। नरेंद्र मोदी से कोई पूछे कि क्या ये सब लोग उन्हें हराने के षड़यंत्र में शामिल थे ? क्या ये सब लोग पाकिस्तान के इशारे पर काम करनेवाले लोग हैं ? इनमें से सिर्फ डाॅ. मनमोहन सिंह ने ही नहीं, लगभग सभी ने बताया कि इस बैठक में गुजरात का चुनाव तो कोई मुद्दा ही नहीं था। सारी बातचीत भारत-पाक संबंधों को सुधारने पर केंद्रित थी। जहां तक पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री कसूरी का सवाल है, ज़रा ध्यान कीजिए कि ये वही व्यक्ति हैं, जिन्होंने मनमोहन सिंह और मुशर्रफ के बीच वह चार-सूत्री समझौता करवाया था, जो आज भी कश्मीर समस्या का हल निकालने में सहायक हो सकता है। कसूरी और अय्यर व्यक्तिगत मित्र भी हैं, अपने केंब्रिज विवि के दिनों से। कसूरी यहां एक शादी में आए थे और उन्होंने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में अनेक लोगों के साथ बैठ कर खुली बहस भी की थी। उनका गुजरात के चुनाव से कोई लेना-देना नहीं था।
गुजरात का चुनाव मोदी का सिरदर्द बन गया है। इस दर्द की दवा वे पाकिस्तान में ढूंढ रहे हैं। यह कितनी शर्म की बात है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनावों के निर्णय का श्रेय पाकिस्तान को दिया जा रहा है। पाकिस्तान या किसी भी पड़ौसी देश की यह हैसियत है क्या, कि वह हमारे चुनावों के पलड़े को इधर या उधर झुका सके ? क्या किसी पाकिस्तानी अफसर के कह देने से गुजरात के लोग अहमद पटेल को मुख्यमंत्री बना देंगे ? एक बार हम यह मान भी लें कि पाकिस्तान चाहे तो वह भारत के मुसलमानों के वोटों को प्रभावित कर सकता है लेकिन आज पाकिस्तान यदि गुजरात के मुसलमान वोटरों को कहे कि आप मोदी को वोट दे दो तो क्या वे मोदी को वोट दे देंगे ? पाकिस्तान मोदी के आड़े वक्त काम आ जाए तो अच्छी बात है, क्योंकि चुनाव तो युद्ध की तरह होता है। युद्ध में सभी कुछ जायज होता है। लेकिन हिंदू वोट बैंक को मजबूत करने के लिए मोदी ने पाकिस्तान को गोमाता बनाकर जो उसे दुहने की कोशिश की है, अगर वह सफल भी हो जाती है तो उसे मैं खतरनाक कोशिश ही कहूंगा।
यह कोशिश सामने आई, उसके पहले बड़ा बचकाना आरोप उछाला गया। मोदी ने पूछा कि मणिशंकर अय्यर साढ़े तीन साल पहले जो पाकिस्तान गए थे, क्यों गए थे ? क्या वे वहां सुपारी देने गए थे ? मोदी को मारने की सुपारी ? यदि सचमुच ऐसा घृणित अपराध कोई भारतीय नागरिक करे तो उसे तत्काल सूली पर चढ़ाया जाना चाहिए। साढ़े तीन साल हो गए, यदि मोदी को इस बात की जरा-सी भनक भी लगी थी तो उन्हें चाहिए था कि वे अय्यर को गिरफ्तार करते, उन पर मुकदमा चलाते और यह बात पूरे देश को बताते लेकिन यह बात उन्होंने गुजरात के चुनाव-अभियान के दौरान ही क्यों उछाली ? सिर्फ इसीलिए कि वे वोटों का ध्रुवीकरण करवा सकें। पाकिस्तान-विरोधी भावनाओं का लाभ उठा सकें। इतना गंभीर आरोप लगाकर क्या मोदी ने प्रधानमंत्री पद की गरिमा को बरकरार रखा है ? अय्यर का यह बयान घोर आपत्तिजनक था कि ‘मोदी नीच क़िस्म का आदमी है’। उसकी सजा अय्यर को मिल गई है। उन्हें कांग्रेस से मुअत्तिल कर दिया गया है और उन्होंने माफी मांग ली है लेकिन इस बात पर बहुत कम लोगों ने ध्यान दिया है कि उन्होंने मोदी के लिए जो अपशब्द कहे हैं, उनके लिए माफी नहीं मांगी है बल्कि नीच शब्द को नीची जाति से जोड़े जाने के लिए माफी मांगी है।
उधर मोदी ने अय्यर के बारे में जो कुछ कहा है और देश के अन्य जिम्मेदार लोगों के बारे में जैसा बयान दिया है, क्या उससे यह सिद्ध होता है कि वे ऊंचे किस्म के इंसान हैं ? वैसे वे जैसे भी इंसान हों, उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि वे भारत के प्रधानमंत्री हैं। भारत-जैसे महान और विशाल लोकतंत्र के शीर्ष पुरुष से यही आशा की जाती है कि वह मन, वचन, कर्म से किसी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करेगा। अय्यर ने वैसे शब्दों का प्रयोग करके अनचाहे ही मोदी की मदद कर दी है। यहां हम यह भी कह दें कि राहुल गांधी के संयत भाषणों और बयानों ने देश का ध्यान खींचा है। यह भी उचित नहीं कि विदेश जाकर हम हमारी सरकार या प्रधानमंत्री की खुली आलोचना करें लेकिन प्रधानमंत्रियों को भी यह ध्यान रखना होगा कि विदेशों में जब वे सार्वजनिक सभाएं करते हैं तो वहां जाकर विपक्ष की कटु भर्त्सना न करें।
गुजरात के चुनाव ने भारतीय राजनीति में संवाद के स्तर को काफी नीचे गिरा दिया है। इसका कारण यह भी है कि यह सिर्फ एक प्रांत का चुनाव नहीं है बल्कि यह अगले संसदीय चुनाव का पूर्व रुप है। भाजपा और कांग्रेस के भविष्य को यह चुनाव ही तय करेगा। एक पार्टी ने हार के डर से और दूसरी पार्टी ने जीत के उन्माद में बहकर लोकतंत्र की मर्यादाओं को ताक पर रख दिया है। संवैधानिक पदों का निष्कलंक निर्वाह करनेवाले कई लोगों के आचरण पर आक्षेप तो लगाए ही गए हैं, चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर भी कीचड़ उछालने में कोई कमी नहीं रखी गई है। इस चुनाव में कोई भी जीते या हारे, देश के नागरिक आशा करेंगे कि यह कटुता गुजरात के चुनाव के साथ-साथ समाप्त हो जाएगी।
ABhatia says
“गुजरात के चुनाव ने भारतीय राजनीति में संवाद के स्तर को काफी नीचे गिरा दिया है। इसका कारण यह भी है कि यह सिर्फ एक प्रांत का चुनाव नहीं है बल्कि यह अगले संसदीय चुनाव का पूर्व रुप है। भाजपा और कांग्रेस के भविष्य को यह चुनाव ही तय करेगा। एक पार्टी ने हार के डर से और दूसरी पार्टी ने जीत के उन्माद में बहकर लोकतंत्र की मर्यादाओं को ताक पर रख दिया है। संवैधानिक पदों का निष्कलंक निर्वाह करनेवाले कई लोगों के आचरण पर आक्षेप तो लगाए ही गए हैं, चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर भी कीचड़ उछालने में कोई कमी नहीं रखी गई है। इस चुनाव में कोई भी जीते या हारे, देश के नागरिक आशा करेंगे कि यह कटुता गुजरात के चुनाव के साथ-साथ समाप्त हो जाएगी।”
Well said Vaidik Ji. Our leaders need to learn how to be real diplomatic. They need to learn to criticise constructively without using abusive words. We have great statements and highly polished politicians, like Atal ji, Dr. Radhkrishnan ji, Dr, Rajendra Prsad ji etc.The whole word is watching us. They are putting their own image at stack by using insulting words and language. It looks that, we need a law to keep a check on such bitter fights, and if required, the fundamental right on freedom of speech, may be reviewed.