आज दिन भर कई टीवी चैनल मुझसे पूछते रहे कि पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान भारत-पाक संबंधों की क्या नई इबारत लिखेंगे ? हर चैनल पर जो दूसरे वक्ता बैठे थे, उनमें कई बड़े फौजी, अनुभवी कूटनीतिज्ञ और नेता टाइप लोग भी थे। लगभग सबकी राय निराशाजनक थी। लगभग सबका कहना था कि इमरान खान पाक सेना की कठपुतली हैं। वे सेना के इशारे के बिना एक कदम भी नहीं उठा सकते। उनके इस बयान पर कोई भरोसा न करे कि भारत एक कदम आगे बढ़ाएगा तो हम दोस्ती के लिए दो कदम बढ़ाएंगे। वे इमरान को ‘तालिबान खान’ कह रहे थे। उन्हें आतंकवाद का समर्थक कह रहे थे। फौजी जनरल और हमारे कूटनीतिज्ञ पूरी तरह से निराश थे लेकिन उनसे मैंने विनम्र शैली में निवेदन किया कि क्या उन्होंने पाकिस्तान के वर्तमान हालात पर गौर किया है? पाकिस्तान इस समय आर्थिक आपात्काल में फंसा हुआ है। मंहगाई, बेरोजगारी, विदेशी कर्ज और भ्रष्टाचार ने पाकिस्तान की जनता को तबाही के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। ऐसी हालत में भी अमेरिका ने हाथ ऊंचे कर दिए हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान को दी जानेवाली अरबों डाॅलर की मदद पर रोक लगा दी है। उसे उसने विश्व आतंकवाद का गढ़ करार दिया है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से वह 21 बार कर्ज ले चुका है। इस संकट में उसे चीन का बहुत सहारा था लेकिन चीन की रेशम पथ (ओबोर) की योजना भी खटाई में पड़ रही है। उसमें हुए खर्च का भुगतान नहीं हो पा रहा है। कुछ दिनों में आर्थिक संकट इतना गहरा हो सकता है कि सरकार और फौज के अफसरों को उनका वेतन देना भी मुश्किल हो जाए। ऐसे स्थिति में फौज का दबाव किस हद तक इमरान को मंजूर होगा ? फौज और सरकार को मिलकर आतंकवादियों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई करनी पड़ेगी, जिससे अमेरिका और चीन भी संतुष्ट हो। पिछले दिनों ‘ब्रिक्स’ की बैठक ने इस आतंकवाद पर भी उंगली उठाई थी। इसके अलावा इमरान खान चुनाव-अभियान के दौरान जैसी जुमलेबाजी कर रहे थे, वैसी भारत और पाकिस्तान के नेता एक-दूसरे के विरुद्ध अक्सर किया करते हैं। अब वे प्रधानमंत्री हैं। उनका स्वर बदला हुआ है। कल ही उन्होंने मियां नवाज़ पर व्यंग्य करते हुए कहा है कि वे फौज के बनाए हुए नेता नहीं है। उन्होंने 22 साल तक पसीना बहाया है। यदि फौज और इमरान एक ही सिक्के के दो पहलू हैं तो यह और भी आसान है कि इमरान फौज के दिल से भारत का डर निकाल दें और दोस्ती का रास्ता तैयार कर दें। इमरान के भारत में जितने दोस्त आज हैं, उतने किसी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के नहीं रहे। यह भी एक कारण हो सकता है, दोनों देशों के बीच एक सार्थक संवाद शुरु करने का। अटलजी के अंतिम संस्कार में पाक सूचना मंत्री के आने से भी कुछ अच्छा संकेत उभरा है। मोदी ने इमरान को बधाई देकर और हमारे राजदूत अजय बिसारिया ने इमरान को क्रिकेट के बेट का तोहफा देकर अच्छी शुरुआत की है।
Leave a Reply