राजनीतिक अतिवाद की तीन ताजा उदाहरण अभी-अभी सामने आए हैं। पहला, केरल के एक स्कूल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने 15 अगस्त के अवसर पर तिरंगा क्यों फहराया ? यह सवाल पूछा है पलक्काड के जिलाधीश ने, उस स्कूल के हेडमास्टर से ! अब उसके खिलाफ कार्रवाई होगी। दूसरा, उप्र और मप्र के मदरसों को सरकारी हुक्म जारी हुआ कि वे 15 अगस्त को अपने यहां तिरंगा फहराएं, उसका वीडियो बनवाएं और सरकार को भेंजें। तीसरा, त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार का स्वतंत्रता-दिवस संबंधी भाषण हमारे आकाशवाणी और दूरदर्शन ने जारी करने से मना कर दिया क्योंकि उन्होंने आर्थिक स्वाधीनता लाने के साथ-साथ देश में फैले सांप्रदायिक तनाव और भय की बात भी कही थी। दूरदर्शन और आकाशवाणी के इतिहास में यह शायद पहली घटना है कि किसी मुख्यमंत्री का स्वतंत्रता दिवस भाषण रोक दिया गया।
ऐसा नहीं है कि केंद्र के विरोधी मुख्यमंत्रियों ने सदा केंद्र सरकार का प्रशिस्त-पाठ ही किया है लेकिन भारत सरकार की नीति हमेशा ताल-मेल की रही है। यह हो सकता है कि माणिक सरकार की राय बिल्कुल तर्कसंगत न हो लेकिन वह सभ्य और शिष्ट शब्दों में रखी गई थी। इसके अलावा उन्होंने जनता को तोड़-फोड़ या बगावत के लिए भड़काया भी नहीं था। यदि उनका भाषण जस का तस प्रसारित हो जाता तो क्या नरेंद्र मोदी की सरकार गिर जाती ? क्या त्रिपुरा या पूरे देश में कोई हिंसक जन-आंदोलन भड़क उठता ? बिल्कुल नहीं लेकिन हमारे नौकरशाहों का क्या करें ? उन्हें झुकने के लिए कहो तो वे रेंगने लगते हैं। इसी तरह सिर्फ मदरसों को तिरंगा फहराने और उसका वीडियो बनाने का आदेश भेजना किस बात का सूचक है ? क्या इससे यह संकेत नहीं मिलता कि हम अपने मुसलमानों की राष्ट्रभक्ति पर संदेह कर रहे हैं ? ऐसा बिल्कुल नहीं है लेकिन इस तरह के अविवेकपूर्ण निर्णयों का नतीजा यही होता है। इस तरह के आदेशों से भाजपा की छवि खराब होती है। उसकी फिजूल बदनामी होती है। लोग पूछने लगते हैं कि खुद भाजपा और संघ क्या तिरंगे को उचित सम्मान देते हैं ? क्या वे भगवा और तिरंगे में फर्क नहीं करते ? जहां ये दो अतिवाद हुए, वहां एक तीसरा बड़ा अतिवाद भी हुआ। सर संघचालक मोहनजी ने तिरंगा क्यों फहराया ? किसी सरकारी स्कूल में सिर्फ कलेक्टर या हेडमास्टर ही तिरंगा फहरा सकता है, ऐसा कोई कानून है, क्या ? मैंने पिछले 60 साल में दर्जनों बार इंदौर और दिल्ली के सरकारी स्कूलों और कालेजों में तिरंगा फहराया है। कभी किसी ने कोई आपत्ति नहीं की। यह आपत्ति इसलिए की गई कि केरल में मार्क्सवादी पार्टी की सरकार है। मार्क्सवादियों के दिल में तिरंगे की कितनी इज्जत है, यह सबको पता है। मोहन भागवत ने बिल्कुल ठीक किया। यदि केरल की सरकार उस हेडमास्टर या मोहनजी को गिरफ्तार कर लेती तो उसकी राष्ट्रभक्ति में चार चांद लग जाते। सारे देश में उसकी थू-थू होती।
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