भारत के दक्षिण पूर्व में बसे ‘एसियान’ संगठन के दस सदस्य-देशों का एक साथ भारत में जुटना अपने आप में अपूर्व घटना है, बिल्कुल वैसे ही जैसे कि 2014 में मोदी के शपथ समारोह में दक्षेस के आठों राष्ट्र उपस्थित हुए थे। दक्षेस-राष्ट्रों को एकजुट करने का मूल विचार मेरा था और मैंने पड़ौसी देशों के कुछ नेताओं को खुद फोन करके भारत आने के लिए प्रेरित किया था। वह सम्मेलन तो अद्भुत था लेकिन पिछले साढ़े तीन वर्षों में दक्षेस-राष्ट्रों के साथ हमारे संबंध कैसे रहे हैं, यह सबको पता है। मेरी कामना है कि ‘एसियान’ का यह सम्मिलन सचमुच सार्थक और सफल हो। इन देशों के साथ भारत के संबंधों का घनिष्ट होना इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि हमारे निकट पड़ौसी देशों के मुकाबले ये देश बहुत मालदार हैं। इनकी आबादी भारत से आधी है लेकिन इनकी संपन्नता (सकल उत्पाद) भारत से 33 प्रतिशत ज्यादा है।
इनमें से कुछ देश ऐसे हैं, जिनसे भारत तकनीकी ज्ञान ले सकता है। कुछ ऐसे हैं, जो भारत में पैसा लगा सकते हैं, कुछ ऐसे हैं, जिनका चीन से तगड़ा विवाद है। वे भारत के साथ राजनीतिक सहयोग कर सकते हें। लगभग सभी राष्ट्र अमेरिका के करीब हैं और चीन से आक्रांत हैं। इसके अलावा लगभग सभी राष्ट्र सांस्कृतिक दृष्टि से भारत माता के मानस-पुत्र हैं। इन राष्ट्रों तक पहुंचने के लिए जल और वायु मार्ग तो खुले हुए हैं। अब भारत, बर्मा और थाईलैंड थल मार्ग भी खुलना चाहिए। 5.2 लाख करोड़ का व्यापार अगले पांच साल में 10 लाख करोड़ रु. तक पहुंचना चाहिए। आर्य और बौद्ध संस्कृति को मानने वाले इन देशों के साथ पर्यटन के अलावा भाषा, भूषा, भोजन, भजन और भेषज की कूटनीति चलनी चाहिए। यद्यपि इन देशों में कोई भी उग्र आतंरिक या पारस्परिक विवाद नहीं है, फिर भी ये देश चाहेंगे कि भारत इनके साथ सामरिक सहकार करे। यदि इन देशों के साथ भारत की आर्थिक, सांस्कृतिक और घनिष्टता बढ़ेगी तो ‘एसियान’ का औपचारिक सदस्य बने बिना ही भारत उसका सबसे उपयोगी और महत्वपूर्ण सदस्य बन जाएगा।
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