हमारे देश में भ्रष्टाचार और राजनीति का चोली-दामन का साथ है। राजनीति के बिना भ्रष्टाचार तो हो सकता है लेकिन भ्रष्टाचार के बिना राजनीति नहीं हो सकती। आचार्य कौटिल्य ने भी कहा है कि यह कैसे हो सकता है कि मछली नदी में रहे और पानी न पीए? लेकिन मछली और नेता में बड़ा फर्क होता है। मछली पानी इसलिए पीती है कि वह जिंदा रहे लेकिन नेता इतना पानी पीता है कि वह मछली से मगरमच्छ बन जाता है। इन मगरमच्छों को काबू करने के लिए हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने जो नया फैसला दिया है, शायद वह कुछ कारगर हो जाए। ‘कुछ कारगर’ मैंने इसलिए कहा कि हमारे नेता लोग उस्तादों के उस्ताद होते हैं। ऐसे कई फैसलों को वे पहले भी हजम कर गए और उन्होंने डकार तक नहीं ली। खैर, इस बार अदालत का फरमान है कि सिर्फ नेता और उसकी पत्नी को ही नहीं, उसके परिवार के अन्य सदस्यों– बेटे, बेटी, बहू, पोते-पोती- सबकी चल-अचल संपत्ति का ब्यौरा भी उन्हें पेश करना होगा। अगर वे नहीं करेंगे तो चुनावों में उनकी उम्मीदवारी रद्द हो जाएगी। यदि यह कानून सख्ती से लागू हो जाए तो 80 प्रतिशत नेतागण या तो चुनाव नहीं लड़ेंगे या राजनीति छोड़ देंगे।
जो आंकड़े सामने आए हैं, उनसे पता चलता है कि कई नेताओं की आमदनी पांच साल में कई गुना हो गई है। यह तो उनकी बताई हुई आमदनी है, छुपाई हुई आमदनी पता नहीं कितने गुना है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में मैं दो बातें और भी जुड़वाना चाहता हूं। एक तो संपत्ति का यह विवरण सालाना सार्वजनिक किया जाना चाहिए और दूसरा, सभी राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों पर यह कानून लागू किया जाना चाहिए, चाहे वे चुनावी उम्मीदवार हो या न हों।अदालत ने इसी फैसले में दूसरी बात यह कही है कि यदि सांसदों, विधायकों, पार्षदों तथा उनके परिजनों द्वारा कोई भी सरकारी ठेका लिया गया हो तो चुनाव के फार्म में उसका स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए। इसके अलावा जजों ने इस बात पर भी चिंता जताई है कि नेता लोग सरकारी बैंको से लोगों को लाखों-करोड़ों रु. का ऋण दिलवा देते हैं या खुद ले लेते हैं। उस पर भी कड़ी निगरानी रखी जानी चाहिए।यदि हमारे नेताओं को थोड़ा और कस दिया जाए तो वे यूनानी दार्शनिक प्लेटो के ‘रिपब्लिक’ में वर्णित ‘दार्शनिक राजा’ बन जाएंगे। यदि ऐसा हो गया तो सारे नेता भाग खड़े होंगे। हमारी राजनीति का अस्तबल ही खाली हो जाएगा।
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