दावोस में होनेवाले विश्व आर्थिक मंच पर हम क्या मुंह दिखाएंगे ? 20 साल में हमारा कोई भी प्रधानमंत्री वहां क्यों नहीं गया ? जिन दिनों भारत की अर्थव्यवस्था को दुनिया की सबसे तेज रफ्तारवाली अर्थव्यवस्था माना जा रहा था, उन दिनों भी हमारे प्रधानमंत्री, जो कि अच्छे-खासे अर्थशास्त्री थे, वहां नहीं गए लेकिन हमारे सर्वज्ञजी वहां खुशी-खुशी पहुंच गए हैं। मैं उनकी हिम्मत की दाद देता हूं। नोटबंदी और जीएसटी में पटकनी खाने के बावजूद वे वहां चले गए हैं।
भारत की आर्थिक प्रगति को 7 प्रतिशत के आंकड़े से नीचे लाकर उन्होंने 6 प्रतिशत से छुआ दिया है, फिर भी उन्हें वहां भाषण झाड़ने में कोई झिझक नहीं होगी। इसमें शक नहीं कि दोनों निर्णय लेने में उनका अपना कोई स्वार्थ नहीं था। ये निर्णय उन्होंने अच्छे मन से लिए थे लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि स्वार्थरहित निर्णय, बुद्धिरहित भी निकले। अब आज आॅक्सफोम नामक विश्व प्रसिद्ध संस्था ने जो गरीबी-अमीरी के आंकड़े प्रस्तुत किए हैं, उन्होंने प्रचारमंत्रीजी के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है। अगर दावोस में किसी ने खड़े होकर सवाल पूछ लिया तो हमारी बधिया ही बैठ जाएगी। आंकड़ा यह है कि पिछले साल भारत में जितनी भी संपत्ति पैदा हुई, उसका 73 प्रतिशत हिस्सा देश के 1 प्रतिशत लोग जीम गए याने हमारे सिर्फ सवा करोड़ लोग 1 लाख करोड़ की संपदा के मालिक बन गए और देश के 67 करोड़ लोगों की आमदनी में 1 प्रतिशत की भी बढ़ोत्तरी नहीं हुई। ये 67 करोड़ ही नहीं, मेरे अनुमान के हिसाब से लगभग 100 करोड़ लोग भारत में ऐसे हैं, जिन्हें रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, चिकित्सा और मनोरंजन की यथायोग्य सुविधाएं भी नहीं मिलतीं। करोड़ों लोग भूखे मरते हैं, दवा के अभावों में लाखों लोग दम तोड़ देते हैं।
शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में इंडिया और भारत की खाई गहरी होती चली जा रही है। गैर-बराबरी सुरसा के बदन की तरह विकराल हो रही है। किसी बड़ी कंपनी का अफसर साल भर में जितने रुपए कमाता है, उतने रुपए कमाने के लिए गांव के एक मजदूर को एक हजार साल लगेंगे। इस खाई को पाटने की तरफ हमारे सर्वज्ञजी का कोई ध्यान ही नहीं है। जहां तक देश के समग्र विकास का सवाल है, भारत चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल से भी बहुत पीछे है। नेपाल का नंबर 22 वां है तो भारत का 62 वां ! देखें, दावोस जाकर सर्वज्ञजी क्या चमत्कार करते हैं।
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