भारत और पाकिस्तान के बीच आजकल जो बचकाना कार्रवाइयां हो रही हैं, वे दुखद तो हैं ही, हास्यास्पद भी हैं। पाकिस्तान ने अपने उच्चायुक्त को इस्लामाबाद बुलाया है ताकि भारत का मुकाबला करने की रणनीति बनाई जा सके। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय का आरोप है कि नई दिल्ली में उसके राजनयिकों और उनके बच्चों को भारत की पुलिस बहुत परेशान करती है। यही आरोप इस्लामाबाद स्थित भारतीय दूतावास ने पाकिस्तानी पुलिस के बारे में लगाया है। हो सकता है कि दोनों पक्ष सही हों। जिन देशों के आपसी संबंध खराब होते हैं, उनसे इसी तरह की खबरें अक्सर आती रहती हैं। यह तो कुछ भी नहीं है। कूटनीतिज्ञों के साथ मार-पीट और कभी-कभी उनकी हत्या भी करवा दी जाती है। यह इसलिए होता है कि सभी देश अपने-अपने दूतावासों से जासूसी का काम भी लेते हैं।
इसीलिए इन विदेशी दूतावासों में आने-जाने वालों पर स्थानीय सरकार बड़ी निगरानी रखती है। इस प्रक्रिया में ज्यादती होना स्वाभाविक है। ऐसी ज्यादतियां कई बार जानबूझकर की जाती हैं और कभी-कभी अनजाने में भी हो जाती हैं। इन ज्यादतियों का प्रत्यक्ष अनुभव मुझे पाकिस्तान में कई बार हुआ है। रुस और चीन में कई बार ऐसे अप्रत्यक्ष अनुभव मुझे हुए हैं लेकिन ऐसे हादसों को आपसी बातचीत के द्वारा सुलझाया जा सकता है। समझ में नहीं आता कि इस तरह के मामलों को टीवी चैनलों और अखबारों में उछालने की तुक क्या है ? इससे तो दोनों पक्षों की बदनामी ही होती है। भारत और पाकिस्तान के कूटनीतिज्ञ अपने बच्चों को एक-दूसरे के देश में पढ़ाना बंद कर दें, इससे दोनों देशों को क्या लाभ होगा ? बच्चों तो बच्चे हैं। यदि वे साथ-साथ पढ़ेंगे तो उनमें यारी-दोस्ती हो जाएगी। एक-दूसरे को वे समझने लगेंगे। ये ही बड़े होकर सेनापति बनेंगे, विदेश मंत्री बनेंगे, प्रधानमंत्री बनेंगे। यदि हम कूटनीतिज्ञों के बच्चों पर यह अनौपचारिक प्रतिबंध लगा दें कि वे अपने बच्चों को अपने साथ नहीं रखेंगे तो यह एक अमानवीय कार्रवाई तो होगी ही, उससे भी ज्यादा यह बचकाना कार्रवाई मानी जाएगी। समझ नहीं आता कि दोनों देशों के विदेश मंत्री फोन पर बात करके इस तनाव को दूर क्यों नहीं कर लेते ?
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