भारत और पाकिस्तान के टूटे हुए रिश्तों को अब नानक-बरामदा जोड़ेगा। यह बरामदा बनेगा मुश्किल से 8 किमी का, भारत के डेराबाबा नानक से पाकिस्तान के करतारपुर साहब तक! करतारपुर में ही गुरु नानक ने अंतिम सांस ली थी। अगले साल गुरु नानक की 550 वी जयंति है। भारत सरकार इसे बड़े पैमाने पर मनाना चाहती है। हमारे मंत्रिमंडल ने जैसे ही बरामदा बनाने की घोषणा की, पाकिस्तान ने उस पर रजामंदी जाहिर कर दी। अब दोनों पक्षों में यह प्रतिस्पर्धा चल पड़ी है कि इस मामले में पहल किसने की।
मोदी सरकार को अगले साल चुनावों में अपने सिख वोटों की चिंता है तो पाकिस्तान को अपने खालिस्तानी खेमे की पीठ ठोकना है। पाकिस्तान में तो अभी से आजाद खालिस्तान के बोर्ड और पोस्टर जगह-जगह लग गए हैं। यो तो 1999 में अटलजी ने अपनी प्रसिद्ध लाहौर-यात्रा के समय इस मुद्दे को उठाया था। मुझे याद है कि उन्होंने कहा था कि करतारपुर जाने वालों को पहले लाहौर जाना पड़ता है और फिर वहां से 125 किमी दूर करतारपुर के लिए बस पकड़नी पड़ती है। इतना ही नहीं, उन्हें वीज़ा लेने की भी मशक्कत करनी पड़ती है।
अब तीन-चार किमी का जो बरामदा बनेगा, उसमें सिख तीर्थयात्री बिना वीजा के जा सकेंगे और वे चाहें तो वहां पैदल भी पहुंच सकेंगे। वे सुबह जाकर शाम को लौट सकेंगे। अभी हजारों लोग भारत से वहां पहुंचे हुए हैं। अगले साल बरामदा बन जाने पर लाख-दो लाख लोग पहुंच जाएं तो आश्चर्य नहीं होगा। इस बरामदे के निर्माण पर भारत को लगभग 25 लाख रु. खर्च करने होंगे और पाकिस्तान को डेढ़ करोड़ रु.।
इसका शिलान्यास पाकिस्तान की तरफ से प्रधानमंत्री इमरान खान करेंगे और भारत की तरफ से राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद करेंगे। इसी से इस नानक-बरामदे के महत्व का पता चल सकता है। मैं चाहता हूं कि यह बरामदा दो गांवों के बीच तो बने ही, दोनों देशों के दिलों के बीच भी बने। दो माह पहले दोनों देशों के विदेश मंत्री न्यूयार्क में मिलते-मिलते रह गए। क्या ऐसा हो सकता है कि यहां से एक जाए और वहां से दूसरा उसका स्वागत करे?
पाकिस्तानी सेनापति कमर बाजवा और नवजोतसिंह सिद्धू की गले-मिलव्वल पर हायतौबा मचाने वालों को अब शायद कुछ अकल आए। गुरु नानक और पैगंबर मुहम्मद के जन्मदिन इस बार साथ-साथ आए। इस मौके पर इस नानक बरामदे की घोषणा दोनों सरकारों ने साथ-साथ की। भारत और पाकिस्तान के बीच ऐसे दर्जन भर रास्ते और भी खुल सकते हैं, खासतौर से कश्मीर में ! भारत के नेता आजकल चुनावी चक्कर में फंसे हैं तो अब इमरान खान ही पहल क्यों न करे ?
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