मालदीव के विदेश मंत्री कुछ हफ्तों पहले भारत आए और उन्होंने मालदीव के एक लगभग सरकारी अखबार के इस बयान का खंडन किया कि ‘मालदीव का सबसे बड़ा दुश्मन भारत है और उसका सबसे बड़ा दोस्त चीन है।’ असीम के इस खंडन से हमारे भोले नेता संतुष्ट हो गए लेकिन मैंने उसी दिन लिखा था कि यह कोरा जुबानी जमा-खर्च है। मालदीव अब पूरी तरह से चीन की गोद में बैठ गया है।
आज की खबर यह है कि मामौन अब्दुल गय्यूम, जो कि वर्तमान राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के सौतेले बड़े भाई हैं, भारत के मित्र हैं और 30 साल तक मालदीव पर राज कर चुके हैं, उन्हें 19 माह की सजा दे दी गई है। उन्हें राजद्रोह और तख्ता-पलट के आरोप में फरवरी में गिरफ्तार किया गया था लेकिन इलाज के बहाने वे लंदन गए और अब वे श्रीलंका में रहकर यामीन के विरुद्ध सक्रिय हैं। नशीद भी भारत के गहरे मित्र हैं। नशीद और गय्यूम से मेरी कई बार व्यक्तिगत भेंट भी हुई है।
यामीन ने कई जजों को भी गिरफ्तार कर रखा है। उन्होंने मालदीव में ऐसी तानाशाही चला रखी है, जैसी कि पूरे दक्षिण में न तो किसी फौज ने कभी चलाई और न ही किसी राजा-महाराजा ने! यामीन ने मालदीव में न केवल लोकतंत्र का गला घोंट दिया है बल्कि मालदीव को भारत के दुश्मनों का गढ़ बना दिया है। सबसे पहले उन्होंने यहां चल रहे भारत के सारे निर्माण-कार्यों को रोक दिया है। कुछ दिन पहले उन्होंने भारत के दो हेलिकाप्टरों को हटाने के आदेश भी दे दिए । भारतीय पायलटों और सीमा-रक्षकों के वीजा भी रद्द कर दिए हैं।
अब उससे भी बड़ा भारत का अपमान उसने शुरु कर दिया है। भारतीय लोगों की नौकरियां खत्म करने का एलान कर दिया है। इस चार लाख लोगों के छोटे से देश में 29 हजार भारतीय काम करते हैं। इन भारतीय लोगों ने मालदीव को पर्यटन का विश्व-केंद्र बनाया है तथा शिक्षा, व्यापार और प्रबंधन में उनका योगदान अनुपम है लेकिन यामीन-जैसे अहसान-फरामोश और लोकतंत्र के हत्यारे नेता के खिलाफ भारत सख्त कार्रवाई क्यों नहीं कर रहा है ? हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का मंत्रालय तो करुणालय है। अपने 29000 नागरिकों की रोटी-रोजी छिनने की आशंका पर उनका दिल क्यों नहीं पिघल रहा है ?
ऐसा तो नहीं कि मोदी और शी (भारत और चीन) के नक्कारखाना के शोर में मालदीव में भारत की तूती की आवाज डूब चुकी है ? चीन के अलावा सभी महाशक्तियां मालदीव को लेकर चिंतित हैं। यह सही समय है जबकि भारत मालदीव पर जबर्दस्त दबाव डाले या वहां के नेताओं या संसद के बुलावे पर सीधा सैन्य हस्तक्षेप करे।
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