म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों ने भारत सरकार को गहरे पसोपेश में डाल दिया है। भारत सरकार उनके इतने विरुद्ध थी कि वह 40 हजार रोंहिग्या शरणार्थियों को भारत से निकाल बाहर करना चाहती थी। उसने सर्वोच्च न्यायालय को यह समझाने की भी कोशिश की कि इन रोहिंग्या मुसलमानों से देश को क्या-क्या खतरे हैं। उनके संबंध अरब आतंकवादियों से हैं, वे पाकिस्तानपरस्त हैं और अपराधी प्रवृत्ति के हैं, ऐसे आरोप भी उन पर लगाए गए।
इसके अलावा प्रधानमंत्री ने अपनी बर्मा-यात्रा के दौरान बर्मा से भाग रहे लाखों रोहिंग्या मुसलमानों के प्रति कोई भी सहानुभूति प्रकट करने से परहेज किया और आतंकवाद से निपटने के लिए बर्मी सरकार के साथ एकजुटता प्रकट की लेकिन अब मजा देखिए कि हमारी रोहिंग्या-नीति कैसे शीर्षासन की मुद्रा धारण करती है। ज्यों ही हमारे सर्वज्ञजी की सरकार ने देखा कि संयुक्त राष्ट्र संघ बर्मा के पीछे हाथ धोकर पड़ गया है, सारी महाशक्तियां बर्मा की भर्त्सना कर रही हैं और विश्व-जनमत अब म्यांमार की सर्वोच्च नेता आंग सान सू की से अपना ‘नोबेल पुरस्कार’ लौटाने की मांग कर रहा है, भारत सरकार को लगा कि सर्वज्ञजी ने बर्मा में जो पैंतरा मारा था, उस पर यदि पल्टी नहीं खाई तो बर्मा से ज्यादा भारत की बदनामी हो जाएगी।
सो हमारे ढाका स्थित राजदूत ने बांग्लादेश में घुसे साढ़े चार लाख रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए भरपूर मदद भेजने का इंतजाम किया। सू ची ने अपने भाषण में रोहिंग्या मुसलमानों की वापसी का आह्वान करके भारत सरकार की रोहिंग्या नीति का चूरा-चूरा कर दिया। हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने न्यूयार्क में कल बांग्ला नेता शेख हसीना से भी भेंट की। हमारी विदेश नीति दो महिलाओं-हसीना और सू ची- के बीच लटक रही है, अटक रही है। तीसरी महिला याने सुषमाजी उसमें से कोई न कोई रास्ता जरुर निकाल लेंगी।
मोदी जब बर्मा में थे, तब ही मैंने लिखा था और किसी टीवी चैनल पर कहा भी था कि रोहिंग्या मुसलमानों के बारे में हमारी नीति न्यायसंगत और तर्कपूर्ण होनी चाहिए। मेरा तर्क यह भी है कि 40 हजार रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने से भारत को कोई खास खतरा न भी हो तो भी उन्हें भारत के भी पहले पाकिस्तान और बांग्लादेश की शरण मिलनी चाहिए, क्योंकि वे मुसलमान हैं और बांग्लाभाषी हैं। इन देशों की आबोहवा उनके ज्यादा अनुकूल रहेगी। वैसे भारतमाता की गोद में सभी पड़ौसी देशों के शरणार्थियों के लिए सदा जगह बनी रहती है, क्योंकि देश उनका चाहे अलग बन गया हो, वे हैं, भारतमां के ही बेटे, हजारों वर्ष से !
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