इस समय सारी दुनिया में प्रवासी भारतीय रह रहे हैं लेकिन किसी गोरे या पश्चिमी देश में भारतीयों का ऐसा बोलबाला कभी कायम नहीं हुआ है, जैसा आजकल कनाडा में हो रहा है। कनाडा में एक भारतीयों की पार्टी- न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी- के सहयोग के बिना प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो अपनी नई सरकार चला ही नहीं सकते। इस समय कनाडा की संसद में 18 सांसद सिख चुने गए हैं जबकि भारत की संसद में 13 सिख ही हैं। कनाडा में सिखों का बोलबाला हो गया है। एनडीपी के नेता जगमीत सिंह सिख हैं। उनकी पार्टी का सिर्फ एक ही सांसद सिख है। लेकिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी के 13 सांसद सिख हैं और कंजरवेटिव पार्टी के चार सांसद सिख हैं। जबकि कनाडा में सिखों की संख्या सिर्फ दो प्रतिशत ही है। इसका अर्थ क्या हुआ? क्या यह नहीं कि हमारे सिख बंधुओं ने कनाडा में जाकर भारत का नाम चमकाया है। उनमें से कुछ के परिवार पाकिस्तानी पंजाब से भी वहां गए हुए हैं। भारत और पाकिस्तान, दोनों को अपने इन लोगों पर गर्व होना चाहिए।
अब भारतीयों का महत्व कनाडा की सरकार में इसलिए बढ़ जाएगा कि ट्रूड़ो की पार्टी को बहुमत के लिए 13 सांसदों की जरुरत होगी। इस जरुरत को जगमीत सिंह की पार्टी- एनडीपी- पूरा करेगी। यह पता नहीं कि यह पार्टी सरकार में शामिल होगी या नहीं लेकिन यह तय है कि इसके सहयोग के बिना ट्रूडो सरकार अपनी संसद से कोई भी कानून पास नहीं करा सकेगी। ट्रूडो की लिबरल पार्टी को 338 सीटों में से सिर्फ 157 सीटें ही मिली हैं जबकि उसे 170 सीटें चाहिए, बहुमत के लिए। पिछली बार से उसकी 20 सीटें कम हुई हैं। इसी तरह एनडीपी की भी सीटें 44 की जगह 24 रह गई हैं। अब दोनों हल्की हुई ये पार्टियां आपस में मिलने पर कंजरवेटिव पार्टी पर भारी पड़ जाएंगी। उसे 121 सीटें मिली हैं।
खुद जगमीत सिंह ने अपने आप को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया हुआ था लेकिन ट्रूडो और जगमीत, दोनों को अब सोचना होगा कि इस नई अवधि में उनकी सरकार लोकप्रिय कैसे बने। कनाडा की जनता ने चाहे भारतीयों को बड़ी संख्या में चुन कर संसद में भेजा हो, उन्हें ट्रूडो-परिवार की भारत-यात्रा पसंद नहीं आई थी। ट्रूडो की पत्नी की भारतीय पोशाक और मंदिरों की यात्रा ने गोरे कनाडियों को भड़का दिया था। इसी प्रकार ट्रूडो ने काले मुखौटे लगाए थे, अपनी उदारता जताने के लिए। उसका अच्छा असर नहीं पड़ा। इसके अलावा एसएनसी-लवलीन मामले के भ्रष्टाचार ने भी ट्रूडो को परेशानी में डाल दिया था। उम्मीद है कि 47 वर्षीय ट्रूडो अपनी पहली अवधि के कटु अनुभवों से सबक सीखेंगे और इस बार बेहतर सरकार चलाएंगे।
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