रोगियों को कृत्रिम अंग लगाने में कई पश्चिमी कंपनियों ने कमाल का काम किया है। इन कंपनियों के बनाए घुटने, कूल्हे, दांत-दाढ़, हृदय-उपकरण और न जाने क्या-क्या ने मानव जाति का बहुत कल्याण किया है लेकिन कई बार उनकी लापरवाही और मुनाफाखोरी के कारण हजारों-लाखों लोग सदा के लिए अपंग हो जाते हैं। ऐसा ही एक सनसनीखेज मामला अमेरिका की जान्सन एंड जान्सन का अभी सामने आया है। यह कंपनी कृत्रिम कूल्हे बनाती है। इसके कूल्हे सारी दुनिया में लाखों की संख्या में बिकते हैं। एक-एक कूल्हे की कीमत लाखों में होती है लेकिन 2010 में पाया गया कि इसके कूल्हों में जबर्दस्त खामियां हैं। उसमें लगी धातुओं में एक किस्म का ज़हर होता है, जो रोगी को अपंग बना देता है, उसकी मानसिक स्थिति को बिगाड़ देता है और उसे स्थायी रोगी बना देता है।
जब कुछ अमेरिकी रोगियों ने शिकायत की और इस कंपनी के पीछे पड़े तो उसने सारे कृत्रिम घुटने वापस मंगवाए और रोगियों को भारी मुआवजा दिया। उसने 8000 रोगियों को 2500 करोड़ रु. का हर्जाना दिया और छह रोगियों को लगभग पांच-पांच करोड़ रु. दिए जबकि भारतीय रोगियों को सिर्फ 20-20 लाख रु. देने का सुझाव हमारे स्वास्थ्य मंत्रालय के विशेषज्ञों ने दिया है। भारत के 4700 रोगियों में से सिर्फ 1080 रोगियों के नाम-पतों का पता चला है। शेष के बारे में सरकार के पास जानकारी नहीं है। जो भी यह लेख पढ़े, वह कृपया सरकार को जानकारी देने का कष्ट करें। मुंबई के रोगी विजय वोझला बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने दो साल तक संघर्ष किया और जान्सन एंड जान्सन कंपनी को अपनी गलती मंजूर करने के लिए बाध्य किया। आश्चर्य है कि हमारे मेडिकल इंस्टीट्यूटस और हमारी सरकार ने इस गलती को तुरंत क्यों नहीं पकड़ा ? हम आंख मींचकर विदेशी चीजों को क्यों स्वीकार कर लेते हैं ? क्या यह हमारी बौद्धिक गुलामी का प्रतीक नहीं है ?
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