कल दिल्ली समेत देश के कई शहरों में अकस्मात ही कई प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों में न लोगों को ढो कर लाया गया, न उन्हें किसी नेता या संगठन ने बुलाया और न ही उन्होंने कोई जोशीले नारे लगाए। ये स्वतः स्फूर्त प्रदर्शन कुछ उसी तरह के थे, जैसे कि निर्भया के बलात्कार के बाद हुए थे। इन प्रदर्शनों की उपेक्षा कैसे की जा सकती है ? ये हुए हैं, 15 वर्षीय नौजवान जुनैद खान की हत्या के विरोध में ! जुनैद और उसके भाई पर प्राणलेवा हमला किया, उन लोगों ने जो चलती रेलगाड़ी में सीटों के लिए कहा-सुनी कर रहे थे। ऐसी कहा-सुनी और छोटे-मोटे झगड़े हम में से किसने नहीं देखे हैं लेकिन जिस बात ने लोगों को मर्मांतक पीड़ा पहुंचाई है, वह यह है कि जुनैद और उसके भाई को पहले गोमांसभक्षी कहा गया और फिर बेखौफ होकर उन पर जान लेवा हमला कर दिया गया। वे दोनों भाई ईद के लिए नए कपड़े वगैरह खरीद कर अपने घर वल्लभगढ़ लौट रहे थे। उन्होंने नमाजी टोपी पहन रखी थी। ज़रा सोचें कि उनके मां-बाप पर क्या गुजर रही होगी ? उस पूरे गांव ने कैसी ईद मनाई है ? यह मामला तो है, इस्लाम और मुसलमान-विरोधी लेकिन यह इतना घृणित है कि देश में जो प्रदर्शन हुए हैं, उनमें आने वाले 99 प्रतिशत लोग हिंदू हैं। यही सच्चा हिंदुत्व है। एक हत्यारे को तो पकड़ लिया गया है, शेष तीन भी शीघ्र ही पकड़े जाएंगे। याने सरकार इस मामले में कोई ढील नहीं देगी। मुहम्मद अखलाक और पहलू खान के हत्यारे भी पकड़े गए हैं लेकिन असली सवाल यह है कि इन हत्यारों को कब लटकाया जाएगा और कैसे लटकाया जाएगा। यदि इनकी फांसी का जम कर प्रचार हो तो इस तरह के सांप्रदायिक हत्याकांड जरुर हतोत्साहित होंगे। सरकार तो अपना काम करेगी लेकिन हमारे समाज में सांप्रदायिकता का जो यह ज़हर बढ़ता चला जा रहा है, इसका इलाज़ तो हमारे शिक्षकों, माता-पिता, धर्म-ध्वजियों और समाजसेवकों को करना होगा। एक पशु के नाम पर एक मनुष्य की हत्या कर देना कौन सा हिंदुत्व है और कौनसी मनुष्यता है ? सिर्फ नाम पर ? गोरक्षा तो परम पवित्र कार्य है लेकिन मानव-रक्षा उससे कम नहीं है।
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