इधर कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने कह दिया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता आतंकवादी हैं और उधर शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा कि सभी मदरसों से आतंकवादी पैदा हो रहे हैं। उन्हें राज्यों के शिक्षा बोर्डों से जोड़ा जाए और उन्हें मुल्ला-मौलवियों की गिरफ्त से बरी किया जाए। ये दोनों बयान मुझे अतिवादी लग रहे हैं। सिद्धरमैया को घबराहट है कि कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में कहीं उनकी कुर्सी खिसक न जाए। भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह के दौरे से उनका चिढ़ जाना स्वाभाविक है लेकिन सिद्धरमैया ने अपनी इसी बयान में यह भी कह दिया कि उनके पास कोई प्रमाण नहीं है, यह सिद्ध करने के लिए कि संघी लोग आतंकी कार्रवाई कर रहे हैं तो फिर उन्होंने यह गैर-जिम्मेदाराना बयान क्यों दिया ?
यह उनकी चुनावी मजबूरी है। ऐसी मजबूरियां हम गुजरात के चुनावों में देख चुके हैं लेकिन शिया बोर्ड के अध्यक्ष रिजवी ने किस आधार पर कह दिया कि मदरसे आतंकवाद के जन्म-स्थल हैं ? क्या उन्होंने 10-15 आतंकवादियों की जन्म-पत्री पढ़कर यह निष्कर्ष निकाला है ? ज्यादातर आतंकवादी तो आधुनिक स्कूलों और कॉलेजों में पढ़े हुए लेकिन बहकाए हुए नौजवान हैं। यह हो सकता है कि यह बयान शिया-सुन्नी कटुता में से जन्मा हो। ज्यादातर मदरसे सुन्नी लोग चलाते हैं और कई सुन्नी देश भी उनकी भरपूर मदद करते हैं। इन मदरसों में ज्यादातर किन मुसलमानों के बच्चे पढ़ते हैं ? गरीब, अनपढ़ और ग्रामीण मुसलमानों के बच्चे।
इन बच्चों को आधुनिक शिक्षा मिले, वे संपन्न और सुशिक्षित बनें तथा उनका संस्कृतिकरण हो, यह बहुत जरुरी है। उन्हें मजहबी शिक्षा दी जाए, इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन वह मजहबी शिक्षा ऐसी न हो, जो उनमें सांप्रदायिकता, संकीर्णता और कट्टरता पैदा करे। इस दृष्टि से रिजवी का यह सुझाव गौर करने लायक है कि सारे मदरसे राज्य के शिक्षा बोर्डों के अंतर्गत हो। मुस्लिम शिक्षा संस्थाओं पर जो नियम लागू हों, वे सभी धर्मों के स्कूलों पर लागू होने चाहिए।
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