लातीन अमेरिका के देश वेनेजुएला में वैसी ही स्थिति बनती दिखाई पड़ रही है, जैसी कि 1962 में क्यूबा में बन रही थी। जो तनाव वहां अभी चल रहा है, यदि एक हफ्ते में वह नहीं सुलझा तो कोई आश्चर्य नहीं कि डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिकी सरकार वहां अपनी फौजें चढ़ा दे। अमेरिका का समर्थन लगभग सभी प्रमुख यूरोपीय राष्ट्र कर रहे हैं लेकिन रुस और चीन उसका विरोध कर रहे हैं, जैसा कि उन्होंने फिदेल कास्त्रो के वक्त क्यूबा में किया था।
क्यूबा और वेनेजुएला की हालत में फर्क यह है कि यहां यह मामला बिल्कुल आंतरिक है। इसका महाशक्तियों से कुछ लेना-देना नहीं है लेकिन ट्रंप जैसे महान नेता अपना पांव फटे में फंसाए बिना मानते नहीं है। ट्रंप का कहना है कि वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो अपनी कुर्सी खाली करें। वे पिछले साल राष्ट्रपति का चुनाव जीत गए थे लेकिन उन पर धांधली के आरोप हैं। अभी-अभी हुए संसद के चुनाव में मादुरो के विरोधियों का बहुमत हो गया है। उनके 35 वर्षीय नेता युवान गोइदो ने खुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया है। सत्ता-पलट की घोषणा कर दी है। जनता सड़कों पर उतर आई है। दर्जनों लोग हताहत हो गए हैं।
यों तो वेनेजुएला एक बड़ा तेलोत्पादक देश है लेकिन 1998 में प्रख्यात नेता ह्यूगो शावेज के राष्ट्रपति बनते ही इसकी अर्थ-व्यवस्था अधोगामी होती गई। उन्होंने विदेशों से कर्ज लेकर आम जनता को खुश करने के लिए अंधाधुंध रियायतें देने शुरु कर दीं। आज वेनेजुएला की स्थिति यह है कि आम आदमी के इस्तेमाल की चीजों के दाम भी सोने-चांदी के बराबर हो गए हैं। लोगों को अपना पेट भरने के लिए लूट-मार करनी पड़ती है। वामपंथी शावेज की परंपरा को मादुरो ने भी जारी रखा। मादुरो ने 2013 मे सत्तारुढ़ होने के बाद पिछले पांच साल में वेनेजुएला में इतने गहरे असंतोष को जन्म दे दिया कि अब उनकी कुर्सी अपने आप हिल रही है लेकिन उनके खिलाफ तख्ता-पलट की कार्रवाई को अमेरिकी समर्थन अवैध और अनैतिक मालूम पड़ता है। शावेज और मादुरो के काल में वेनेजुएला में रुस और चीन का दखल बढ़ा है, आर्थिक और फौजी दोनों। यहां अमेरिका और रुस एक दूसरे के सामने खड़े दिख रहे हैं, जैसे कि वे सीरिया और ईरान में दिखते रहे हैं।
सुरक्षा परिषद में वेनेजुएला का मामला पहुंच गया है लेकिन जाहिर है कि सं.रा. वहां हस्तक्षेप नहीं कर पाएगा, क्योंकि रुस और चीन का वीटो हो जाएगा। बेहतर तो यही होगा, जैसा कि भारत सरकार कह रही है, इस मामले को वेनेजुएला के लोग खुद हल करें। वरना अब एक नए शीत युद्ध का आंरभ तो हो ही चुका है। यह शीत-युद्ध एक गर्म-युद्ध में भी बदल सकता है, क्योंकि मुनरो सिद्धांत के मुताबिक लातीनी अमेरिका के देशों को संयुक्त राज्य अमेरिका अपने क्षेत्र के देश ही समझता है।
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