मध्यप्रदेश में चपरासी की नौकरी के लिए 2 लाख 81 हजार लोगों ने अर्जी लगाई है और नौकरियां हैं, कुल 738 क्या सर्वज्ञी इस मोटी-मोटी बात को भी कभी अपने मन में जगह देंगे? और इस पर कुछ अपने मन की बात कहेंगे? इस बात का अर्थ क्या है? चपरासी की 7-8 सौ नौकरियों के लिए लगभग 3 लाख नौजवान दौड़ पड़े हैं, आखिर क्यों? इसीलिए कि देश में बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। भूखा-प्यासा आदमी क्या करे? और कुछ नहीं तो चपरासी की नौकरी ही झपट ले। कम से कम उसका, उसकी पत्नी और बच्चे का पेट तो भरेगा। यह संकट इतना बड़ा है कि चपरासी की नौकरी पाने के लिए लोग अपनी हैसियत, मान-सम्मान, जात-बिरादरी याने सब कुछ दरी के नीचे खिसकाने को तैयार हैं। इन तीन लाख इच्छुकों में ब्राम्हण, राजपूत और बनिए भी हैं। इतना ही नहीं, बी.ए., एम.बी.ए. और लॉ स्नातक भी हैं।
इतना पढ़ लेने के बावजूद ये लाखों युवक बेरोजगार क्यों हैं? क्या इस प्रश्न पर हमारी सरकारों ने कभी गंभीरता से विचार किया? हमारी सरकारों ने अपने शिक्षा मंत्रालयों को मानव संसाधन मंत्रालय (राजीव गांधी के ज़माने से) बना दिया है। लेकिन मानवों के लिए संसाधन जुटाने के बारे में क्या किया है। उन्होंने मनुष्यों को ही संसाधन बना दिया है। जरा सोचिए, जिन्हें चपरासी की नौकरी भी, नसीब नहीं होगी, वे नौजवान क्या करेंगे? क्या वे भाड़ झोकेंगे? वे भाड़ झोंकने लायक भी नहीं हैं। हमारे नेताओं को यह पता ही नहीं है कि शिक्षा का उद्देश्य क्या हैं? बस युवजन को डिगरियां बांटते रहिए। उनका आत्मिक और बौद्धिक विकास करना तो दूर की बात है, यह शिक्षा उनका पेट भी भरने लायक नहीं है।
Newzmafia says
मानसिक विकलांगता की ओर युवा just like ठंडा मतलब Coca-Cola