महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के बीच जो खेल चल रहा है, उसका अर्थ क्या है ? क्या यह नहीं कि हमारी राजनीतिक पार्टियों को किसी सिद्धांत, नीति या विचारधारा से भी कहीं ज्यादा श्रद्धा, सत्ता में है ? वे कुर्सी पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं। शिवसेना की सौदेबाजी से यही सिद्ध होता है। वह अपना मुख्यमंत्री बनाने के लिए शरद पवार की पार्टी राकांपा या सोनिया गांधी की पार्टी कांग्रेस से भी हाथ मिला सकती है। ये वे पार्टियां हैं, जिन्हें कोसते-कोसते शिव सेना का गला सूखता रहा है। उसके प्रवक्ता ने कहा है कि शिवसेना की सरकार को 175 विधायकों का समर्थन मिलेगा।
भाजपा को रोकने के लिए राकांपा और कांग्रेस, शिव सेना को अपने कंधे पर जरुर बिठा सकती हैं लेकिन उसे वे कब और कितने गहरे में पटक मारेंगी, इसकी कल्पना शिव सेना के मदमस्त नेता अभी नहीं कर पा रहे हैं। शिव सेना ने अपने समान विचारवाली पार्टी के साथ पिछले पांच साल कैसे काटे हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। अब यदि कांग्रेस और राकांपा के साथ उसने सरकार बना ली तो यह बेमेल गठबंधन शीघ्र धराशायी तो हो ही जाएगा, वह इन तीनों पार्टियों की बधिया भी बिठा देगा। शिव सेना की तो जड़ें उखड़ सकती हैं। इस वक्त भाजपा यदि सत्ता का मोह छोड़ दे और इस अप्राकृतिक राजनीतिक सहवास को होने दे तो वह शीघ्र ही प्रचंड बहुमत से सत्ता में लौट सकती है। जो संभावना मैं प्रकट कर रहा हूं, इसे शिव सेना नहीं समझती, ऐसा भी नहीं है।
यदि भाजपा अपनी टेक पर डटी रहे तो शिव सेना शायद यथार्थ को समझ लेगी। यह ठीक है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने चुनाव के पहले जल्दबाजी में शिव सेना को मुख्यमंत्री पद के बंटवारे की बात कह दी होगी लेकिन शिव सेना को यदि भाजपा के बराबर या उससे ज्यादा सीटें मिल जातीं तो भी कोई बात थी लेकिन इस समय वह जो कुछ कर रही है, वह बचकाना जिद के अलावा कुछ नहीं है।
Leave a Reply